पाकिस्तान सरकार ने साफ कर दिया है कि वो अमेरिका में होने वाली डेमोक्रेसी समिट में हिस्सा नहीं लेगा। 2021 में शुरू हुई समिट में पाकिस्तान ने अब तक शिरकत नहीं की है। समिट में भारत समेत कुल 100 देशों को शामिल होने का न्योता भेजा गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पाकिस्तान सिर्फ इस वजह से समिट से अलग हुआ है, क्योंकि उसके कथित दोस्त चीन को अमेरिका ने नहीं बुलाया है, हालांकि ताइवान को न्योता भेजा गया है।
पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक- शाहबाज शरीफ सरकार इस समिट के लिए मिले न्योते को लेकर बेहद परेशान रही। कई दिन तक चले डिस्कशन के बाद आखिरकार यह तय किया गया कि चीन को नाराज करना मुल्क की इकोनॉमी के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। लिहाजा, बाइडेन के न्योते को स्वीकार नहीं किया जाएगा।
समिट 29 और 30 मार्च को वॉशिंगटन में होनी है। पाकिस्तान ने इसमें शिरकत न करने का फैसला मंगलवार यानी 28 मार्च को किया। 2021 में यह समिट कोविड की वजह से वर्चुअल फॉर्म में हुई थी। 2022 में भी पाकिस्तान इसमें शामिल नहीं हुआ था। तब इमरान खान सत्ता में थे। अब शाहबाज सरकार ने भी समिट से दूर रहने का फैसला किया है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा- इनविटेशन के लिए अमेरिका के शुक्रगुजार हैं। देश के हालात को देखते हुए हम इसमें हिस्सा नहीं ले पाएंगे।
अमेरिका ने इस समिट में चीन को न्योता नहीं दिया, क्योंकि वो चीन में डेमोक्रेसी नहीं है। तुर्किये को भी नहीं बुलाया गया, क्योंकि वहां इलेक्शन ट्रांसपेरेंट तरीके से नहीं होते। हैरानी की बात ये है कि चीन को चिढ़ाने के लिए उसके दुश्मन ताइवान को इनवाइट किया गया।
पाकिस्तान को चीन की तरफ से मिला अरबों डॉलर का कर्ज चुकाना है। अगर वो समिट में शामिल होता तो चीन उससे फौरन ये कर्ज अदा करने की मांग कर सकता है। इसके अलावा पाकिस्तान में कई प्रोजेक्ट चीन के पैसे से चल रहे हैं। इन्हें भी बंद किया जा सकता है। लिहाजा, पाकिस्तान चीन को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकता।
हालांकि, पाकिस्तान को इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत अमेरिका की है। उसकी वजह ये है कि IMF में 40% हिस्सा अमेरिका और नाटो देशों का है। उनकी मंजूरी के बिना पाकिस्तान को कर्ज नहीं मिल सकता। इस कर्ज के मिले बिना पाकिस्तान किसी भी वक्त डिफॉल्ट हो सकता है। लिहाजा, आप कह सकते हैं कि पाकिस्तान के लिए एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई जैसे हालात हैं। वो न अमेरिका से पंगा ले सकता है, और न चीन से।
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल का आरोप है कि इमरान के दौर में पाकिस्तान की इकोनॉमी तबाह हुई और इसे ठीक करना बेहद मुश्किल है।
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल का आरोप है कि इमरान के दौर में पाकिस्तान की इकोनॉमी तबाह हुई और इसे ठीक करना बेहद मुश्किल है।
पाकिस्तान के लिए IMF की 3 नई शर्तें
IMF ने एक बार फिर से पाकिस्तान को MEFP नाम का मेमोरेंडम देने से इनकार कर दिया है। ये वो मेमोरेंडम है जिसके हाथ लगते ही पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज मिल जाएगा। IMF चाहता है कि पहले पाकिस्तान सरकार अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के लिए उसकी शर्तों को माने। IMF ने पाकिस्तान सरकार के सामने कर्ज देने के लिए मुख्य तौर पर तीन तरह की शर्तें रखी हैं…
- IMF का कहना है कि पाकिस्तान पहले से ही 900 अरब डॉलर सर्कुलर कर्ज का सामना कर रहा है। ऐसे में अगर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए पाकिस्तान सरकार अभी कोई कड़ा फैसला नहीं लेती है तो इससे पार पाने में आगे काफी मुश्किल होगी। ऐसे में पाकिस्तान की जनता से अलग-अलग टैक्स के जरिए 170 अरब रुपए वसूलने की सलाह दी गई है।
- दूसरी शर्त ये है कि पाकिस्तान अपनी इकोनॉमी को बेहतर करने के लिए सामानों के निर्यात पर टैक्स में छूट दे। इसके बाद देश में तैयार माल दूसरे देशों में जाएगा, जिससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
- एक शर्त ये भी है कि पाकिस्तान के पास किसी भी हाल में विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर की कमी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए सऊदी अरब, चीन और UAE से मदद मांगने के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
वहीं, मिशिगन यूनिवर्सिटी में रिसर्च एंड पॉलिसी एंगेजमेंट के प्रोफेसर जॉन सिओरसियारी ने चेतावनी देते हुए कहा- ‘पाकिस्तान डिफॉल्टर होने के कगार पर है। अगले कुछ समय तक देश की हालात ऐसी रही तो देश के अलग-अलग हिस्से में लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर सकते हैं। इस स्थिति में तख्तापलट कर एक बार फिर से पाकिस्तानी सेना सत्ता संभाल सकती है।
पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने भी बीते दिनों एक टीवी इंटरव्यू में कहा- ये बिल्कुल सच है कि पाकिस्तान दिवालिया होने की कगार पर है। इससे बड़ी नाकामी और क्या हो सकती है कि 75 साल में हम 23वीं बार दिवालिया होने वाले हैं।
इशहाक डार फाइनेंस मिनिस्टर हैं। उन्होंने कुछ दिन पहले IMF के बारे में कहा था- हम उसके गुलाम नहीं हैं। इसके बाद से पाकिस्तान को इस संगठन ने किश्त जारी नहीं की
पाकिस्तान के पास इस वक्त सिर्फ 2.7 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार या फॉरेक्स रिजर्व हैं। ये पैसा सऊदी अरब और UAE का है। ये फंड्स सिक्योरिटी डिपॉजिट हैं यानी शाहबाज शरीफ सरकार इन्हें खर्च नहीं कर सकती। दूसरी बात, सऊदी और UAE 36 घंटे के नोटिस पर ये पैसा वापस ले सकती है। 2019 में भी पाकिस्तान का फॉरेन रिजर्व इतना ही था।
IMF ने 1.7 अरब डॉलर के कर्ज की तीसरी किश्त जारी करने से 2 महीने पहले ही इनकार कर दिया था। वो पाकिस्तान से शर्तों के मुताबिक, रेवेन्यू बढ़ाने और खर्च कम करने को कह रहा है।
8 दिसंबर 2022 को पाकिस्तान ने सऊदी को लेटर लिखा और जल्द से जल्द 3 अरब डॉलर कर्ज देने की गुहार लगाई। सऊदी ने मदद का भरोसा तो दिलाया, लेकिन अब तक ये पैसा पाकिस्तान को नहीं दिया। दूसरी तरफ, दूसरे देशों या संगठनों से उसे मदद नहीं मिल रही।
डार ने नवंबर 2022 में कहा था- चीन और सऊदी अरब से हमें 13 अरब डॉलर का फाइनेंशियल पैकेज मिलने जा रहा है। इसमें से 5.7 अरब डॉलर फ्रेश लोन्स हैं। चीन से 8.8 और सऊदी से 4.2 अरब डॉलर मिलेंगे। ये पैसा आज तक नहीं मिला।