आज पहली फीमेल सुपरस्टार श्रीदेवी की पांचवीं पुण्यतिथि है। श्रीदेवी के मेकअप मैन रहे हैं राजेश पाटिल। एक दशक से भी ज्यादा समय तक वो श्रीदेवी के साथ रहे हैं। राजेश के स्ट्रगल की अपनी एक अलग कहानी है, लेकिन उनकी जिंदगी का सबसे इमोशनल या सबसे मुश्किल लम्हा वो रहा, जब उन्होंने श्रीदेवी की मौत के बाद अंतिम संस्कार से पहले उनका आखिरी मेकअप किया।
बकौल राजेश – ऐसा लग ही नहीं रहा था कि श्रीदेवी नहीं रहीं। मैं रोते-रोते उनका मेकअप कर रहा था और ऐसा लग रहा था कि वो अभी बोल पड़ेंगीं कि राजेश ऐसे नहीं वैसे करो। वो अपने मेकअप को लेकर बहुत अलर्ट रहती थीं। उनके चेहरे पर क्या अच्छा लगेगा, ये उन्हें बखूबी पता था।
राजेश महाराष्ट्र के जलगांव से हैं। किसान परिवार से हैं और बचपन में घर की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं थी। बमुश्किल दसवीं तक पढ़ पाए। छोटे थे तो पाव बेचकर घर के लिए कुछ पैसे कमाते थे। मामा फिल्म इंडस्ट्री में कॉस्ट्यूम का काम देखते थे। उन्होंने मुंबई बुला लिया। मेकअप का काम सीखा। फिर 30 रुपए रोज में काम शुरू किया।
तब्बू, शाहरुख खान, रानी मुखर्जी से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक कई सेलेब्स का मेकअप कर चुके राजेश अब एक बार के मेकअप के 30 से 40 हजार तक चार्ज करते हैं। श्रीदेवी से उनका काफी जुड़ाव रहा है।
जब मैं मुंबई आया तो उस समय मेरे मामा फिल्म नगीना के सेट पर काम कर रहे थे। उस दौरान ही मैंने पहली बार श्रीदेवी को देखा था। पंकज खरबंदा श्रीदेवी और तब्बू, दोनों के मैनेजर थे। एक बार श्रीदेवी ने उनसे पूछा था कि किसी अच्छे मेकअप आर्टिस्ट को जानते हैं, तब उन्होंने मेरा रेफरेंस दिया क्योंकि उन्होंने मेरा काम तब्बू के साथ देखा था। तब श्रीदेवी ने कहा- ठीक है, बुला लो उनको।
इसके बाद मेरी उनसे मुलाकात हुई और उन्हें मेरा काम पसंद आया। जब मैं पहली बार उनका मेकअप कर रहा था तो बहुत डर लग रहा था कि इतनी सीनियर एक्ट्रेस हैं, कहीं कुछ गलत ना हो जाए। इसके बाद तो मैं उनके रेगुलर टच में रहा। फिल्मों के अलावा भी जब उन्हें कहीं बाहर जाना होता था या किसी रियलिटी शो में, तब मेकअप करने के लिए मैं ही उनके साथ जाता था। इस वजह से मेरा उनके साथ एक बहुत अच्छा रिश्ता बन गया था।
24 फरवरी 2018 को श्रीदेवी के निधन की खबर आई। ये मेरे लिए बड़ा शॉकिंग था। मैं भरोसा ही नहीं कर पा रहा था कि वो इस दुनिया में नहीं रहीं। उनका निधन दुबई में हुआ था और तब मैं उनके साथ जा नहीं पाया क्योंकि मेरे पास कोई और काम आ गया था।
जब लगातार दो-तीन दिन यही खबरें आईं तब विश्वास हुआ कि सच में अब वो नहीं हैं। श्रीदेवी की बाॅडी आने से पहले मैं उसी एरिया में था, जहां वो रहती थीं। वो 26 फरवरी की बात थी जब अचानक मेरे पास एक अनजान नंबर से काॅल आया। उन्होंने पूछा- राजेश जी कल क्या आप फ्री हो। मैंने कहा कि हां कल मैं फ्री हूं।
फिर उन्होंने कहा- कल आपको आकर श्रीदेवी का मेकअप करना है। उनकी इस बात पर मैं भड़क गया। मुझे लगा कि ये मजाक है, लेकिन उन्होंने समझाया कि ये बात सच है। डिजाइनर मनीष मल्होत्रा और उनके परिवार वालों का सुझाव है कि सुहागन की तरह सजाने के बाद ही उनका अंतिम संस्कार होगा।
मैंने उनसे कहा कि रात तक कन्फर्म बता दूंगा। इस बात ने मुझे रास्ते भर परेशान किया। मैं जब घर पहुंचा तो पत्नी को ये सारी बातें बताईं। उन्होंने कहा कि शायद कोई मजाक ही कर रहा हो। फिर से रात में कॉल आया और अगले दिन सुबह मुझे श्रीदेवी जी के घर आने के लिए कहा गया।
मैं अगले दिन (27 फरवरी को) अपना मेकअप किट लेकर वहां पहुंच गया, लेकिन श्रीदेवी की बाॅडी रात 11 बजे आई जिसके बाद मुझसे कहा गया कि अब कल सुबह आ जाना। फिर मैं घर वापस आ गया, लेकिन पूरी रात सो नहीं पाया। अगले दिन सुबह 7 बजे ही मैं उनके घर पहुंच गया।
जब मैं अंदर गया तो वहां पर श्रीदेवी की बाॅडी के पास अनिल कपूर की वाइफ सुनीता, रानी मुखर्जी समेत कई लोग मौजूद थे। मैंने अपना मेकअप किट खोला और मेकअप करना शुरू किया।
जब मैं उनका मेकअप कर रहा था तो ऐसा लगा कि वो अभी जाग जाएंगीं और कहेंगीं- राजेश ये गलत है, ये ठीक करो। पहले भी जब मैं उनका मेकअप करता था, तो वो शांत नहीं रहती थीं। उनको पता था कि उनके फेस पर क्या अच्छा लगेगा, वो सारी चीजें बताती रहती थीं।
रोते-रोते श्रीदेवी का आखिरी मेकअप किया
वो हर काम बहुत परफेक्शन से करती थीं, इसलिए मैं उनकी पसंद की बिंदी लेकर गया था। जब मैं उनका वो आखिरी मेकअप कर रहा था, मेरी आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे। खुद को मुश्किल से संभाल पा रहा था। ये मेरी लाइफ का इमोशनल मोमेंट था जो ताउम्र मुझे याद रहेगा।
महाराष्ट्र के जलगांव में हुआ जन्म, मां ने परवरिश की
मेरा जन्म महाराष्ट्र के जलगांव में 12 फरवरी 1971 को हुआ था। हम दो बहन और दो भाई हैं, इनमें मैं सबसे छोटा हूं। मेरा संयुक्त परिवार था, लेकिन कमाई का कोई बड़ा जरिया नहीं था। मेरे पापा खेती का काम करते थे। हालांकि पापा को हम लोगों से कोई खास मतलब नहीं रहता था।
उनकी एक अलग दुनिया थी और वो उसी में खोए रहते थे। मां ने हमें पाल-पोस कर बड़ा किया। घर की स्थिति बहुत खराब थी। कभी-कभार मामा कुछ पैसा मनी-ऑर्डर कर देते थे। लेकिन हम क्या खा रहे हैं, कैसे रह रहे हैं, इस पर पापा का कोई ध्यान नहीं रहता था।
तंगी थी तो पाव बेचकर किया गुजारा
बचपन तंगी में ही बीता है। इसी वजह से मैंने 12 साल की उम्र से काम करना शुरू कर दिया था। गांव से थोड़ी दूर से मैं सवा छह रुपए में 100 पाव खरीद कर लाता था और घर-घर जाकर उसे बेचता था। इसके बदले मुझे एक पाव के दस पैसे मिलते थे। इस तरह से मुझे 100 पाव से 10 रुपए मिलते थे। उस समय 10 रुपए का बहुत महत्व था। जो कमाई होती थी उससे मैं आने-जाने का किराया निकाल लेता था और कुछ बचत भी करता था। मैंने ये काम लगभग 1 साल तक किया था। बहन के पास कपड़े नहीं थे तो मैंने जमा किए हुए पैसों से उसके लिए कपड़े खरीदे थे।
गरीबी ज्यादा थी इसलिए पाव बेचने के अलावा जो भी काम मिलता गया, वो मैं करता गया। मैंने होटल और आम की दुकान पर काम किया है, राशन की दुकान पर राशन बांटने का भी काम किया।
जब गांव में नाटक होता था तो वहां पर आर्टिस्ट का मेकअप करने के लिए लोकल आर्टिस्ट आते थे। उनको मेकअप करता देख मुझे बहुत अच्छा लगता था। एक दो बार मैंने भी नाटक में काम किया था। मेरे कजिन भी मेकअप आर्टिस्ट थे, जो फिल्म इंडस्ट्री में काम करते थे। इन्हीं लोगों के काम को देखकर मुझे प्रेरणा मिलती थी और मन भी इस फील्ड में काम करने का करता था, लेकिन गांव में इस तरह के काम को लेकर कोई स्कोप नहीं था।
इसके बाद मैं 16 साल की उम्र में मुंबई आ गया था। यहां पर मेरे मामा रहते थे जो फिल्म इंडस्ट्री में कॉस्टयूम डिपार्टमेंट में थे। पैसों की ज्यादा जरूरत थी इसलिए मामा ने यहां बुला लिया कि वो फिल्म इंडस्ट्री में ही नौकरी लगवा देंगे।
जब मैं यहां आया तो मैंने मामा को बताया कि मुझे मेकअप आर्टिस्ट का काम करना है। इसके बाद मामा मुझे फिल्म इंडस्ट्री के एसोसिएशन में मेंबरशिप दिलाने के लिए ले गए, लेकिन मेंबरशिप नहीं मिली। वजह ये थी कि उस समय मेरी उम्र 16 साल की थी और 18 साल के ऊपर के ही लोग एसोसिएशन में मेंबरशिप ले सकते थे। आखिरकार मुझे वापस गांव लौटना पड़ा, यहां पर फिर से मैं छोटे-मोटे काम करने लगा।
2 साल के बाद मैं फिर मुंबई आया। तब मामा ने फिल्म इंडस्ट्री के एसोसिएशन में मुझे मेकअप आर्टिस्ट का मेंबरशिप कार्ड दिला दिया। उस कार्ड से मुझे सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री मिली थी, लेकिन काम नहीं मिला। मामा ने अपने जानने वाले एक दो लोगों से मेरी जान-पहचान करवा दी थी। हालांकि इसके बाद भी मैं काम के लिए बहुत भटका, बहुत लोगों से मिला, लेकिन कई दिनों तक मुझे काम नहीं मिला।
इधर, मुंबई आने के बाद रहने का भी ठिकाना नहीं था। मामा का परिवार भी बड़ा था, जिस वजह से रहने में दिक्कत हो रही थी। कुछ दिनों तक मैं उनके घर रहा, लेकिन बाद में एक दोस्त से जान-पहचान हुई और मैं उसके साथ रहने चला गया। वहां पर मुझे दो टाइम का खाना मिलता था, लेकिन बिल्डिंग के नीचे बिस्तर बिछा कर सोना पड़ता था। इस तरह वहां मैंने लगभग 2 साल तक गुजारा किया।
एक वक्त ऐसा भी आया कि मुंबई छोड़ने का भी फैसला कर लिया था। फिर सोचा कि जब इतना वक्त दे दिया है तो थोड़ा और दे दूं, क्या पता आगे कुछ बेहतर ही हो जाए। लंबे स्ट्रगल के बाद मुझे कई अच्छे लोगों से काम सीखने का मौका मिला। मुझे सीनियर मेकअप आर्टिस्ट पंढरी दादा के साथ काम सीखने का मौका मिला।
उस समय एडवर्टाइजिग इंडस्ट्री बहुत बड़ी थी। ऐसा कहा जाता था कि जो इस इंडस्ट्री में काम करेगा, उसका बहुत नाम होगा, इसलिए मैंने इसमें भी काम किया। मैंने फैशन शोज में मॉडल के साथ काम किया है। इसके बाद मुझे एक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला।
भले ही इस इंडस्ट्री में फिल्में हिंदी में बनती हैं, लेकिन लोग बात सिर्फ इंग्लिश में ही करना चाहते हैं। जब मैं फिल्म इंडस्ट्री में आया था तो मुझे इंग्लिश नहीं आती थी। लोग क्या बोलते थे, कुछ भी समझ में नहीं आता था। इस वजह से लोग मेरा मजाक भी उड़ाते थे। वजह ये भी कि गांव में मैंने सिर्फ दसवीं तक की ही पढ़ाई की थी। बहुत लोग मुझसे कहते थे- आप को तो इंग्लिश नहीं आती है तो आप इस तरह से यहां पर काम नहीं कर पाएंगे।
लोगों की ये बातें मेरे दिल पर गईं, जिसके बाद मैंने ठान लिया कि मैं इंग्लिश सीख कर ही रहूंगा। जो लोग इंग्लिश बोलते थे, उनको ध्यान से सुनता था। मैगजीन पढ़ता था, भले ही एक दो शब्द का मतलब समझ में नहीं आता था, लेकिन पढ़ता रहता था। इस तरह से मैंने इंग्लिश बोलना सीखा है।
एक बार मैं किसी फिल्म में सीनियर मेकअप आर्टिस्ट सर मुनीर अहमद के साथ काम रहा था। ये मेरा मुंबई के बाहर पहला शूट था। यहां पर जब सर स्टार्स का मेकअप करते थे तो मैं बस देखता था। एक दिन मेरे सामने रजा मुराद बैठ गए। कुछ देर तक तो मैं शांत रहा, लेकिन फिर मैंने उनका मेकअप करना शुरू किया।
राज मुराद को भी लग गया कि अभी ये बच्चा है और मेकअप सीख रहा है, लेकिन वो कुछ बोले नहीं। जब सर ने मुझे ये करते देखा तो बोले कि ये क्या कर रहे हो, लेकिन रजा मुराद ने बोला कि कोई बात नहीं, सीखने दो, बच्चा है। इस घटना के बाद मेरा हौसला बढ़ता गया और मैं काम सीखता गया।
इसके बाद मुझे धर्मेंद्र के साथ काम करने का मौका मिला। जब मैंने उनके साथ काम किया तो लोग मेरी बहुत तारीफ करते थे, क्योंकि उस समय धरम जी से इंडस्ट्री में सब लोग डरते थे। इस वजह से उनके साथ काम करने पर बहुत वाहवाही मिली। वो मुझसे बहुत प्यार से बात करते थे।
मेरे करियर में डाउनफॉल भी आया था। जब इंडस्ट्री में मेरा काम अच्छा चलने लगा था तो मैंने एक मराठी फिल्म बनाई थी, जो ठीक से रिलीज नहीं हो पाई। वजह ये थी कि मुझे मार्केटिंग स्किल्स की कोई जानकारी नहीं थी। इस वजह से मेरा बहुत नुकसान हुआ था।
जब मैं करियर के शुरुआती दिनों में जिन आर्टिस्ट के साथ काम करता था वो कभी-कभार 30 रुपए दे देते थे और कभी वो भी नहीं मिलते थे। इसके बाद मेरी फीस 100 रुपए हुई। कुछ समय बाद ये 300 तक पहुंच गई।
आज जब मैं किसी बड़े आर्टिस्ट के साथ काम करता हूं तो एक दिन की फीस 30-40 हजार तक होती है। हालांकि ये मेरा फिक्स चार्ज नहीं है, कम चार्ज में भी मैं मेकअप करता हूं।