अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर में शेर खान बने प्राण का ये डायलॉग तो याद होगा। भारी आवाज और आंखों से ही खौफ पैदा कर देने वाले प्राण सिकंद बॉलीवुड में सबसे आलादर्जे के विलेन रहे हैं। 7 दशक के एक्टिंग करियर में उन्होंने एक से एक यादगार किरदार निभाए हैं। वे पहले ऐसे विलेन थे, जिनको देखकर लोग अक्सर डर जाया करते थे। आज इन्हीं प्राण सिकंद का 104वां जन्मदिन है।
उनकी अदाकारी का ही कमाल था कि लोग उन्हें घर बुलाने से बचते थे, साथ आने-जाने या ठहरने से कतराते थे। औरतें उनसे बात करने में भी डरती थीं, उन्हें देखकर छिप जाया करती थीं। एक इंटरव्यू में प्राण ने खुद इसका जिक्र किया था कि मैं जब सड़कों पर निकलता था तो लोग मुझे गुंडा, लफंगा और बदमाश कहकर बुलाते थे। लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना बंद कर दिया था।
लेकिन, असल जिंदगी में प्राण साहब इससे बिलकुल उलट निहायत शरीफ और सुलझे हुए इंसान थे। जिंदगी के शुरुआती सालों में उनका जुनून फोटोग्राफर बनने का था। लेकिन, लाहौर में एक पान की दुकान पर खड़े-खड़े इन्हें फिल्मों का ऑफर मिला। तब लाहौर भारत का ही हिस्सा था। 1947 तक इन्होंने वहीं कई फिल्में कीं, फिर विभाजन के बाद भारत आ गए। मुंबई में करियर दोबारा शुरू किया।
पहली ही फिल्म से प्राण वो विलेन बने जो हीरो से ज्यादा फीस लेते थे। करीब 70 साल के करियर में उन्होंने 362 फिल्मों में काम किया। लाहौर से मुंबई तक का दो फिल्म इंडस्ट्रीज का सफर बहुत दिलचस्प रहा।
बात 1940 के आसपास की है। भारत पर ब्रिटिश हुकूमत थी। देश के दो शहरों में फिल्में बना करती थीं। पहला शहर कोलकाता, दूसरा लाहौर। लाहौर सिनेमा फलफूल रहा था। वहां की फिल्मों में एक विलेन सबका ध्यान खींच रहा था। उसका नाम था प्राण सिकंद। 1940 से 1947 के बीच प्राण ने कोई 22 फिल्मों में काम किया जो लाहौर की फिल्म इंडस्ट्री में बनीं।
1947 में देश आजाद हुआ और विभाजित भी। दंगे शुरू हुए तो दिल्ली से लाहौर तक एक जैसा ही मंजर था। लाहौर में काम कर रहे प्राण ने अपनी पत्नी शुक्ला अहलूवालिया और एक साल के बेटे अरविंद को मध्य प्रदेश के इंदौर में अपनी भाभी के यहां भेज दिया।
उन्हें डर था कि दंगे में परिवार को कुछ हो ना जाए। 11 अगस्त 1947 को प्राण अपने बेटे का जन्मदिन मनाने लाहौर से इंदौर आए। यहां आकर रेडियो पर समाचार सुना तो पता चला लाहौर दंगों की आग में बुरी तरह झुलस गया है और हिंदुओं को वहां चुन-चुन कर मारा जा रहा है।
प्राण यहीं रह गए। 1945 के आसपास कोलकाता फिल्म इंडस्ट्री पूरी तरह से मुंबई शिफ्ट हो चुकी थी। उन्होंने सोचा, काम तो ये ही आता है, क्यों ना मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए। लाहौर में तो नाम चलता ही था, तो यहां भी काम मिलने में दिक्कत नहीं आएगी। ये सोचकर वो परिवार को लेकर मुंबई आ गए। मगर, जैसा सोचा था, वैसा हुआ नहीं। मुंबई में उन्हें ना कोई पहचान रहा था और ना काम मिल रहा था।मुंबई में उन्होंने 5 स्टार होटल ताज में एक कमरा लिया और वहां परिवार के साथ रहने लगे, लेकिन कुछ दिनों बाद ही उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। काम के सिलसिले में उन्होंने कई प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के ऑफिस के चक्कर लगाए, लेकिन बात नहीं बनी। पैसे भी धीरे-धीरे खत्म होते गए। आलम ये हो गया कि उन्हें अपने परिवार के साथ एक लाॅज में रहना पड़ा। एक होटल में काम भी करना पड़ा। भारत-पाकिस्तान के विभाजन ने उनके करियर पर विराम लगा दिया था।
एक साल के संघर्ष के बाद किस्मत ने फिर करवट बदली और प्राण की हिंदी सिनेमा के पर्दे पर एंट्री हुई। मशहूर लेखक सआदत हसन मंटो और एक्टर श्याम ने उनके नाम की सिफारिश डायरेक्टर सईद लतीफ से की। ऑडिशन के लिए उन्हें बाॅम्बे टाकीज बुलाया गया, लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो लोकल ट्रेन से ऑडिशन देने जा पाएं। इसी वजह से वो मुंबई की सुबह वाली पहली लोकल ट्रेन पकड़कर बाॅम्बे टॉकीज गए। सुबह का सफर उन्होंने इसलिए चुना, क्योंकि उस वक्त ट्रेन में TT नहीं होता था और टिकट की चेकिंग भी नहीं होती थी।
ऑडिशन देने के बाद प्राण को फिल्म जिद्दी में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म के लिए उन्हें 500 रुपए महीना सैलरी देने की बात हुई, लेकिन उन्होंने 100 रुपए तुरंत मांग लिए। वजह ये थी कि वो अपनी पत्नी को एंबेसडर कार से डिनर पर ले जाकर काम मिलने की खुशी बताना चाहते थे।
फिल्म जिद्दी हिट रही जिसके बाद प्राण को 3 और फिल्मों के ऑफर आए। साथ ही ये बात भी फैल गई कि ये हर फिल्म के लिए 500 रुपए फीस चार्ज करते हैं। इतनी ही फीस हीरो भी लिया करते थे। इस तरह वो ऐसे विलेन बने जिनकी फीस हीरो या विलेन से ज्यादा होती थी।
एक बार उनके पास एक फिल्म का ऑफर आया। उन्होंने काम करने के लिए हामी भर दी, लेकिन प्रोड्यूसर ने कहा कि 500 रुपए फीस नहीं देंगे क्योंकि फिल्म के हीरो की ही फीस उतनी है। प्राण ने फिल्म करने से मना कर दिया। बाद में उस प्रोड्यूसर को 100 रुपए ज्यादा फीस दे कर उन्हें कास्ट करना पड़ा। इस तरह उन्होंने हीरो से ज्यादा 600 रुपए प्रति महीना उस फिल्म के लिए मिले।
फिल्म गृहस्थी की सफलता के बाद प्राण ने 4 फिल्मों में काम किया। थोड़ी सफलता मिलने के बाद वो छोटे से लाॅज से निकल कर परिवार के साथ भायखला में किराए पर रहने लगे। लगातार मिल रही सक्सेस के बाद उन्होंने एक कार भी खरीद ली। 50 के दशक में प्राण हिंदी सिनेमा के बेहतरीन विलेन बन गए।
प्राण अपने मेकअप को लेकर बहुत सजग रहते थे। अखबार में छपी हुई किसी नेता की फोटो उनको पसंद आती थी तो वो उसे काटकर रख लेते थे। वो ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि जब किसी फिल्म में वो खुद को उसी के जैसे पर्दे पर उतारें तो कोई कमी ना हो। अपने घर पर भी वो मेकअप का सामान रखते थे।
फिल्म खानदान में उन्होंने हिटलर के लुक को काॅपी किया था। जुगनू में उन्होंने बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान का गेटअप कॉपी किया था, जिसमें वो प्रोफेसर के रोल में नजर आए थे। फिल्म अमर अकबर एंथनी में उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का गेटअप चुना था।
दमदार अदाकारी की वजह से प्राण को हीरो के रोल भी ऑफर हुए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। इस पर उनका कहना था कि रोमांटिक रोल करने में उन्हें बहुत परेशानी होती थी। वो कहते थे- मैं पेड़ के पीछे या बगीचे में हीरोइन के साथ रोमांस नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि वो मुझे पसंद नहीं है। मैं वहीं रोल करूंगा जो मुझे पसंद है, मुझे विलेन का रोल करना ही पसंद है।
प्राण के द्वारा निभाए गए खलनायकों के किरदार के चलते लोग उन्हें सड़कों पर गालियां देते थे। एक समय में लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना तक बंद कर दिया था। प्राण ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था- ‘उपकार’ से पहले सड़क पर मुझे देखकर लोग बदमाश, लफंगा और गुंडा कहा करते थे। उन दिनों जब मैं परदे पर आता था तो बच्चे अपनी मां की गोद में दुबक जाया करते थे और मां की साड़ी में मुंह छुपा लेते। रुआंसे होकर पूछते- मम्मी वो चला गया क्या, क्या अब हम अब अपनी आंखें खोल लें।एक बार प्राण हॉन्गकॉन्ग में फिल्म “जौहर महमूद इन हॉन्गकॉन्ग” की शूटिंग कर रहे थे। फिल्म में उनके साथ अरुणा ईरानी भी थीं। दोनों के सीन्स की शूटिंग जल्दी खत्म हो गई, जिसके बाद प्रोड्यूसर ने प्राण से कहा कि वो अरुणा ईरानी के साथ मुंबई चले जाएं। दोनों की हॉन्गकॉन्ग से कोलकाता, फिर मुंबई की फ्लाइट थी, लेकिन जब वो कोलकाता पहुंचे तब तक मुंबई की फ्लाइट जा चुकी थी। जिस वजह से अगले दिन की फ्लाइट के लिए अरुणा के साथ उन्हें एक होटल में रुकना पड़ा।
इस बात से अरुणा ईरानी डर गईं कि कहीं प्राण उनके साथ कुछ गलत ना कर दें जैसा कि वो फिल्मों में करते हैं। जब दोनों होटल पहुंचे तो प्राण ने उनके कमरे में जा कर कहा- दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना, कोई भी आए दरवाजा मत खोलना। देर रात किसी चीज की जरूरत पड़ी तो मुझे बताना, मैं बगल वाले ही कमरे में हूं। उनकी इस बात से अरुणा बहुत भावुक हो गईं, क्योंकि वो उनको रियल लाइफ में भी विलेन मान बैठी थीं।
दिलीप कुमार के साथ प्राण ने कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया। उनसे ही काॅमेडी भी सीखी थी। जब दिलीप कुमार की शादी होने वाली थी तो वो कश्मीर में चल रही शूटिंग को बीच में कुछ दिनों के लिए छोड़कर मुंबई चले आए थे।
फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती हैं’ में प्राण ने डाकू राका का रोल निभाया था। जब इस फिल्म की शूटिंग दिल्ली में चल रही थी तो वो एक दिन अपने दोस्त के घर चाय पर गए। दोस्त ने उनकी मुलाकात करवाने के लिए अपनी बहन को बुलाया। बहन प्राण को देखते ही अपने कमरे में भाग गई।
कुछ देर बाद प्राण भी लौट गए। रात को उनके दोस्त ने काॅल किया और बताया- बहन उन्हें देखते ही डर गई थी इसलिए कमरे में भाग गई। उसने मुझसे कहा कि ऐसे गुंडे को घर क्यों बुलाते हो? ये बात सुनकर प्राण खूब हंसे।
जब फिल्म हलाकू में मीना कुमारी को प्राण के अपोजिट कास्ट किया गया तो वो बहुत उदास हो गईं। उनका कहना था कि दोनों की जोड़ी अच्छी नहीं लगेगी। जब बाद में मीना कुमारी ने उन्हें कास्टयूम में देखा तो दंग रह गईं। इस किस्से को याद करके उन्होंने एक बार कहा था कि शायद उस किरदार को प्राण के अलावा कोई और बेहतरीन तरीके से नहीं निभा सकता था।
प्राण का जन्म 12 फरवरी, 1920 को सरकारी ठेकेदार लाला केवल कृष्ण सिकंद के घर दिल्ली में हुआ था। बंटवारे से पहले उन्होंने अपना करियर बतौर फोटोग्राफर शुरू किया था। वो दिल्ली की एक कंपनी ‘ए दास एंड कंपनी’ में एक अप्रेंटिस के तौर पर काम करते थे। इसी काम के सिलसिले में उन्हें लाहौर जाना पड़ा, जहां इत्तेफाक से उनके फिल्मी करियर की शुरुआत हुई।
प्राण सिगरेट के बेहद शौकीन थे। वो 12 साल की उम्र से ही सिगरेट पीने लगे थे। एक दिन लाहौर में जब वो सिगरेट पीने पान की दुकान पर गए तो वहां उन्हें स्क्रिप्ट राइटर वली मोहम्मद वली मिले। वली मोहम्मद उनको घूरने लगे। उन्होंने प्राण से कहा कि मैं एक फिल्म बना रहा हूं, उसका एक किरदार बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही है। इसके बाद उन्होंने कागज पर अपना पता लिखकर प्राण को दिया और अगले दिन ऑफिस आकर मिलने को कहा।
मगर प्राण ने वली मोहम्मद और उस कागज को जरा भी तवज्जो नहीं दी। कुछ दिनों बाद जब वो वली मोहम्मद से फिर टकराए तो उन्होंने प्राण को याद दिलाया। आखिर प्राण ने अनमने मन से पूछ ही लिया कि वे क्यों उनसे मिलना चाहते हैं। जवाब में वली मोहम्मद ने फिल्म वाली बात बतलाई।
दिलचस्प बात यह है, तब भी उन्होंने ने उनकी बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, मगर मिलने को तैयार हो गए। आखिरकार, जब मुलाकात हुई तो वली मोहम्मद ने प्राण को राजी कर लिया। इस तरह प्राण पंजाबी में बनी अपने करियर की पहली फिल्म यमला जट में आए। इसी कारण प्राण वली को अपना गुरु मानते रहे।प्राण ने पिता को यह नहीं बताया था कि वो फिल्मों में काम करने लगे हैं, क्योंकि उन्हें डर था कि पिताजी को ये काम पसंद नहीं आएगा। जब अखबार में उनका पहला इंटरव्यू छपा तो उन्होंने अपनी बहन से अखबार छुपाने के लिए कह दिया था, लेकिन फिर भी उनके पिता को इस बारे में पता चल गया। इस बारे में जानकर उनके पिता को भी अच्छा लगा।
प्राण ने 7 दशक तकफिल्मों में काम किया। उन्होंने लगभग 362 फिल्में कीं। 2007 में आई ‘दोष’ उनके करियर की आखिरी फिल्म थी। 12 जुलाई 2013 को 93 साल की उम्र में मुंबई के लीलावती अस्पताल में लंबी बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया।