क्यों पकिस्तान में कोर्ट और सरकार आमने सामने, जानिए खास वजह

पाकिस्तान में सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते ऑर्डर दिया था कि पंजाब प्रांत में इलेक्शन के लिए सरकार 21 अरब रुपए इलेक्शन कमीशन को दे। इसके लिए 10 अप्रैल डेडलाइन है।

दूसरी तरफ, इलेक्शन कमीशन ने रविवार को साफ कर दिया है कि पैसा मिलना तो दूर, अब तक सरकार ने उससे किसी भी रूप में संपर्क तक नहीं किया है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति आरिफ अल्वी दरअसल, इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं।
सरकार का कहना है कि अक्टूबर में जनरल इलेक्शन शेड्यूल हैं। लिहाजा, पंजाब समेत चारों सूबों के असेंबली इलेक्शन भी आम चुनाव के साथ ही कराने चाहिए। इसकी वजह यह है कि मुल्क दिवालिया होने की कगार पर है, क्योंकि आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक के अलावा मित्र देश भी कर्ज देने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि दो बार चुनाव पर खर्च करने के बजाय सभी चुनाव एक ही बार करा लिए जाएं। सऊदी अरब चार महीने से 2 अरब डॉलर देने का वादा कर रहा है, लेकिन अब तक यह पाकिस्तान सरकार के पास नहीं पहुंचे हैं।
मान लीजिए अगर सऊदी 2 अरब डॉलर दे भी देता है तो पाकिस्तान को मई के आखिर तक 6 अरब डॉलर की तो सिर्फ कर्ज की किश्तें चुकानी हैं, ऐसे में सरकार कैसे यह किश्तें चुकाएगी, ये बड़ा सवाल है। वो भी तब जबकि उसके खजाने में पेट्रोल और गैस खरीदने तक के पैसे नहीं हैं।
यही वजह है कि अब तक इलेक्शन कमीशन को सरकार ने कोई फंड नहीं दिया है। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फौज को आदेश दिया है कि वो इलेक्शन ड्यूटी के लिए अफसरों और सैनिकों के नाम इलेक्शन कमीशन को दे। फौज ने भी ऐसा करने से मना कर दिया है। फौज ने कोर्ट से कहा- देश के कई हिस्सों में एंटी-टेररिज्म के ऑपरेशन चल रहे हैं। लिहाजा, इस वक्त फोर्स अलॉट करना मुमकिन नहीं है।
इमरान खान की पार्टी ने पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में जल्द से जल्द चुनाव कराने की मांग की है। इन दोनों में उनकी ही सरकारें थीं। उन्हें गिराया भी इमरान ने ही था।
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति इलेक्शन कमीशन पर पंजाब प्रांत में चुनाव कराने के लिए दबाव बढ़ाते जा रहे हैं। दूसरी तरफ, सच्चाई ये है कि इलेक्शन कमीशन के पास अपना कोई फंड नहीं है। वो इलेक्शन कंडक्ट कराने के लिए पूरी तरह सरकार के भरोसे है। जाहिर है, सरकार जब फंड नहीं देगी तो इलेक्शन कमीशन चुनाव भी नहीं करा सकेगा।
‘जियो न्यूज’ के मुताबिक, सरकार के पास इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन कमेटी है। इसकी मीटिंग के बाद ही ये तय हो सकता है कि इलेक्शन कमीशन को फंड कब मुहैया कराया जाएगा। डेडलाइन सोमवार को खत्म हो रही है, फंड जारी करना तो दूर सरकार ने इस कमेटी की मीटिंग तक नहीं बुलाई है। मीटिंग के लिए नोटिस पीरियड ही 7 दिन है। कमेटी की मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री फंड रिलीज के नोटिफिकेशन पर सिग्नेचर करता है।
10 अप्रैल यानी सोमवार तक अगर इलेक्शन कमीशन को फंड नहीं मिला तो सुप्रीम कोर्ट सरकार से जवाब तलब करेगा और इसके बाद सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव बढ़ना तय है।
शाहबाज शरीफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बता दिया है कि उसके पास बार-बार चुनाव कराने के लिए पैसा नहीं है। इसलिए सभी चुनाव अक्टूबर में ही कराए जाने चाहिए

इस मामले में एक चीज दिलचस्प है। इमरान खान की पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में चुनाव के लिए पिटीशन दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के लिए तो 14 मई की तारीख तय कर दी, लेकिन खैबर को लेकर कुछ नहीं कहा। इसकी सीधी वजह यह है कि पंजाब पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और माना जाता है कि यहां जिस पार्टी की हुकूमत होती है, उसकी ही केंद्र में सरकार बनती है।
फिलहाल, इमरान की पार्टी यहां मजबूत है और यही वजह है कि वो जल्द से जल्द यहां इलेक्शन कराना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट कितना निष्पक्ष है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने एक के बाद एक इमरान को 17 केस में जमानत दे दी। इतना ही नहीं खान के खिलाफ जो बेहद गंभीर चार मामले हैं, उनमें गिरफ्तारी वारंट न सिर्फ रद्द कर दिए बल्कि उन्हें पेश होने से भी राहत दे दी। हालात ये हो गए हैं कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उमर अता बांदियाल के खिलाफ उनके ही साथी जज खुलकर सामने आ गए हैं। इन जजों ने आरोप लगाया कि बांदियाल इमरान का खुलकर साथ दे रहे हैं और इसकी वजह से लोगों का भरोसा सुप्रीम कोर्ट से उठ गया है।
राष्ट्रपति आरिफ अल्वी खुले तौर पर इमरान की वकालत कर रहे हैं। वो बार-बार सरकार के खिलाफ बयान दे रहे हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने राष्ट्रपति से पद की मर्यादा बनाए रखने की अपील की है।