3000 ऑडिशन दिए, इतनी बार रिजेक्ट हुआ कि मुझे खुद से ही नफरत हो गई थी, जानिये सुशील बोंथियाल बारे में

फिल्मों में काम पाना इतना आसान कहां है? हीरो तो छोड़िए, फिल्म में नौकर का रोल भी चाहिए तो आदमी हैंडसम होना चाहिए। मैं रोज-रोज ऑडिशन देने जाता था। इतनी बार रिजेक्ट हुआ कि खुद से नफरत सी हो गई, क्या मैं किसी लायक नहीं हूं, ऐसे ख्याल भी मन में आते थे। 3000 से ज्यादा ऑडिशन दिए, हर एक में रिजेक्ट हुआ, लेकिन फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी।
ये कहना है हाल ही में रिलीज हुई अक्षय कुमार की फिल्म सेल्फी में पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में नजर आए एक्टर सुशील बोंथियाल का। टीवी से फिल्मों में आए सुशील धीरे-धीरे बॉलीवुड में अपनी जगह बना रहे हैं। टीवी सीरियल फुलवा से इन्होंने ग्लैमर की दुनिया में कदम रखा था। इससे पहले नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में कई साल रहे।कलाकार बेहतरीन हैं, लेकिन इनको शुरुआत वैसी नहीं मिली। ग्लैमर की दुनिया के कई अनुभवों से गुजरना पड़ा। पहले फिल्म स्टार ही बनना चाहते थे, क्योंकि बचपन से एक्टिंग पर फोकस था। पिता खिलाफ थे, वो चाहते थे बेटा सरकारी नौकरी करे, लेकिन सुशील की आंखों में स्टार बनने का सपना था। उनको ये हुनर मां से मिला और हिम्मत भी। इसी के सहारे स्कूल, कॉलेज और फिर एनएसडी में अपनी कला के जौहर दिखाए।
मेरी पैदाइश उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के ब्राह्मण परिवार में हुई थी। जिस वक्त मेरा जन्म हुआ था, उस समय उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश एक ही था, इसी वजह से पापा की नौकरी लखनऊ में लगी थी। इस तरह से मेरी परवरिश लखनऊ में हुई। मेरे पिता जी राजस्व परिषद विभाग में क्लर्क थे। एक सरकारी मकान में मां, पापा और हम दो भाई रहते थे।
मेरे अंदर कला की ये खूबी जो है, वो मां की वजह से आई। उन्हें सिंगिंग-डासिंग का बहुत शौक था। वहीं मेरे पापा सख्त थे। उनका मानना था कि हम दोनों भाई सरकारी नौकरी करें।12वीं की परीक्षा के बाद पता चला कि थिएटर भी कुछ होता है। इसके बाद मैं लखनवी थिएटर से जुड़ा। वहां पर पहले दिन गाने का मौका मिला। शुरुआत में ही थिएटर में लीड रोल नहीं मिल जाता है। पहले बहुत सारा बैकस्टेज काम करना पड़ता है।
उन दिनों थिएटर में एक नाटक की रिहर्सल चल रही थी। उस नाटक का जो लीड एक्टर था जिसे नारद का रोल करना था, वो बीमार पड़ गया जिस वजह से उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इसके बाद ये फैसला हुआ कि नाटक में कास्ट किए गए सभी लोग अपना रोल वैसे ही करेंगे, लेकिन उस लड़के की लाइन बैकस्टेज से कोई एक लड़का स्क्रिप्ट लेकर पढ़ देगा। इस काम को करने के लिए मैंने अपना नाम दे दिया।
डायरेक्टर ने कहा कि मुझे लाइन बोलने के लिए स्क्रिप्ट दिया जाए, लेकिन मैंने मना कर दिया। इस पर उन्होंने बोला- तुम लाइन कैसे बोलोगे? मैंने बताया कि मुझे सारी लाइन्स याद हैं। मेरे जवाब पर वहां मौजूद सभी लोग शॉक्ड हो गए और हंसने भी लगे कि बिना प्रैक्टिस और स्क्रिप्ट के मैं लाइन कैसे बोल पाऊंगा।
मुझे उस नाटक के हर कैरेक्टर की लाइन याद थी क्योंकि मैं पूरा नाटक बहुत ही बारीकी से देखता था। इसके बाद से मैं ही नारद के कैरेक्टर की सारी लाइन बोलता गया। एक दिन डायरेक्टर ने मुझसे कहा कि मैं नाटक के रिहर्सल के दौरान उस लड़के की पोजिशन पर खड़ा भी रहूं ताकि दूसरों को प्रैक्टिस करने में कोई दिक्कत ना हो।
मैंने कहा कि मैं सिर्फ खड़ा क्यों रहूं, जिस तरीके से एक्ट करना है, जैसे चलना है, वो सब मैं कर सकता हूं। इसके बाद मैं एक्ट करने के साथ ही लाइन्स बोलने लगा। इस काम की वजह से मुझे बहुत सराहना मिली।
नाटक को तीन दिन बचे थे, लेकिन वो लड़का डिस्चार्ज होकर नहीं आया जिसके बाद डायरेक्टर ने फैसला लिया और मुझे उस रोल में कास्ट कर लिया। इस तरीके से मुझे मेरा पहला रोल मिला। इसके बाद मैं थिएटर करता रहा।
थिएटर के साथ ही मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी कर रहा था। इस वजह से मैं रात 11 बजे घर आता था। पापा को ये चीज बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। कभी-कभार इस वजह से हम दोनों का झगड़ा हो जाता था। मां को भी इसके लिए पापा डांटते थे कि वो मुझे क्यों नहीं समझाती हैं। वो मुझसे भी कहते थे कि अगर मुझे नाटक ही करना है तो पढ़ाई छोड़ क्यों नहीं देता। हालांकि उनकी इस डांट के बाद भी मैंने पढ़ाई जारी रखी।
थिएटर करते हुए मेरा काफी नाम हो गया था। लोग मुझे जानने लगे थे। दूरदर्शन के प्ले में भी काम करने लगा था। पहली बार मुझे दूरदर्शन के प्ले में ही एक छोटा सा रोल करने के लिए 1000 रुपए मिले थे। मेरी इस कमाई को देखकर पापा बहुत खुश हुए थे। ये बात 1997 की है।
उन दिनों मैंने ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रम में भी काम किया था, जिसके लिए मुझे 500 रुपए मिले थे। मेरी आवाज अच्छी थी इसलिए मुझे रेडियो में भी काम मिल गया। इस तरह से मैं अपना खर्चा खुद निकालने लगा।
इसी दौरान मुझे NSD के बारे में पता चला कि यहां पर एक्टिंग और थिएटर की प्रॉपर पढ़ाई होती है। मैंने यहां अप्लाई किया और पहली बार में ही मुझे यहां एडमिशन मिल गया। जब इस बात की जानकारी पापा को हुई तो वो बहुत खुश हुए। उन्हें लगा कि मैं इस फील्ड में बेहतर कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि मुझे जो करना है वो अब मैं पूरी आजादी के साथ कर सकता हूं। उन्होंने इस कदम को इसलिए भी सराहा कि उन्हें NSD में पढ़ाई के लिए कोई फीस नहीं देनी थी।
NSD में मुझे पढ़ाई के साथ 3000 हजार रुपए भी मिलते थे। इन्हीं पैसों से मेरा गुजारा होता था। NSD में पढ़ाई करने के बाद मैंने कुछ सालों तक थिएटर में एक्टिंग की, लेकिन उसके बदले कुछ पैसे नहीं मिलते थे। गुजारे के लिए कोई सोर्स ऑफ इनकम नहीं था, जिस वजह से मैंने दोस्तों के सुझाव पर मुंबई का रुख किया।
मुंबई का शुरुआती सफर आम स्ट्रगलर के जैसे ही मेरा भी था, संघर्षों से भरा। वहां पर 4-5 दोस्त एक साथ मिलकर रहते थे। कहीं एक या दो सीन का रोल मिल जाता था। कभी-कभार वो भी नहीं मिलता था। ये सिलसिला लगभग 4 साल तक चलता रहा।
ये दौर था जब टीवी शोज में नौकरों के रोल में भी सुंदर दिखना बहुत जरूरी होता था। मेरी शक्ल इतनी साधारण थी कि कोई नौकर का रोल भी नहीं देता था। नौकर के रोल के लिए भी हैंडसम लड़के ऑडिशन देने आते थे, जिन्हें देखकर असहज महसूस करने लगा था।
इस दौरान मुझे दिल्ली से जानने वाले थिएटर ग्रुप प्ले करने के लिए बुला लेते थे। एक प्ले के बदले 4-5 हजार रुपए मिल जाते थे। NSD से क्वालीफाई होने की वजह से वजह से मैं लोगों को एक्टिंग क्लास भी दे देता था। इस काम से भी आमदनी हो जाती थी। ये सारी चीजें ही मेरी कमाई का जरिया थे।
रोज काम की तलाश में निकलता था, लेकिन सिर्फ एक सीन या दो सीन का रोल ही मिलता था। प्रोडक्शन हाउस में काम मिलने की उम्मीद में अपनी तस्वीर छोड़ आता था कि कभी-कभी ना काम के लिए बुलावा जरूर आएगा। ये दौर बहुत दुखदायी था। पूरा दिन प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटने में ही निकल जाता था।
सिक्योरिटी गार्ड भी रोज आने की वजह से भगा देता था। कोई ये भी कहता था कि हमें अपनी फोटो दे दो, ऊपर पहुंचा दूंगा, लेकिन वहां से चले जाने के बाद वो मेरी फोटो फाड़ देता था। सही काम नहीं मिलने की वजह से मैंने एक्टिंग करना छोड़ दिया था।
ये सोचने पर भी मजबूर हो गया था कि NSD से पढ़ाई करने के बाद भी दर-दर की ठोकर ही खानी थी, तो इससे अच्छा कोई दूसरा काम कर लेता। एक्टिंग छोड़कर मैंने राइटिंग का काम करना शुरू कर दिया।
मैंने लगभग 3000 ऑडिशन दिए, लेकिन कहीं भी काम नहीं मिला। इस वजह से मुझे खुद के चेहरे से नफरत हो गई थी। मैंने नाक की सर्जरी कराने तक का फैसला कर लिया था, ताकि बेहतर दिख सकूं। प्लास्टिक सर्जरी के जरिए खुद को सुंदर बनाना चाहता था। इस कदर मैं इन रिजेक्शन से टूट गया था ।
हिंदी अच्छी थी इसलिए मुझे टीवी शोज घर एक सपना में स्टोरी राइटिंग का काम मिल गया। यहां पर ठीक-ठाक आमदनी हो जाती थी। यहां पर मैंने दो साल तक काम किया था। इसी दौरान मैं फिर से पृथ्वी थिएटर में प्ले करने लगा। एक दिन एक टीवी शो से मुझे ऑडिशन देने के लिए बुलावा आया, लेकिन मैंने मना कर दिया। मुझे लगा कि ऑडिशन देने के बाद फिर से काम नहीं मिलेगा। जिसने काॅल किया था, उन्होंने आश्वासन दिया कि ऐसा नहीं होगा।
मैंने ऑडिशन दिया और मेरा सिलेक्शन भी हो गया। इस शो का नाम फुलवा था, ये मेरे करियर का सबसे बड़ा ब्रेक साबित हुआ। इस शो में मैंने जन्नत जुबैर के पिता का रोल प्ले किया था। इस रोल से मुझे बहुत पहचान मिली। यहां तक कि सड़कों पर निकलना मुश्किल हो गया था। इसके बाद मैंने टीवी इंडस्ट्री में बहुत समय तक काम किया
पैसों की जरूरत थी इसलिए मैं भी पिता का रोल प्ले करता रहा, लेकिन एक समय बाद इस तरह के रोल से मैं पक गया। इसके बाद मुझे वेब सीरीज द चार्जशीट में काम करने का मौका मिला।
टीवी शोज में काम करने के बाद फिल्मों में काम आसानी से नहीं मिलता है। फिल्म इंडस्ट्री के लोग टीवी इंडस्ट्री के लोगों को काम देने में हिचकिचाते हैं और अपने से छोटा समझते हैं