6 फरवरी को सीरिया और तुर्किये में आए 7.8 और 7.5 तीव्रता के भूकंपों से बड़े पैमाने पर तबाही हुई है। घातक भूकंप से मरने वालों की संख्या 24 हजार से ज्यादा हो चुकी है। अब, यूके के रिसर्चरों ने विनाशकारी भूकंप से पहले और बाद की दो इमेज जारी की हैं।
सेंटर फॉर द ऑब्जर्वेशन एंड मॉडलिंग ऑफ अर्थक्वेक यानी COMET के रिसर्चरों ने बताया कि ये इमेज सेंटिनल -1 सैटेलाइट से ली गई हैं। भूकंप के बाद की तस्वीरों में धरती में आई काफी बड़ी-बड़ी दो दरारें दिख रही हैं। सबसे बड़ी दरार 300 किलोमीटर लंबी है। जो मेडिटरेनियन सी यानी भूमध्य सागर की टिप से नॉर्थ ईस्ट तक फैली है।
COMET के मुताबिक दूसरी दरार पहले झटके के 9 घंटे बाद आई। जो 125 किलोमीटर लंबी है। धरती पर खींची इतनी लंबी दरारों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भूकंप के दौरान जमीन के नीचे से कितनी मात्रा में एनर्जी रिलीज हुई होगी।
COMET की टीम को लीड करने वाले टिम राइट ने स्पेस डॉट कॉम को बताया, “भूकंप जितना बड़ा होता है, फॉल्ट लाइन यानी दरार उतनी ही बड़ी होगी । तुर्किये में 6 फरवरी को आए भूकंप की फॉल्ट लाइन पूरे महाद्वीप में अब तक की दरारों में सबसे बड़ी है। उन्होंने बताया कि कुछ ही घंटों के गैप में दो बड़े भूकंपों का आना काफी अजीब है
हमारी धरती की सतह मुख्य तौर पर 7 बड़ी और कई छोटी-छोटी टेक्टोनिक प्लेट्स से मिलकर बनी है। ये प्लेट्स लगातार तैरती रहती हैं और कई बार आपस में टकरा जाती हैं। टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्यादा दबाव पड़ने पर ये प्लेट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्ता खोजती है और इस डिस्टर्बेंस के बाद भूकंप आता है।
- रिवर्स फॉल्ट- भूकंप के दौरान जमीन का एक हिस्सा ऊपर की तरफ उठता है।
- नॉर्मल फॉल्ट- इस फॉल्ट में जमीन का एक हिस्सा नीचे की तरफ जाता है।
- स्ट्राइक स्लिप फॉल्ट- टेक्टोनिक प्लेट्स में घर्षण होने की वजह से जमीन का एक हिस्सा आगे या पीछे की तरफ खिसकता है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अर्थक्वेक जियोलॉजी और डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के प्रोफेसर डॉ. जोआना फरे वॉकर ने कहा कि तुर्किये में आए दोनों स्ट्राइक-स्लिप भूकंप थे। जिसकी वजह से तुर्किये अपनी जगह 10 फीट तक खिसक गया है। उन्होंने कहा कि स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट्स की वजह से 7 या 8 का तीव्रता का भूकंप आने की आशंका होती है।भारत में 204 साल पहले यानी साल 1819 में गुजरात के भुज में भूकंप से टापू बन गया था। इसे अल्लाह बंद नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिकों की मानें तो रिक्टर पैमाने पर 7.8 से अधिक तीव्रता के भूकंप आने पर ऐसा होना संभव है।
इसकी वजह जमीन के भीतर प्लेटों के बीच दरार को माना जा सकता है। एक्सपर्ट का कहना है कि यह प्लेटें लगातार मूवमेंट करती हैं। कई बार इनके बीच दरार होती है
ऐसे में समुद्र के भीतर अगर 7.5 से ज्यादा तीव्रता और अधिक गहराई का भूकंप आता है तो यह प्लेटें कई मर्तबा एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं। अगर प्लेटें 6-7 मीटर की भी ऊंचाई ले लेती हैं तो वह टापू जैसी स्थिति हो जाती है।