मुझे देव के प्यार पर तो यकीन था, लेकिन खुद पर विश्वास नहीं था। मैं कन्फ्यूज थी। जब मैंने देव से शादी करने को मना कर दिया तो उन्होंने मुझे कायर कहा। शायद मैं कायर ही थी। मेरे अंदर वह कदम उठाने की हिम्मत ही नहीं थी। शायद यह मेरी गलती थी या फिर किस्मत…।
ये बात सुरैया ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान कही थी। देव आनंद से सुरैया ने बेइंतहा प्यार किया, लेकिन परिवार के खिलाफ जाकर शादी के लिए हां नहीं कह पाईं। आखिरी बार एक बालकनी में सुरैया और देव आनंद मिले और गले मिलकर खूब रोए। इसके बाद उन्होंने सुरैया को कभी नहीं देखा। ये किस्सा देव आनंद ने अपनी बायोग्राफी रोमांसिंग विथ लाइफः देव आनंद में लिखा है।
31 जनवरी 2004 को सुरैया का निधन हो गया। अंतिम यात्रा में शामिल हुए सभी लोगों की आंखें देव आनंद को ढूंढ रही थीं, लेकिन वो नहीं आए। इस तरह एक बार फिर से मोहब्बत की हार हुई। सुरैया और देव आनंद की प्रेम कहानी बॉलीवुड की सबसे चर्चित कहानियों में से एक है। सुरैया से रिश्ता टूटा तो देव आनंद जिंदगी में आगे बढ़ गए। उन्होंने अपनी को-स्टार कल्पना कार्तिक से शादी कर ली।
लेकिन, सुरैया की जिंदगी उसी रिश्ते पर ठहर गई। देव साहब से शादी नहीं हो सकी तो उन्होंने ताउम्र शादी ही नहीं की। अपने जमाने की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस सुरैया उस दौर की सबसे महंगी हीरोइन भी थीं। दिलीप कुमार जैसे एक्टर की भी ख्वाहिश थी कि वो सुरैया के साथ काम करें, फिल्म शुरू भी हुई, लेकिन पहले ही सीन की शूटिंग से वो इतना नाराज हुईं कि फिर कभी दिलीप कुमार के साथ काम नहीं किया।
1948 में रिलीज हुई फिल्म विद्या की शूटिंग शुरू हो गई थी, लेकिन हीरो कौन होगा, इसका फैसला नहीं हुआ था। एक दिन सेट पर सुरैया कुर्सी पर बैठी हुई थीं। तभी उनकी नजर कोने में बैठे एक नौजवान पर पड़ी जो एकटक सुरैया को घूर रहा था। सुरैया ने प्रोड्यूसर को बुलाकर उनसे ये बात कही।
प्रोड्यूसर देव आनंद के पास गए, लेकिन उन्हें बाहर भेजने के बजाय सुरैया के पास ले गए और मुस्कुराकर उनका परिचय सुरैया से करवाया।
सुरैया इससे आगे बोलतीं तभी देव आनंद ने कहा- साथ काम करने से पहले एक नौजवान को इतनी बड़ी हीरोइन को अच्छी तरह से देख लेना चाहिए। गुस्ताखी माफ।
इस मुलाकात के बाद दोनों फिल्म की शूटिंग में बिजी हो गए। रोज की मुलाकात के बाद दोनों में गहरी दोस्ती हुई और बाद में दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। सेट पर दोनों की आंखें एक-दूसरे को ढूंढती थीं। देव आनंद उन्हें प्यार से नोजी बुलाते थे और सुरैया उनको स्टीव।
सेट के अलावा देव आनंद उनके घर भी जाते थे। घूमना-फिरना भी सब साथ में ही होता था, लेकिन कुछ दिनों बाद उनके रिश्ते की बात सुरैया की नानी को पता चल गई। देव आनंद का सुरैया के घर जाना बंद हो गया। नानी को ये बिल्कुल भी मंजूर नहीं था कि सुरैया की शादी किसी गैर धर्म के लड़के से हो। फिल्म की शूटिंग के दौरान सुरैया की नानी उनके साथ फिल्म सेट पर मौजूद रहती थीं, ताकि देव आनंद उनसे बात ना कर पाएं। फोन पर बात नहीं हो पाती थी इसलिए दोनों खत के जरिए बात किया करते थे।
1949 में जीत की शूटिंग के दौरान देव आनंद सुरैया के साथ भागकर शादी करने को तैयार थे, लेकिन नानी को ये बात पता चल गई। परिवार के खिलाफ सुरैया नहीं जाना चाहती थीं इसलिए उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया और देव आनंद से हमेशा के लिए दूरी बना ली। हालांकि, ताउम्र वो देव आनंद से प्यार करती रहीं, किसी और से उन्होंने शादी नहीं की।
उस समय दिलीप कुमार हाईएस्ट पेड एक्टर थे जिन्हें एक फिल्म के लिए एक लाख रुपए फीस मिलती थी। वहीं एक्ट्रेसेस में सुरैया हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस थीं, जो लगभग सभी फिल्मों के लिए 40 से 50 हजार रुपए फीस चार्ज करती थीं। उनकी फैंस के बीच इतनी जबरदस्त पॉपुलैरिटी थी कि घर के बाहर उनकी एक झलक पाने के लिए फैंस की लंबी लाइन लगी रहती थी। भीड़ इतनी ज्यादा होती थी कि लगभग हर समय ट्रैफिक जाम लगा रहता था।
एक बार सुरैया को अपनी एक फिल्म के प्रीमियर में जाना था। वो किसी तरह से घर के बाहर खड़ी भीड़ से बचते बचाते थिएटर पहुंचीं। हॉल के अंदर काफी इंतजाम किए गए थे कि कोई सुरैया को पहचान ना ले, लेकिन तभी वहां पर मौजूद एक आदमी ने उन्हें पहचान लिया। वो चिल्ला कर बोला- अरे ये तो सुरैया हैं। ये सुनते ही भीड़ सुरैया पर टूट पड़ी। सुरैया को भीड़ ने इस कदर घेरा कि उनका दुपट्टा उनके हाथों से छूटकर दूर जा गिरा।
पहले तो काफी देर तक सुरैया के साथ आए सिक्योरिटी वाले भीड़ पर काबू करने की कोशिश करते रहे, लेकिन जब सिक्योरिटी से बात नहीं बनी तब पुलिस को आना पड़ा। इस घटना का सुरैया पर इतना बुरा असर पड़ा कि उन्होंने पब्लिक प्लेस पर जाना बंद कर दिया। साथ ही इसके बाद वो कभी अपनी फिल्मों के प्रीमियर में भी नहीं गईं।
सुरैया की फैन फॉलोइंग सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी थी, लेकिन सुरैया खुद हॉलीवुड के फेमस एक्टर ग्रेगरी पेक की दीवानी थीं। वो उनसे मिलना भी चाहती थीं। 1952 में भारत में पहला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल हुआ। इसमें सुरैया की मुलाकात हॉलीवुड डायरेक्टर फ्रैंक काप्रा से हुई थी। सुरैया ने अपनी एक फोटो पर साइन करके काप्रा को दिया और कहा- ये आप ग्रेगरी पेक को दे दीजिएगा।
इसके बाद जब एक बार ग्रेगरी इंडिया आए तो उन्होंने सुरैया से मुलाकात की इच्छा जताई। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ग्रेगरी उनसे रात के 11 बजे मिलने उनके घर पहुंचे। उन्होंने उनके घर का दरवाजा खटखटाया। सुरैया की मां ने दरवाजा खोला और ग्रेगरी ने उनसे पूछा- सुरैया कहां हैं मैडम। सुरैया को जब ग्रेगरी के आने का पता चला, तो वो बहुत खुश हुईं। इसके बाद सुरैया और ग्रेगरी पेक की मुलाकात हुई और दोनों ने करीब एक घंटे तक बातचीत की।
सुरैया के साथ दिलीप कुमार एक फिल्म में काम करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने डायरेक्टर के. आसिफ से बात की थी कि वो उनके और सुरैया के साथ एक फिल्म बनाएं। के. आसिफ ने भी इस बात पर हामी भर दी। उन्होंने दोनों को लेकर फिल्म जानवर की अनाउंसमेंट कर दी। सब कुछ तय हो गया, फिल्म की शूटिंग भी शुरू हो गई। तभी फिल्म के एक सीन के शूट के दौरान बवाल मच गया। सीन के मुताबिक, सुरैया के पैर पर एक सांप काट लेता है और दिलीप कुमार को उनकी जान बचाने के लिए पैर से चूसकर जहर बाहर निकालना था। वो सीन एक बार में ही परफेक्ट तरीके से शूट कर लिया गया, लेकिन उसी सीन को फिर से कई बार शूट किया जाता रहा, जिससे सुरैया परेशान हो गईं। ये बात उनके मामा को भी पता चल गई।
अगले दिन जब वो सेट पर पहुंचीं तो फिर से उसी सीन को शूट करने के लिए कहा गया। इस बार जैसे ही दिलीप कुमार सुरैया के पैर से जहर चूसकर निकालने की कोशिश करने लगे तो सुरैया ने अपना पैर खींच लिया और उठ खड़ी हुईं। वह दिलीप कुमार से गुस्सा हो गईं।
इसी बीच सुरैया के मामा भी आ गए और उन्होंने भी दिलीप कुमार को मारने की कोशिश की, लेकिन के. आसिफ बीच में आ गए। इस घटना के बाद सुरैया ने तय कर लिया कि वो कभी भी दिलीप कुमार के साथ किसी भी फिल्म में काम नहीं करेंगीं।
सुरैया इस फैसले से के. आसिफ बहुत नाराज हो गए थे। उन्होंने कहा कि फिल्म पर उन्होंने इतना पैसा लगाया है उसकी भरपाई कौन करेगा। तब सुरैया ने एक चेक भरकर के. आसिफ को दिया और तुरंत ही गुस्से में सेट से निकल गईं। उस दिन के बाद वो फिल्म फिर कभी पूरी नहीं हुई।
1954 में सुरैया की फिल्म मिर्जा गालिब रिलीज हुई थी। इस फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी आमंत्रित किया गया था। इसी कार्यक्रम के दौरान सुरैया की मुलाकात पं. नेहरू से हुई। उन्होंने सुरैया से कहा- तुमने गालिब की रूह को जिंदा कर दिया। प्रधानमंत्री से तारीफ सुनकर सुरैया काफी खुश हुईं।
सुरैया को फिल्मों में काम करने का मौका उनके मामा जहूर की मदद से मिला था। जहूर इंडस्ट्री में बतौर विलेन काम करते थे। एक बार स्कूल की छुट्टियों में सुरैया मामा के साथ फिल्म ताजमहल की शूटिंग देखने मोहन स्टूडियो गईं थीं। वहां पर फिल्म प्रोड्यूसर नानु भाई वकील की नजर उन पर पड़ी। नानु भाई उनकी खूबसूरती और सादगी से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सुरैया को फिल्म में मुमताज महल के लिए चुन लिया।
एक बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया को गाते नौशाद ने सुना। सुरैया के गाने का अंदाज नौशाद साहब को बहुत पसंद आया। इसके बाद उन्होंने कारदार साहब की फिल्म शारदा में सबसे पहले सुरैया को गाने का मौका दिया।
1936 से 1963 तक, सुरैया ने फिल्मों में काम किया था। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बना ली थी। जिंदगी के अंतिम छह महीनों के दौरान सुरैया अपने वकील धीमंत ठक्कर के परिवार के साथ रहीं, जिन्होंने बीमार होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। वो हाइपोग्लाइसीमिया जैसी कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थीं, जिस वजह से 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।