मुंबई का आराम नगर, जहां से शुरुआत करके डायरेक्टर अनुराग कश्यप, तिग्मांशु धुलिया और एक्टर सुधीर मिश्रा ने फिल्मी दुनिया में अपना करियर बनाया। विक्की कौशल भी इसी आराम नगर में ऑडिशन के लिए आते थे। गुजरे दो दशक में आराम नगर बॉलीवुड में एंट्री गेट के तौर पर सामने आया है।
किसी भी युवा को अगर आज फिल्मी दुनिया में जगह बनानी है तो उसकी शुरुआत आराम नगर से ही होगी। यहीं पर प्रोडक्शन हाउसेस हैं, कास्टिंग एजेंसीज हैं। आराम नगर फेज-1 और फेज-2 इन दोनों इलाकों में वो लोग रहते हैं जो फिल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। कुछ नए हैं, कुछ सालों से जमे हैं।
बॉलीवुड बाहर से जितना ग्लैमरस दिखता है, वहां के स्ट्रगल की कहानियां उतनी ही डार्क हैं। स्ट्रगलर्स कहते हैं यहां इतना संघर्ष है कि हर शाम खुद को कमरे में बंदकर रोते हैं। लड़कियों के लिए हालत ज्यादा खराब हैं, लोग उन्हें ऑफर करते हैं कि कॉम्प्रोमाइज कर लो, तुम्हें रोल मिल जाएगा।
आज हम इसी आराम नगर की गलियों से स्ट्रगल की कुछ ऐसी कहानियां लाए हैं, जो आपको बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया का एक अलग सच दिखाएंगी
आराम नगर मुंबई के अंधेरी ईस्ट के पास वर्सोवा से लगा हुआ करीब 20 एकड़ में फैला इलाका है। यहां दर्जनों कास्टिंग एजेंसीज हैं। लगभग हर बड़े प्रोडक्शन हाउस का एक ऑफिस है। ऐड एजेंसियां भी हैं। आराम नगर दो हिस्सों में बंटा है फेज-1 और फेज-2। यहां करीब 900 घर हैं, इनमें लगभग 3,000 स्ट्रगलर्स रहते हैं। यहां 10 से 12 प्रदेशों के लोग मिल सकते हैं।
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यहां ब्रिटिश-इंडियन मिलिट्री का एक बैरक था। 1947 में ये ही इलाका बंटवारे के समय पाकिस्तान से लौटे लोगों के लिए शरणस्थली बना। सन 2000 तक भी ये सामान्य रहवासी इलाके जैसा था। साल 2000 के बाद यहां फिल्मों से जुड़े कई ऑफिस खुले और ये इलाका स्ट्रगलर्स का ठिकाना बन गया।
हमने अंकित से उनके और उनके स्ट्रगल के बारे में पूछा तो वो बोले – “खाना बनाने, घर खोजने, एक रोल की तलाश में पूरा दिन निकल जाता है। कभी-कभी लगता है कि हम लेबर क्लास के हैं। घरवालों के ताने सुनने पड़ते हैं, वो घर लौट आने के लिए कहते हैं।
कई बार तो उस दिन को भी कोसता हूं जब मैंने एक्टर बनने का सोचा था। सोचता हूं क्यों मैंने दूसरा काम करने का नहीं सोचा। फिर भी अब तक हौसला हारा नहीं। अपने घरवालों को कुछ तो करके दिखाएंगे। तब तक मुंबई नहीं छोड़ेंगे।”
इसके बाद हमारी बात अंकित के साथ खड़े उनके जानने वाले मनीष पांडे से हुई। मनीष बताते हैं- “अपने एक दोस्त के साथ रहता हूं। इस महीने का किराया भी नहीं दे पाया हूं। खाने के लिए अपने दूसरे दोस्तों के यहां जाता हूं। उनके लिए खाना बनाता हूं, उसी में से कुछ खुद भी खा लेता हूं।
फिर रोज सुबह 11 बजे हम ऑडिशन के लिए निकल जाते हैं। हर दिन लोगों से मिलते हैं, अपना इंट्रोडक्शन – नाम, उम्र, हाइट और मोबाइल नंबर देते हैं। ये खुद को बेचने जैसा लगता है। कई एजेंसीज को अपने वीडियो बनाकर ऑनलाइन भी भेजते हैं। बस उम्मीद में रहते हैं कि कहीं से कोई जवाब आएगा।”
फिर हमारी बात आकाश श्रीवास्तव से हुई। वो कहते हैं- “पिछले 3 दिन से ऑडिशन के लिए एक ही जगह जा रहा हूं। घंटों इंतजार करने के बाद कहा जाता है कि जिससे आपको मिलना है वो आज नहीं आए। कई स्ट्रगलर्स इतने परेशान हो जाते हैं कि वो 300 रुपए के लिए जूनियर आर्टिस्ट भी बन जाते हैं।
इतने कम पैसे में काम भी करते हैं और गालियां भी खाते हैं। जो साथी स्ट्रगलर्स हैं शाम को मिलकर सब अपनी-अपनी बातें बताते हैं। कई तो कमरे में खुद को बंद करके रोते भी हैं।
इसके बाद आगे बढ़कर हम पहुंचे स्ट्रगलर्स के पसंदीदा कैफे लव एंड पीस में। इस कैफे की ये खासियत है कि यहां पर एक लाइब्रेरी है। ये स्ट्रगलर्स के लिए मुफ्त है। आएं, किताबें पढ़ें और रख दें। इसका कोई चार्ज नहीं है। जब हम पहुंचे तो यहां ऑब्जरवेशन क्लास चल रही थी। ये उनके लिए हैं, जो राइटर बनना चाहते हैं।
क्लास लेने वाले स्टूडेंट की आंख पर पट्टी बांध दी जाती है, फिर उन्हें एक कोने से दूसरे कोने तक घुमाया जाता है। आसपास जो चीजें हो रही हैं, उसको ध्यान से सुनना है, फिर उन सभी को याद करके पाइंट्स लिखना है। इसके बाद उनका मास्टर कॉपी को देखकर सही- गलत पर अपनी राय देता है।
लव एंड पीस कैफे में इस तरह से ऑब्जरवेशन क्लास होती हैं। जिसमें व्यक्ति की आंखों पर पट्टी बांधकर उसे 50 से 100 मीटर तक घुमाया जाता है। वो जो भी महसूस करता है उसे लिखना होता है।
ये तो कैफे है लेकिन आराम नगर में ऐसी कई एजेंसियां भी हैं, जो स्ट्रगलर्स को एक्टिंग की ट्रेनिंग देती हैं। मॉडलिंग क्लासेस भी होती हैं। वोकल क्लासेस जिसमें हिंदी और अंग्रेजी सही तरीके से बोलना सिखाई जाती है। यहां फोटो स्टूडियोज भी हैं जो स्ट्रगलर्स के पोर्टफोलियो बनाने का काम करते हैं।
लव एंड पीस कैफे की ये भी खासियत है कि यहां पर खाने की सभी चीजें बेहद कम दाम पर मिलती हैं। वजह ये है कि यहां पर हर तरह के स्ट्रगलर्स आते हैं, किसी के पास कम पैसे होते हैं या किसी के पास ज्यादा और किसी के पास बिलकुल नहीं। उन्हें खाने में दिक्कत न हो इसलिए कैफे में खाना कम दाम पर मिलता है।
इसके बाद हम पहुंचे आराम नगर की एक चाय की दुकान पर। दुकान के मालिक देवीदास ने बताया- “कई बार तो स्ट्रगलर्स चाय पीते हैं, लेकिन फिर कहते हैं कि उनके पास पैसे नहीं हैं। कुछ लोग तो मुझसे वादा करते हैं कि अगली बार जब भी उनकी मुलाकात होगी, तब मेरा पैसा जरूर लौटा देंगे। कई लोग जिन्हें कुछ काम मिल जाता है, वो पैसे चुकाने भी आते हैं।
चाय की दुकान से निकल कर जब हम आगे बढ़े तो एक स्ट्रगल आर्टिस्ट की मां से मुलाकात हुई। इनका नाम है नीता भटनागर, बेटी सांची के करियर के लिए ये उनके साथ आराम नगर आई हैं। दोनों को संघर्ष करते हुए करीब 3 साल हो गए हैं। नीता पेशे से क्रिमिनल लॉयर भी हैं।
उन्होंने बताया- मैं अपनी बेटी के साथ हमेशा ट्रेवल करती हूं, जब से उसने एक्टर बनने का सपना देखा है तब से मैं उसके साथ हूं। वो किसी भी ऑडिशन में जाती है तो मैं उसके साथ होती हूं। फिल्मी दुनिया बहुत स्ट्रगल भरी है, बच्चों की मायूसी देखकर डर लगता है। कुछ ने सुसाइड किया, कुछ फिर अपने घर लौट गए, लेकिन मैं अपनी बच्ची को हमेशा यही सिखाती हूं कि तुम कभी हिम्मत मत हारना। मेहनत करोगी तो कामयाबी जरूर मिलेगी।
सफर के अगले पड़ाव पर हमारी मुलाकात राइटर राज और एक्ट्रेस प्रिया से हुई। दोनों ने अपना सफर इसी आराम नगर से शुरू किया था और आज राज एक राइटर हैं। वहीं प्रिया ने करियर की शुरुआत बतौर एक्ट्रेस की थी और आज खुद उनका प्रोडक्शन हाउस है।
बातचीत के दौरान राज ने बताया- “2014 में मैं मुंबई आया और मेरी पहली मुलाकात अनुराग कश्यप से आराम नगर में ही हुई थी। मुझे लिखने का बहुत शौक है और मैं अपने शहर की कहानी को लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं। अब तक कई कहानियां लिखीं और आगे उस पर काम भी चल रहा है। मैं कोयले की कहानी से बहुत ज्यादा प्रभावित हूं, मैं कोयले की चोरी होते हुए देखता था और मेरा अगला प्रोजेक्ट इसी पर आधारित हैं। इसके बाद मैं फिल्मों का रुख करूंगा। एक OTT प्लेटफॉर्म से उस फिल्म के लिए बात भी चल रही है।”
एक्ट्रेस प्रिया ने बताया- “2013 में मुझे मिस झारखंड का टैग मिला था और उसके बाद एक्ट्रेस बनने की राह पर निकल पड़ी। जब मुझे ये टैग मिला तब उसके बाद तुरंत मुझे धनबाद से एक प्रोड्यूसर का कॉल आया जिन्होंने मुझे फिल्म के लीड एक्ट्रेस का रोल ऑफर किया।
अभिनेता गोविंदा के मामा आर.पी.सिंह अपने बेटे को लॉन्च कर रहे थे, मेरा भी उस फिल्म से डेब्यू था। शुरुआत बहुत अच्छी रही, लेकिन फिर धीरे-धीरे ग्राफ गिरता गया। कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब घर नहीं लौटना। हमने भी अपने घरवालों से दूर रहकर काफी सैक्रिफाइज किया है, अब पीछे नहीं मुड़ सकते। अब मेरा खुद का एक प्रोडक्शन हाउस है जिसमें मैं कुछ फिल्में बना रहीं हूं, काफी संतुष्ट हूं। आराम नगर में 7 साल गुजर गए हैं।
स्ट्रगल लंबा है लेकिन सोच रखा है कि किसी तरह के कास्टिंग काउच या कॉम्प्रोमाइज से गुजरे बिना ही सक्सेस पानी है। कोई तो होगा यहां, जो हमारे जैसा ही होगा। हमें समझता होगा।”