जानिए भारत की पहली फिल्म बनाने का इतिहास, क्या आप जानते हैं ?

18 मई 1912 को पहली भारतीय फिल्म श्री पुंडलिक को मुंबई के कोरोनेशन सिनेमा में रिलीज कर इतिहास रचा गया था। हालांकि ये बात भारतीय सिनेमा के इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। वजह सिर्फ ये थी कि फिल्म की शूटिंग करने वाला विदेशी था और नेगेटिव रील को प्रोसेस के लिए विदेश भेजा गया।

ये फिल्म दादा साहेब तोरणे ने बनाई थी। इसके साथ फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन, फिल्म एडिटिंग, फिल्म डायरेक्शन और फिल्म प्रोड्यूस करने वाले भी ये पहले भारतीय रहे। हालांकि ये क्रेडिट आज भी दादा साहेब फाल्के को दिया जाता है, जिनकी फिल्म एक साल बाद 1913 में रिलीज हुई थी।

तोरणे मशीन की रिपेयरिंग का काम करते थे, लेकिन विदेशी फिल्मों से प्रभावित होकर इन्होंने भारत में ही फिल्म बनाई। कैमरा और फिल्मों के लिए जुनून ऐसा था कि जब इनका कैमरा चोरी हुआ तो इन्हें हार्ट अटैक आ गया।
दादा साहेब तोरणे का जन्म 13 अप्रैल 1890 को कोंकण, महाराष्ट्र में हुआ। 3 साल की उम्र में जब पिता गुजर गए तो चाचा ने घर से निकाल दिया। बेघर दादा और उनकी मां गरीबी में गुजारा करते थे। 10 साल के हुए तो घर चलाने के लिए इन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। ये काम की तलाश में मुंबई पहुंचे जहां इन्हें कॉटन ग्रीन इलेक्ट्रिक कंपनी में काम मिल गया। यहीं उन्होंने अलग-अलग तरह की मशीन चलानी सीखी।
कंपनी में काम करते हुए दादा श्रीपद थिएटर कंपनी के संपर्क में आए। रोज प्ले और विदेश से आने वाली फिल्मों को देखते हुए 21 साल के दादा को अपनी फिल्म बनाने का ख्याल आया। उन्होंने अपने दोस्त चित्रे से मदद मांगी जो इस काम में फाइनेंशियली उनकी मदद कर सके। चित्रे विदेश से फिल्में मंगवाकर भारत में दिखाते थे और कैमरे भी मंगवाते थे।
दादा साहेब तोरणे ने विदेशी कंपनी से 1000 रुपए देकर कैमरा मंगवाया। भारत में किसी को भी ये कैमरा चलाना नहीं आता था, ऐसे में उन्होंने एक ऑपरेटर भी बुलाया। फिल्म श्री पुंडलिक एक प्ले पर आधारित थी। तकनीक और सुविधाओं की कमी से 1912 में महज एक जगह रखकर एक बार में ही वीडियो रिकॉर्ड किया जा सकता था। दादा ने भी ऐसा ही किया।

ग्रांट रोड, मुंबई के एक थिएटर में उन्होंने कैमरा लगाया और स्क्रिप्ट तैयार की। जॉनसन नाम के एक विदेशी ने कैमरा चलाया, क्योंकि भारत में किसी को भी इसे चलाना नहीं आता था। एक जगह कैमरा फिक्स किया गया और पूरा प्ले रिकॉर्ड हुआ।
एक बार में शूट हुई फिल्म को देखकर दादा साहेब तोरणे नाखुश थे। उन्होंने दोबारा प्ले शूट करने का फैसला किया, लेकिन इस बार अलग-अलग हिस्सों में। फिल्म को एक बार की जगह कई अलग-अलग टुकड़ों में शूट किया गया। दादा ने उन हिस्सों को खुद एक साथ जोड़ा, जिससे ये भारत के पहले फिल्म एडिटर भी बने।

भारत में फिल्म एडिटिंग की शुरुआत करने वाले भी दादा साहेब तोरणे ही हैं। दादा ने फिल्म में नजर आए हर कलाकार को फीस दी और उनका खर्च उठाया। इसी समय पैसों की कमी भी आई, लेकिन उन्होंने उधार लेकर प्रोडक्शन जारी रखा। जब शूटिंग खत्म हुई तो इसकी नेगेटिव रील लंदन भेजी गई, जहां इसे प्रोसेस किया गया।
भारत की पहली फीचर फिल्म श्री पुंडलिक को 18 मई 1912 को मुंबई के कोरोनेशन सिनेमा में रिलीज किया गया। ये 22 मिनट की फीचर फिल्म थी। फिल्म रिलीज के दौरान इसका पहला ऐड द टाइम्स ऑफ इंडिया में पब्लिश हुआ।

प्रमोशन के लिए अखबार में लिखा गया था, मुंबई की आधी आबादी ने फिल्म देखी है, बची हुई आधी आबादी को भी ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए। इस इश्तिहार का असर ये हुआ कि करीब 3 हफ्तों तक ये फिल्म सिनेमाघर में चलती रही

जब 1912 में श्री पुंडलिक रिलीज हुई तो वो ग्रीव्स कॉटन कंपनी में काम कर रहे थे। मूवी रिलीज के बाद कंपनी ने उन्हें कराची भेज दिया। वहां उनकी मुलाकात बाबूराव पाई नाम के एक नौजवान लड़के से हुई, जिसके साथ इन्होंने एक छोटा सा ऑफिस खोल लिया। ये भारत का पहला डिस्ट्रीब्यूटर ऑफिस बना, जहां हॉलीवुड की फिल्में मंगवाई जाती थीं और लोकल सिनेमाघरों में रिलीज होती थीं।
3 से 4 साल बाद मुंबई लौटकर दादा साहेब तोरणे ने मूवी कैमरा कंपनी शुरू की, जहां वो विदेश से वीडियो कैमरा और फिल्म मेकिंग के इक्विपमेंट इंपोर्ट कर बेचते थे। इनकी कंपनी की मदद से फिल्म मेकिंग में बड़ा बदलाव आया और इनका बिजनेस भी निकल पड़ा।

1929 में इन्होंने बाबूराव पाई के साथ जॉइंट वेंचर फेमस पिक्चर की स्थापना की, जो एक फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी थी। उस जमाने में ये कंपनी साइलेंट फिल्में डिस्ट्रीब्यूट कर लाखों का कारोबार करती थी
फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी से मुनाफा कमाते हुए दादा साहेब तोरणे समझ चुके थे कि भारत में फिल्मों का चलन हर साल बढ़ता रहेगा। उन्होंने हॉलीवुड की बोलती फिल्में भारत में दिखानी शुरू कर दीं। फिर बदलने दौर में उन्होंने खुद विदेश में बोलती फिल्म बनाने के लिए साउंड इक्विपमेंट्स की ट्रेनिंग ली। भारत आकर उन्होंने आर्देशिर ईरानी को भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा बनाने का सुझाव दिया और उनकी मदद की।
दादा साहेब तोरणे चाहते थे कि बोलती फिल्म बनाने के कॉन्सेप्ट को शुरुआत में राज रखा जाए, ऐसे में उन्होंने आलम आरा की मेकिंग गुपचुप तरीके से की। दो महीने में ये फिल्म बनकर तैयार हुई जो 14 मार्च 1931 को द मैजेस्टिक सिनेमा थिएटर में रिलीज हुई।

भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा ने इतिहास रचा और फिर एक बार दादा साहेब तोरणे का बिजनेस चल निकला। उन्होंने साउंड तकनीक से जुड़े सभी इक्विपमेंट्स विदेश से इंपोर्ट करवाए और उस जमाने की बड़ी प्रोडक्शन कंपनियों प्रभात, रंजीत, वाडिया को डिस्ट्रीब्यूट किया। साउंड फिल्में आने से साइलेंट फिल्मों का दौर खत्म हो गया।

दादा साहेब तोरणे ने मनोरंजन की बजाय सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने के लिए पुणे में अपना प्रोडक्शन हाउस सरस्वती सिनेटोन शुरू किया। इस प्रोडक्शन की पहली फिल्म शाम सुंदर जबरदस्त हिट रही। दूसरी फिल्म आउत घटाकेछा राजा भारत की पहली फिल्म है जिसमें डबल रोल दिखाए गए थे। इस प्रोडक्शन हाउस ने हिंदी, मराठी भाषा की करीब 17 फिल्में बनाईं, जिनमें से ज्यादातर हिट रहीं।
बदलते दौर के साथ दूसरे प्रोडक्शन की फिल्में हिट होने लगीं और दादा साहेब तोरणे ने फिल्में बनाना कम कर दीं। उनकी फिल्मों की सिर्फ एक कॉपी हुआ करती थी, जिसे हर शहर में घुमाकर दिखाया जाता था। ज्यादातर फिल्मों की रील्स में आग लगने से वो खत्म हो गईं।
पैसों की तंगी होने पर 1944 में दादा साहेब तोरणे ने अपना स्टूडियो अहमद नाम के एक शख्स को बेच दिया। उस शख्स ने ये स्टूडियो चकन ऑइल मील को बेचा
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय कई मुस्लिम पाकिस्तान जा रहे थे। इसी दौरान दादा का एक करीबी मुस्लिम दोस्त उनके सारे महंगे इक्विपमेंट्स चुराकर पाकिस्तान भाग गया। दादा साहेब का कैमरा और हर जरूरी सामान दोस्त ले भागा था।

इस धोखे ने दादा को ऐसा झकझोर दिया कि उन्हें तुरंत हार्ट अटैक आ गया। मां की मदद से उनके नुकसान की भरपाई तो हुई, लेकिन बुरी तरह टूट चुके दादा ने फिल्में बनानी छोड़ दीं। उन्होंने फिल्मों से रिटायरमेंट ले लिया। 19 जनवरी 1960 को दादा नींद से उठे ही नहीं।
फिल्म इतिहासकारों का मानना है कि 1912 में रिलीज हुई फिल्म श्री पुंडलिक एक प्ले की फोटोग्राफी रिकॉर्डिंग थी। वहीं इसका कैमरामैन जॉनसन भी ब्रिटिश मूल का था। ऐसे में इस फिल्म को भारतीय नहीं कहा जाएगा। जबकि 1 साल बाद 1913 में रिलीज हुई राजा हरिश्चंद्र को दादा साहेब फाल्के ने खुद बनाया और रिकॉर्ड किया था, ऐसे में दादा साहेब फाल्के को ही फादर ऑफ इंडियन सिनेमा का जनक कहा जाएगा।

दादा साहेब तोरणे के परिवार वालों ने 2013 में बॉम्बे हाईकोर्ट में ये कहते हुए पिटीशन फाइल किया है कि उन्हें हिंदी सिनेमा के जनक का क्रेडिट दिया जाना चाहिए। ये पिटीशन दादा साहेब के बेटे अनिल तोरणे, बहू मंगला तोरणे और इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के एसोसिएट विकास पाटिल ने दर्ज की है।
भले ही हिंदी सिनेमा के इतिहास में दादा साहेब फाल्के को हिंदी सिनेमा का जनक कहा गया है, लेकिन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में ये रिकॉर्ड दादा साहेब तोरणे के नाम पर है। ए पिक्टोरियल हिस्ट्री ऑफ इंडियन सिनेमा और मराठी सिनेमा की किताबों में भी इन्हें ही जनक माना गया है।