अमेरिका के एक छोटे से शहर सेंट पॉल की हेमलिन यूनिवर्सिटी इन दिनों काफी चर्चा में है। वहां आर्ट हिस्ट्री की एक प्रोफेसर को धार्मिक भावनाएं आहत करने के मामले में नौकरी से निकाल दिया गया। प्रोफेसर एरिका लोपेज प्रेटर पर आरोप है कि उन्होंने क्लास में पैगंबर मोहम्मद की 14वीं सदी में बनाई गई एक पेंटिंग दिखाई। जिससे यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्र नाराज हो गए।
अमेरिका में एरिका को नौकरी से निकालने का मुद्दा बड़ा हो गया है। एक टाउनहॉल मीटिंग में एक मुस्लिम स्पीकर ने कहा कि पैगंबर की तस्वीर दिखाना हिटलर को अच्छा बताने के बराबर है। वहीं कई लोग प्रोफेसर लोपेज के समर्थन में आगे आ रहे हैं। इन लोगों को मानना है कि एक आर्ट हिस्ट्री की प्रोफेसर होने के नाते वो केवल अपना काम कर रहीं थी।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर एरिका लोपेज ने तस्वीर दिखाने से पहले कहा था कि अगर किसी को इससे तकलीफ है तो वो पहले ही बाहर जा सकते हैं। फिर भी हैमलिन यूनिवर्सिटी में कई छात्र उनकी क्लास में बैठे रहे। तस्वीर देखी और फिर उनकी शिकायत कर दी।
इस पूरी घटना से पहले वो जानती थीं कि पेंटिंग दिखाने से मुस्लिम समुदाय की भावनाएं आहत हो सकती हैं। इसलिए उन्होंने पहले ही क्लास में बताया था कि आर्ट हिस्ट्री के कोर्स में गौतम बुद्ध और प्रोफेट मोहम्मद की कुछ तस्वीरें दिखाई जाएंगी।
जब उन्होंने यह बताया तब भी किसी छात्र ने कोई आपत्ति जाहिर नहीं की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रोफेसर की शिकायत करने वालों में केवल एक छात्र ही उनके आर्ट हिस्ट्री कोर्स का था। बाकी सब दूसरे विषयों के थे।
पूरे मामले पर हैमलिन यूनिवर्सिटी के ऑफिशियल्स ने सभी छात्रों और उन्हें पढ़ाने वाले टीचर्स को एक मेल भेजा है। जिसमें कहा गया कि प्रोफेसर लोपेज प्रेटर का पैगंबर की तस्वीर दिखाना इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम के प्रति नफरत का एक मामला है।
यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट ने कहा कि अपनी अकादमिक आजादी से बढ़कर छात्रों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था। हैमलिन एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है जिसमें करीब 1800 छात्र पढ़ते हैं। इस मुद्दे को दबाने के लिए यूनिवर्सिटी ने पूरी कोशिश की थी। हालांकि ऐसा नहीं हो पाया।
अब देशभर के अकादमिक लेखक इस पर बहस करने लगे हैं। एरम वेदातला वो स्टूडेंट हैं जिन्होंने प्रोफेसर की शिकायत की थी। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा- पैगंबर की तस्वीर देखने से मुझे अंधा महसूस हुआ। मैंने सोचा ऐसा नहीं हो सकता है। ये हकीकत नहीं है
फ्री स्पीच के समर्थक प्रोफेसर लोपेज प्रेटर के समर्थन में एक पिटीशन साइन करवा रहे हैं। जिसमें अब तक उन्हें 2800 लोगों का साथ मिल चुका है। ये लोग पूरे मामले की ठीक से जांच कराने की मांग कर रहे हैं। क्रिस्टिएन ग्रूबर जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में इस्लामिक आर्ट की प्रोफसर हैं, उन्होंने कहा, ‘इस्लामिक आर्ट दिखाना और उसमें पैगंबर मोहम्मद को दिखाना अब एकेडमिक फील्ड में बहुत सामान्य बात है।’ ग्रूबर की इस बात का ड्यूक यूनिवर्सिटी में एशियन और मिडिल ईस्टर्न स्टडीज के प्रोफेसर ओमिद सैफी ने भी समर्थन किया है। उनके मुताबिक वो कई बार पैगंबर मोहम्मद की पेंटिंग्स अपनी क्लास में दिखाते हैं।
पैगंबर मोहम्मद को चित्र वगैरह के माध्यम से दिखाने पर पाबंदी है। उनका चित्र या मूर्ति बनाना उनका अपमान समझा जाता है। जानकारों के मुताबिक कुरान के 42वीं सूरे की 42 नंबर आयत में कहा गया है, “अल्लाह ही धरती और स्वर्ग को पैदा करने वाला है। उसकी तस्वीर जैसी कोई चीज नहीं है।”
मिशिगन यूनिवर्सिटी में इस्लामी कला की प्रोफेसर क्रिस्टिएन ग्रूबर ने बीबीसी को बताया कि पैगंबर मोहम्मद की काफी तस्वीरें 14वीं सदी की हैं और उस वक्त उन तस्वीरों को निजी तौर पर देखा जा सकता था ताकि बुतपरस्ती को बढ़ावा न मिले।
पैगंबर मोहम्मद और इस्लाम से जुड़ी तस्वीरें दिखाने पर दुनियाभर में कई विवाद हो चुके हैं। फ्रांस में अक्टूबर 2020 में हमलावर ने एक हिस्ट्री टीचर की गला रेतकर हत्या कर दी थी। कॉन्फ्लांस सेन्ट होनोरिन इलाके में एक सेकेंडरी स्कूल में कुछ दिन पहले इस टीचर ने इस्लाम से जुड़ा कोई चित्र दिखाया था। हमलावर इस बात से नाराज था। टीचर जब स्कूल से निकला तो आरोपी ने उसका पीछा किया। बाद में मौका पाकर उसका गला काट दिया।
कुछ देर बाद पुलिस ने हमलावर को घेर लिया। उससे सरेंडर करने को कहा गया। जब उसने सरेंडर नहीं किया तो पुलिस ने उसे गोली मार दी। हमलावर की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने घटना की निंदा की थी। उन्होंने कहा था- टीचर की हत्या इसलिए की गई क्योंकि वो फ्रीडम ऑफ स्पीच यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल कर रहा था। वो इस्लामिक कट्टरता के शिकार हुए। मैक्रों ने घटनास्थल का दौरा भी किया था।
साल 2015 में कार्टून मैगजीन शार्ली हेब्दो ने पैगंबर मोहम्मद के विवादित कार्टून फिर से छाप दिए। 2015 में इसी कार्टून को छापने को लेकर शार्ली हेब्दो के ऑफिस पर आतंकी हमला हुआ था। तीन हमलावरों ने शार्ली हेब्दो के दफ्तर पर अंधाधुंध फायरिंग कर 12 लोगों की हत्या कर दी थी। हमले में 11 लोग जख्मी भी हुए थे।
BJP प्रवक्ता नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर भारत को अरब देशों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। अरब देशों की आपत्ति पर भारत सरकार को लगातार सफाई देनी पड़ रही है। इससे पहले भी दो मामलों में ऐसी स्थिति देखने को मिली थी।
2015 में सांसद तेजस्वी सूर्या ने सऊदी अरब की महिलाओं को लेकर एक ट्वीट किया था। अरब देशों की निंदा के बाद तेजस्वी ने ट्वीट हटाकर सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगी थी।
अप्रैल 2020 में निजामुद्दीन मरकज पर कोरोना फैलाने का आरोप लगा तो अरब देशों ने इसकी आलोचना की। इसके बाद PM नरेंद्र मोदी ने सफाई में कहा था, ‘कोविड-19 जाति, धर्म, रंग, पंथ, भाषा या सीमाओं को नहीं देखता है।’
1986 में ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को महारानी एलिजाबेथ-II की सुरक्षा बढ़ाने की अपील से जुड़ा एक खत मिला। खत में लिखा था- ‘बहुत कम ब्रिटिशर्स को पता है कि रानी की रगों में पैगंबर मोहम्मद का खून दौड़ रहा है। हालांकि सभी मुस्लिम धार्मिक नेताओं को इस तथ्य पर गर्व है।’
खत में आगे लिखा था- ‘शाही परिवार के पैगंबर मोहम्मद का वंशज होना ही हमेशा मुस्लिम आतंकियों से उनकी सुरक्षा करेगा, इसका भरोसा नहीं किया जा सकता है।’