लो-स्टैंडर्ट कहकर सईद ने जिस पत्नी को छोड़ा था वही पूर्व पत्नी फेमस हुई तो ताउम्र रहा पछतावा

हिना, दिल, राम लखन, जुदाई, जब प्यार किसी से होता है जैसी दर्जनों फिल्मों में नजर आए सईद जाफरी की आज 94वीं बर्थ एनिवर्सरी है। सईद जाफरी बॉलीवुड फिल्मों में तो कैरेक्टर रोल करते नजर आए, लेकिन ये पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश और कनाडियन अवॉर्ड में नॉमिनेशन मिला। सईद ने 6 दशकों के एक्टिंग करियर में 150 ब्रिटिश, अमेरिकन और इंडियन फिल्मों में अभिनय किया।

गरीबी और संघर्षों के बीच कभी इन्होंने धक्के खाए तो कभी सड़कों पर लगी बेंच पर रातें बिताईं। फिर जाकर मामूली रेडियो की नौकरी से सईद एक कामयाब इंटरनेशनल एक्टर बने। लेकिन 6 दशकों के करियर में इनकी चर्चा फिल्मों से ज्यादा निजी जिंदगी पर हुई। इन्होंने पहली पत्नी को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वो अंग्रेजों की तरह स्टेंडर्ड नहीं थी, लेकिन बाद में वही पत्नी जब नामी राइटर बनी तो इन्हें ताउम्र पछतावा रहा। इनका एक पर्सनल खत भी सामने आया, जिसमें उन्होंने खुद को पहली पत्नी का गुनहगार बताया।
8 जनवरी 1929 को सईद जाफरी का जन्म पंजाबी मुस्लिम परिवार में मलेरकोटला, पंजाब में हुआ। इनके पिता डॉ हामिद हुसैन सिविल सर्वेंट थे। वहीं इनके दादाजी खान बहादुर फाजले इमाम मलेरकोटला के दीवान थे। नौकरी के सिलसिले में इनके पिता का ट्रांसफर होता रहता था तो इन्हें भी बचपन में कई बार शहर बदलना पड़ा था।
शुरुआती पढ़ाई सईद ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के मिंटो सर्कल स्कूल से की। यहां 10 साल की उम्र में ही इनकी उर्दू में अच्छी पकड़ बनी और फिर वो प्ले में हिस्सा लेने लगे। 12 साल के हुए तो मसूरी के विनबर्ग एलन स्कूल में दाखिला ले लिया, जहां ब्रिटिश एक्सेंट सीखने में मदद मिली।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में बीए और इंडियन लिटरेचर में एम.ए करने के बाद 1951 में सईद दिल्ली आ गए। सईद कार्टूनिस्ट, राइटर या ब्रॉडकास्टर बनने दिल्ली आए थे। दिल्ली में कोई ठिकाना नहीं था तो नौकरी ढूंढते हुए सईद सड़कों पर लगी बैंच में रात बिताया करते थे। कुछ दिनों के संघर्ष के बाद इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में इंग्लिश अनाउंसर की नौकरी हासिल की, जिसके लिए उन्हें 250 रुपए महीना तनख्वाह मिलती थी। नौकरी के बाद 30 रुपए के भाड़े में इन्हें घर भी मिल गया।
1951 में सईद ने फ्रैंक ठाकुरदास और बैंजी बेनेगल के साथ मिलकर अंग्रेजी थिएटर कंपनी यूनिटी थिएटर शुरू किया। यहां उनकी पहली मुलाकात होने वाली पत्नी मधुर बहादुर से हुई। इस थिएटर का पहला नाटक द ईगल हैज टू हेड्स था, जिसमें मधुर बहादुर ने राजकुमारी का रोल निभाया था। दो साल बाद मधुर ने भी ऑल इंडिया रेडियो में डीजे (डिस्क जॉकी) की नौकरी शुरू कर दी। नौकरी और प्ले करते हुए दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठे। कुछ समय बाद मधुर ड्रामा की पढ़ाई करने के लिए UKचली गईं। उसी समय सईद जाफरी को भी अमेरिका में ड्रामा की पढ़ाई करने की स्कॉलरशिप मिल गई।
1956 में सईद जाफरी ने मधुर के परिवार से उनका हाथ मांगा, लेकिन घरवालों ने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि एक एक्टर की कमाई स्थायी नहीं होती। सईद ने तुरंत रेडियो की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अमेरिका पहुंच गए। यहां उन्होंने मधुर को शादी के लिए प्रपोज किया, लेकिन उन्होंने अब इनकार कर दिया, लेकिन बाद में पिता की इजाजत लेकर दोनों ने वाशिंगटन में 1958 में शादी कर ली।
सईद जाफरी को अमेरिका का खाना पसंद नहीं था, ऐसे में मधुर इंडिया से मां की लिखी रेसिपी मंगवातीं और सईद के लिए खाना बनाती थीं। कुछ ही समय बाद कपल के दोस्त बढ़ने लगे और दोनों घर में इंडियन खाने की दावत करने लगे। मधुर के बनाए खाने की विदेशी खूब तारीफें करते थे। सईद को विदेश का खाना तो पसंद नहीं था, लेकिन उन्हें ब्रिटिश कल्चर खूब प्रभावित करता था। वो फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते और अंग्रेजों की तरह की बर्ताव करते थे, वहीं मधुर इंडियन कल्चर फॉलो करते हुए हिंदी में बात करती थीं। ये बात सईद को पसंद नहीं आती थी। वो चाहते थे कि मधुर भी अंग्रेजों की तरह रहे। यही कारण रहा कि दोनों के बीच लगातार झगड़े होने लगे। मधुर को बदलने की कोशिश उन्हें सईद से दूर ले गई और दोनों ने 1965 में अलग होने का फैसला किया। 1966 में मेक्सिको में दोनों को तलाक मिल गया
तलाक के बाद सईद मधुर को तीन बच्चों की परवरिश के लिए पैसे जरूर भेजते रहे, लेकिन उन्होंने कभी उनकी खबर नहीं ली। मधुर भी काम में व्यस्त थीं तो उन्होंने अपने तीनों बच्चों को अपनी मां और बहन के पास भारत भेज दिया।
मधुर से अलग होने के बाद सईद जाफरी का रिश्ता को-स्टार जेनिफर से रहा। दोनों ने करीब 10 सालों तक रिलेशन में रहने के बाद शादी कर ली थी। जैनिफर विदेशी थीं, जिनके साथ रहते हुए कुछ ही महीनों में सईद को एहसास हो गया कि वो एक घरेलु महिला ही चाहते थे, न कि विदेशी।
सईद जाफरी उन गिने चुने लोगों में रहे जिन्होंने अपनी गलती सार्वजनिक तौर पर कबूल की। मधुर को कमतर समझने वाले सईद की नजर एक दिन पॉपुलर मैगजीन पर पड़ी। उसमें छपी तस्वीर जानी-पहचानी सी लग रही थी। गौर किया तो देखा वो कोई और नहीं बल्कि उनकी पूर्व पत्नी मधुर हैं। तस्वीर के साथ लिखा था, फेमस शेफ मधुर जाफरी ने अपनी किताब लॉन्च की है। मधुर की कामयाबी देखकर सईद दंग रह गए कि कैसे एक घरेलु, फरमाबरदार लड़की इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर सकती है। उन्हें तलाक के फैसले पर खूब पछतावा हुआ।
पछतावा होने पर सईद ने मधुर ने मिलना चाहा, लेकिन जब सालों बाद संपर्क किया तो मधुर ने मुलाकात करने से इनकार कर दिया। वो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी थीं। मधुर ने सैनफोर्ड एलेन से शादी कर ली थी। जब मधुर ने सईद से मिलने से मना किया तो उन्होंने बच्चों से आखिरी मुलाकात करने को कहा।
सईद सालों बाद बच्चों से मिले तो बच्चों ने बताया कि उनके कानूनी पिता और मधुर के पति सैनफोर्ड मधुर का बहुत ख्याल रखते हैं। मधुर उनके साथ बहुत खुश हैं। ये सुनकर सईद और दुखी हो गए।
उसमें सईद ने लिखा-“आज तक मैं वो नहीं भूल सका जो मेरे बच्चों ने मुझसे कहा, उन्होंने कहा कि उनके नए पिता प्यार के असली मायने जानते हैं। उसने मेहरुनिमा (मधुर) को वैसे अपनाया, जैसी वो थी। और उसने कभी मधुर को बदलने की कोशिश नहीं की। क्योंकि वो मधुर को खुद से भी ज्यादा चाहता है। वो उसे अपनी मर्जी से फैसले लेने की पूरी आजादी देता है और वो अपनी मर्जी उस पर थोपने की कोशिश नहीं करता। वो उसे एक अच्छे इंसान की तरह अपनाता है। वो अपने पति के सेल्फलेस प्यार से अब कॉन्फिडेंट, लविंग महिला बनकर खिलकर जीती है।”
इस पन्ने के आखिरी लाइन में सईद ने अपने लिए लिखा, “जिंदगी की सबसे बड़ी सीख ये है कि आप जिसे प्यार करते हैं उसे बदलते नहीं, आप उससे वैसे ही प्यार करते हैं जैसा वो है।
इसी डायरी के एक पन्ने की शुरुआत में सईद ने मधुर को छोड़कर अफसोस जताते हुए लिखा था, “मैंने 19 साल की उम्र में 17 साल की महरुनिमा (मधुर) से शादी की थी। मैं बड़ा होता गया तो ब्रिटिश कल्चर से खूब प्रभावित था। वहीं मेहरुनिमा उससे विपरीत एक टिपिकल हाउसवाइफ और घरेलू थी। वो एक आज्ञाकारी पत्नी, अच्छी मां और बेहतरीन गृहिणी थी, लेकिन मेरे उसे बदलने की सारी सलाह का उसपर कोई असर नहीं हुआ। मैं जो चाहता था वो वैसी बिल्कुल नहीं थी। मैंने जितना उसे बदलने की कोशिश की वो उतनी ही दूर चली गई। वो एक खुशमिजाज, हंसमुख यंग लड़की से एक इनसिक्योर महिला बन गई। इसी समय मैं अपनी को-स्टार की तरफ आकर्षित हो गया। उसमें वो सब था जो मुझे चाहिए था। 10 साल की शादी के बाद मैंने महरुनिमा को तलाक दे दिया और घर छोड़ दिया। मैंने उसे बच्चों के लिए खर्च भी दिया था।

मेरी शादी के 6-7 महीने तक सब कुछ ठीक चला, लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मेरी नई पत्नी मेरी फिक्र नहीं करती और ना मेरा ख्याल रखती है। उसे सिर्फ अपनी खूबसूरती, अपने काम, अपनी मर्जी की परवाह होती है। कभी-कभी मुझे मेहरुनिमा के केयरिंग टच और उसके प्यार की कमी महसूस होती है।”
लंदन में कई प्ले और ब्रिटिश फिल्मों का हिस्सा रहने के बाद सईद को भारत आकर बॉलीवुड फिल्मों में जगह मिली। उनकी पहली फिल्म 1977 की शतरंज के खिलाड़ी थी। इसके लिए उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग रोल का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। इसके बाद सईद मंडी, चश्मे बद्दूर, आगमन, मासूम, खुदगर्ज, राम तेरी गंगा मैली जैसी दर्जनों हिंदी फिल्मों में नजर आए। सईद की आखिरी हिंदी फिल्म 2009 की सनम तेरी कसम थी।
14 नवंबर 2015 को सईद जाफरी का निधन लंदन में हुआ। घर में बेहोश होने के बाद उन्हें लंदन हॉस्पिटल ले जाया गया था, जहां ब्रेन हैमरेज से उनकी मौत हो गई। उनका अंतिम संस्कार 7 दिसंबर को लंदन में ही हुआ था। सईद को भले ही दूसरी शादी का पछतावा रहा, लेकिन उनकी दूसरी पत्नी आखिरी समय तक उनके साथ ही रहीं।
सईद जाफरी को ब्रिटिश और कनाडियन फिल्मों के लिए भी नॉमिनेशन मिला। ये नॉमिनेशन पाने वाले ये पहले एशियन व्यक्ति हैं। मरने के एक साल बाद 2016 में सईद जाफरी को पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।