बसपा प्रमुख मायावती ने के बसपा संस्थापक कांशीराम की जयंती पर माल्यार्पण किया, पढ़िए रिपोर्ट

बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की जयंती पर बसपा प्रमुख मायावती ने माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की। बसपा के पार्टी कार्यालय पर बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने काशीराम की प्रतिभा पर पुष्प अर्पित किया। इससे पहले मायावती ने ट्वीट करके लिखा कि विरोधियों के द्वारा आज भी लगातार षड्यंत्र तिरस्कार की राजनीति की जा रही है। जिसका उचित जवाब चुनावी सफलता व सत्ता के मास्टर चाबी प्राप्त कर के देते रहना जरूरी है। इस दौरान बसपा के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा व विधायक उमाशंकर सिंह समेत तमाम नेता मौजूद रहे।
बहुजन समाज पार्टी के द्वारा उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में काशीराम जयंती मनाई जा रही है। भले ही हाल में हुए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में बहुजन समाज पार्टी को मात्र एक सीट मिली हो और भाजपा, सपा और कांग्रेस के सामने बसपा कमजोर पड़ गई हो लेकिन दलित राजनीति के जरिए यूपी में सालों सरकार में रहने वाली बहुजन समाज पार्टी की नींव बहुत मजबूत है। हो भी क्यों न पार्टी के संस्थापक और बहुजन आंदोलन के नेता कांशीराम ने पिछड़ा वर्ग के अधिकारों के लिए जो आवाज उठाई, उसकी गूंज आज भी याद की जाती है। 15 मार्च को कांशीराम का जन्मदिन होता है।
कांशीराम का जन्म ब्रिटिश शासन काल में पंजाब के रूपनगर (वर्तमान में रोपड़ जिले) में 15 मार्च 1934 को हुआ था। उन्होंने रोपड़ के शासकीय महाविद्यालय से 1956 में बीएससी की डिग्री हासिल की। बाद में पुणे में स्थित गोला बारूद फैक्ट्री में क्लास वन अधिकारी के पद पर उनकी नियुक्ति हुई। लेकिन उन्हें जातिगत आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि डॉ भीमराव आंबेडकर की जयंती के मौके पर एक दलित कर्मचारी ने छुट्टी मांगी तो उसके साथ भेदभाव होने के बाद कांशीराम ने दलितों के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया।
कांशीराम ने बामसेफ की स्थापना की। यह न तो राजनीतिक पार्टी थी और न ही कोई धार्मिक संगठन। उसके बाद उन्होंने दलित शोषित समाज संघर्ष समिति नाम के सामाजिक संगठन की स्थापना की, जिस पर राजनीतिक प्रभाव भी रहता था। इसके बाद कांशीराम जी ने दलितों के उत्थान के लिए बाबा साहेब आंबेडकर के जन्मदिन के मौके पर 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।
बाद में कांशीराम की मुलाकात मायावती से हुई। वह मायावती के मार्गदर्शक बन गए। उन्होंने मायावी को बसपा के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया। हालांकि साल 2003 से कांशीराम ने राजनीति में अपनी सक्रियता कम कर दी और साल 2006 में कांशीराम का निधन हो गया। कांशीराम एक जमीनी कार्यकर्ता थे, चिंतक थे, जिन्होंने दलित उत्थान का सपना देखा था।
बसपा की स्थापना के साथ ही कांशीराम पूर्णकालिक राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ता बन गए। कांशीराम ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छत्तीसगढ़ चुनाव से की। यहां जांजगीर चांपा से कांशीराम ने पहली बार चुनाव लड़ा। उनकी पार्टी ने बहुत कम समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति पर अपना छाप छोड़ी। कांशीराम ने इस विचारधारा का प्रचार किया कि हक के लिए लड़ना चाहिए, गिड़गिड़ाने से हक नहीं मिलेगा।
कांशीराम डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की तरह चिंतक और बुद्धिजीवी नहीं थे लेकिन उनसे काफी प्रभावित थे। कांशीराम ने भारतीय राजनीति और समाज में एक बड़ा परिवर्तन लाने में अहम भूमिका निभाई। कांशीराम ने आंबेडकर के संविधान को धरातल पर उतारने के लिए काम किया। कांशीराम की आवाज को दबाने के लिए उन्हें नौकरी से सस्पेंड कर दिया गया। इस पर कांशीराम ने उन्हें निलंबित करने वाले अधिकारी की पिटाई कर दी थी।