अब तक जो दर्शनार्थी ऊपर भवन तक जाने में अक्षम होते थे। वह या तो पिट्ठू या खच्चर पर बैठकर दर्शन करने पहुंचते हैं। यह तरीका थोड़ा मंहगा होता है जिस वजह से हर कोई इसका उपयोग नहीं कर पाता है और मन मसोस कर रह जाता है। इसके अलावा 12 किमी जाने और आने में लगभग 1 दिन पूरा लग जाता है. लेकिन इस रोप वे के लग जाने के बाद यह प्रक्रिया चंद मिनटों में सिमट कर रह जाएगी, इस 2.4 किमी लंबे रोपवे के लिए रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकनोमिक सर्विस ने बोली आमंत्रित की है।
इस रोप वे के बनने के बाद हजारो फीट ऊंचे इस धार्मिक स्थल तक पहुंचने में लगने वाले 5-6 घंटे का वक्त सिमट कर 6 मिनट हो जाएगा। यह परियोजना 3 साल में बन कर पूरी हो जाएगी, और यह कटरा में स्थिति बेस कैंप ताराकोट से शुरू होकर मंदिर के करीब सांझी छत तक जाएगी। इस रोप वे में गोंडोला केबल कार सिस्टम लगाया जाएगा।
गोंडोला केबल कार जिसे एरियल रोप वे के नाम से भी जाना जाता है, एक तरह का एरियल यानी हवाई केबल कार सिस्टम होता है। जिसमें एक केबिन पहाड़ों या खाड़ियों में एक जगह से दूसरी जगह कई तारों के जरिये यात्रा करता है।गोंडाला केबल कार में विशेषतौर पर दोहरी तार व्यवस्था होती है। जिसमें दो केबिन एक ट्रेक पर यात्रा करते हैं, जो एक या कई समान तारों पर स्थित होते हैं इस तरह दोनों केबिन एक कर्षण यानी ट्रेक्शन तार के ज़रिये मजबूती से जुड़े होते हैं, यह तार पहाड़ पर बनाए गए स्टेशन में लगी पुली के माध्यम से चलते हैं, पुली ही इन्हें आगे और पीछे लाने ले जाने का काम करती है। इस तरह जब एक केबिन ऊपर जाता है तो दूसरा नीचे आता है। दो साल पहले माता वैष्णो देवी मंदिर में त्रिकुट पहाड़ से अन्य पहाड़ पर स्थित भैरों मंदिर के लिए एक रोप वे की शुरूआत की गई थी।
इस रोपवे के बनने के जहां वक्त बचेगा, वहीं यह हेलीकॉप्टर या दूसरे विकल्पों की तुलना में काफी सस्ता होगा।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2018 में तारकोट से मंदिर तक जाने के लिए एक अन्य मध्य मार्ग का उद्घाटन किया था।जिसमें चढ़ाई तुलनात्मक रूप से काफी कम है। इसी तरह श्रद्धालुओं की सहूलियत के लिए 2020 में दिल्ली से कटरा तक के लिए वंदे भारत ट्रेन का संचालन भी शुरू किया गया था।
बोली के लिए मंगाए गए दस्तावेज बताते हैं। कि आज भी कई लोग देवी के दर्शन के लिए 12 किमी पैदल चल कर जाना ही पंसद करते हैं, लेकिन जो इसके अभ्यस्त नहीं है उन्हें ऊपर तक पहुंचने में बहुत तकलीफ होती है। खासकर ऐसे लोग जिनका वजन ज्यादा है या जो चलने में अक्षम है। जिन्हें सांस की तकलीफ है या जो बुजुर्ग है। उनके लिए यह रोपवे काफी सहूलियत प्रदान करेगा. इसके संचालन से 5200 फीट ऊंचाई पर स्थित मंदिर तक जाने का वक्त 5.6 घंटे से घटकर 6 मिनिट रह जाएगा। इसके साथ ही यह रोपवे एक तरफ जहां पर्यावरण की रक्षा करेगा वहीं दूसरी तरफ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी होगा क्योंकि इसमें सवार होकर वह पहाड़ों के मनोरम नजारों को देख पाएंगे।जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
इसके अलावा दस्तावेजों में लिखा है। कि गर्मी के मौसम में श्रद्धालु दिन के वक्त मंदिर में जाने से बचते हैं, लेकिन रोपवे लगने के बाद पर्यटक आसानी से किसी भी वक्त मंदिर में दर्शन करने जा सकेंगे। इसी तरह खच्चरों से होने वाली गंदगी और प्रदूषण से भी बचाव होगा। और कम वक्त लगने की वजह से भवन में होने वाली भीड़ भी कम होगी जिससे किसी भी तरह की दुर्घटना से भी बचाव हो सकेगा।