यूपी की 4 बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती आज 67 साल की हो गई हैं। बसपा प्रमुख की पहचान राजनीति में कड़े फैसले लेने के रूप में रही है। लेकिन निजी जिंदगी में वह उतना ही नरम दिल रही हैं। एक बार वह अपने 2 दिन के बीमार भाई को 7 किलोमीटर तक पैदल लेकर चलीं। आज उनकी कहानियों के साथ उनके 36 साल पुराने उस भाषण को भी जानेंगे, जिसने बसपा के वोट शेयर को बीजेपी से ऊपर कर दिया था। आइए पहले बचपन की 2 कहानियां जानते हैं। उससे भी पहले यह फोटो देखिए।
मायावती जब 9 साल की थीं, तो अपने ननिहाल सिमरौली गई थीं। गांव के ही पास काली नदी नाम से एक छोटी सी नदी बहती है। उसी नदी के पास खड़ी थीं, तभी एक लकड़बग्घा उधर से जा रहा था। मायावती ने अपने नाना से पूछा, ‘यह क्या है नाना?’ नाना ने बताया, “यह लकड़बग्घा है, इससे दूर ही रहना वरना खा जाएगा।”
मायावती ने अपने नाना से कहा, यह मुझे कैसे खा जाएगा, यह मुझे खाए इसके पहले मैं ही इसे खा जाऊंगी। इतना कहकर मायावती उस लकड़बग्घे के पीछे दौड़ पड़ीं। आगे कुछ लोग खेत में काम कर रहे थे। उन्होंने मायावती को लकड़बग्घे के पीछे जाने से रोका और उन्हें पकड़कर उनके नाना को सौंप दिया।मायावती जब 5वीं क्लास में पढ़ रही थीं, तब उनके चौथे नंबर के भाई सुभाष का जन्म हुआ। जन्म के दो दिन बाद ही बच्चे को निमोनिया हो गया। उस वक्त पिता प्रभु दास घर पर नहीं थे, वह परिवार के काम से गाजियाबाद गए थे। मां भी बिस्तर से उठ पाने की स्थिति में नहीं थीं। सरकारी कर्मचारी होने के कारण परिवार को सरकारी डिस्पेंसरी की सुविधा मिली थी। लेकिन, वह 7 किलोमीटर दूर न्यू राजेंद्र नगर में थी। ऐसे में वहां जाना मुश्किल लग रहा था मायावती उठीं। पिता का डिस्पेंसरी कार्ड उठाया। एक बोतल पानी भरा और बच्चे को उठाकर चल पड़ीं। रास्ते में बच्चा जब भी रोता माया, उसके मुंह में पानी की कुछ बूंदें डाल देती थीं। लंबा रास्ता होने के चलते वह थक गईं। बच्चे को कभी दाएं कंधे की तरफ करतीं तो कभी बाएं कंधे की तरफ। पसीने से तरबतर आखिर में वह अस्पताल पहुंच गईं। डॉक्टरों ने देखा तो हैरान रह गए। बच्चे का इलाज शुरू हुआ। इंजेक्शन लगे और तीन घंटे बाद उसकी हालत में सुधार आ गया।
मायावती ने इसके बाद बच्चे को फिर से गोद में उठाया और पैदल ही घर के लिए चल दीं। जब घर पहुंचीं तो रात के साढ़े नौ बजे थे। उस वक्त सुभाष ठीक हो गए। 2016 में 9 जुलाई को सुभाष की मौत हो गई। मायावती के बचपन की यह दोनों कहानी अजय बोस की किताब “बहनजी” में लिखी गई हैं।
14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बसपा बनाई। मायावती उस वक्त पार्टी में नंबर 2 की पोजिशन पर थीं। पार्टी के विस्तार के लिए जन जागरण अभियान शुरू किया गया। मायावती ने इसकी कमान संभाली। हर दिन पैदल तो कभी साइकिल से कई-कई रैलियां करती थीं।
1986 में 30 साल की मायावती एक सभा को संबोधित करने हरिद्वार पहुंची। उस वक्त हरिद्वार यूपी का हिस्सा था। मायावती ने वहां जनता से पांच सवाल पूछे और फिर उसके जवाब दिए। नतीजा ये रहा कि 1989 में लोकसभा चुनाव जीत गईं और बसपा का वोट शेयर बीजेपी से ऊपर पहुंच गया। आइए भाषण के 5 सवाल जानते हैं।
मायावती की जिंदगी पर किताब लिखने वाले अजय बोस बहनजी किताब में लिखते हैं, मायावती ने मुख्य रूप से दलित जनता और परम्परा से कांग्रेस के वोट दाताओं के सामने एक सवाल खड़ा करके भाषण की शुरुआत की। वह पूछती थी, “क्या आप लोग मुझे ऐसे दलित व्यक्ति का नाम बता सकते हैं, जो पिछले 40 सालों में कांग्रेस सरकार की आर्थिक योजनाओं के कारण फला-फूला हो?”
सवाल का जवाब देने की बारी आई तो जनता चुप हो गई। क्योंकि उसे आस-पास कोई ऐसा दिखा नहीं, जिसे आर्थिक योजनाओं का लाभ मिला हो। मायावती कहतीं, “तो तुम मानते हो कि कांग्रेस ने दलितों को मूर्ख बनाया?” यहां जनता पहले संकोच दिखाई फिर बोल देती, “हां, कांग्रेस ने हम सबको मूर्ख बनाया।”
अजय लिखते हैं, मायावती ने इसके बाद दूसरा सवाल पूछा, “1952 के पहले चुनाव के बाद से हर चुनाव में कांग्रेस के 95% वोट दलितों के होते हैं और सिर्फ 5% वोट ब्राह्मणों के, पर कांग्रेस शासित राज्यों में या फिर केंद्र में 5% दलित मंत्री होते हैं और 55% ब्राह्मण मंत्री। देश के 22 राज्यों के मुख्यमंत्रियों में एक भी दलित नहीं है। तुम्हारे ख्याल से ऐसा क्यों हैं?” भीड़ चिल्लाते हुए बोली, “आप ठीक कहती हैं, कांग्रेस ने हमें मूर्ख बनाया।”
मायावती ने जोश से भर चुकी भीड़ के सामने कहा, “हम सब जानते हैं कि ये ऊंची जाति के मनुवादी नहीं चाहते कि दलित अच्छा खाए, अच्छे कपड़े पहने और अच्छा काम करे। तो क्या कोई ऐसी मशीन राज्य में या केंद्र में बनाई जा सकती है जो इन ऊंची जाति वाले लोगों और मंत्रियों का हृदय परिवर्तन कर दे, जिससे यह दलितों को फलने-फूलने में मदद करें?” भीड़ ने पहले सिर हिलाया और मायावती की बात खत्म होते ही चिल्लाकर बोली, नहीं, यह नामुमकिन है, वे कभी हमारी भलाई नहीं चाहेंगे।”
मायावती ने जनता को बताया कि आज दलितों में भी डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस अफसर हैं। हमें इसके लिए बाबा साहेब अंबेडकर को धन्यवाद देना चाहिए। भीड़ की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “तुम क्या सोचते हो कि यदि बाबा साहेब अपना संगठन न बनाकर किसी मनुवादी पार्टी में शामिल हो जाते तो दलितों के लिए इतना कुछ कर पाते?”
जनता न में सिर और हाथ हिलाने के लिए एकदम तैयार बैठी थी। भीड़ से जवाब आया, कभी नहीं, वे लोग बाबा साहेब अंबेडकर को कभी भी ऐसा नहीं करने देते।
30 साल की मायावती अब निर्णायक बात करने के मोड में आ चुकी थीं। उन्होंने कहा, “क्या अब तुम लोग यह नहीं चाहते कि आबादी के ये 85% लोग जिनका दमन और शोषण हो रहा है वह एक अलग पार्टी बनाएं? क्या तुम्हें उस दिन का इंतजार नहीं जब ये बहुसंख्यक लोग अपने हाथ में सत्ता लेकर अपने भाग्य का परिवर्तन करें?”
मायावती के इस भाषण के बाद जब उनकी सराहना हुई, तो वह दोगुनी ऊर्जा के साथ पार्टी के विस्तार में लग गईं। 15 अगस्त 1987 को दिल्ली की जामा मस्जिद पर भारी भीड़ के सामने उन्होंने भाईचारा बनाओ कार्यक्रम किया।
मुस्लिमों से अपील की कि वह दलित-पिछड़ी जातियों के गठबंधन में शामिल हो जाएं। इसके लिए उन्होंने कहा, 1947 से पहले देश में 33% मुस्लिमों के पास नौकरी थी, आज महज 2% नौकरी है। भाषण का प्रभाव कुछ इस कदर पड़ा कि कांग्रेस के मुस्लिम वोटर घूम गए। नतीजा ये रहा कि बसपा को 1989 के लोकसभा चुनाव में 10% वोट मिले। यह भाजपा के 7.5% से 2.5% ज्यादा था।