कोविड की वजह से फिल्मों की शूटिंग खासी प्रभावित होती रहीं। उनमें अजय देवगन स्टारर और बोनी कपूर निर्मित फिल्म ‘मैदान’ भी है। अजय देवगन इसमें पचास और साठ के दशक में भारतीय फुटबॉल टीम के कोच और मैनेजर सैय्यद अब्दुल रहीम के रोल में हैं। उनके कार्यकाल में भारतीय टीम ने 1951 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। 1956 में टीम ओलंपिक सेमीफाइनल तक गई, फिर 1962 में भी टीम ने एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था। ऐसे में फिल्म में भारत के अलावा दूसरे एशियाई और यूरोपीय देशों की टीम भी बतौर किरदार नजर आएंगी। उन टीमों के फिल्मों में 70 से 80 विदेशी कलाकारों को कास्ट किया गया। फिल्म में अजय देवगन के साथ-साथ इश्तियाक खान ने भी अहम भूमिका निभाई है।
इश्तियाक खान ने इस बारे में बात करते हुए कहा, ‘फिल्म में कलाकारों की लंबी चौड़ी फौज है। कोविड की लहरों ने कलाकारों और क्रू मेंबर्स का कड़ा इम्तिहान लिया है। कोविड न फैले उसके चलते एक दूसरे के काफी करीब आकर शूट करने में डर लगता था। उस समय कोविड काफी ज्यादा फैला हुआ था। कई लहरों और लॉकडाउन के चलते शूट प्रभावित भी हुए। फिर भी कलाकारों ने घुटने नहीं टेके। कलाकारों में एक बड़ी संख्या एशियाई और यूरोपीय कलाकारों की है। कोविड काल में उन्हें इंडिया में ही रुकना पड़ा। उन्हें ठहरने के सारे इंतजाम इंडिया में किए गए। उन सभी कलाकारों की भी सख्त ट्रेनिंग होती थी। उनकी पूरे समय स्पोर्ट्समैन की डाइट मेंटेन करवाई गई। उन सबका इंडिया में ही स्टे करवाया गया, क्योंकि अगर वो अपने घर जाते तो वापस आने पर उनकी ट्रेनिंग का तारतम्य टूट जाता। विदेशी कलाकारों को तो तीन महीने होटलों में रखा गया, मगर जो देसी कलाकार थे, जो इंडियन फुटबॉल टीम को रिप्रेजेंट कर रहे थे, उनको भी उतने महीने होटल में रखा गया।’
अजय देवगन वैसे तो स्पॉनटेनियस कलाकार माने जाते हैं। वो मेथड एक्टिंग में कम यकीन रखते हैं। हालांकि वो पहली बार खेल से जुड़े शख्स के रोल प्ले कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने इस बार मेथड एक्टिंग का तरीका आजमाया। इश्तियाक ने आगे कहा, ‘अजय भाई बतौर कोच फुटबॉल की बारीकियां समझ रहे थे। वो डायलॉग में फुटबॉल की तकनीकी और भाषा से जुड़ी हर चीज के बारे में काफी सवाल करते थे। उन टेक्निकल टर्म्स के बारे में समझने के बाद वो डायलॉग डेलिवर करते थे। फिल्म के मुख्य कलाकारों में गजराज राव, बंगाल के नामी एक्टर्स फिल्म में हैं। NSD के पास आउट बाहरुल इस्लाम भी हमारे साथ थे। वो मूल रूप से आसाम से हैं। गजराज राव के साथ फिल्म के डायरेक्टर अमित रविचंद्रन शर्मा ने बधाई हो के बाद फिर से कोलैबोरेट किया है।’
इस फिल्म की शूटिंग लखनऊ, मुंबई और कोलकाता में हुई है। लखनऊ से कुछ दूर सीतापुर में बड़े ग्राउंड में फुटबॉल के सीन फिल्माए गए। कोलकाता के उन ओरिजिनल स्टेडियम्स में शूटिंग की गई, जहां फुटबॉल के तब के जमाने के मैचेज आयोजित होत थे। इश्तियाक ने एक और दिलचस्प पहलू साझा करते हुए बताया, ‘इस फिल्म के आखिरी दिन कहानी के अंत का हिस्सा फिल्माया गया। वरना अक्सर लोग शूट के आखिर में फिल्म का इंटरवल का पोर्शन शूट करते रहते हैं। बहरहाल, आखिरी दिन जब फिल्म की शूटिंग पूरी हुई तो सभी कलाकारों ने एक बड़ी राहत और सुकून की सांस ली। इमोशनल मोमेंट भी था, क्योंकि लंबे अर्से तक इसकी शूटिंग चलती रही। सबने इस फिल्म की कोविड के साए में शूटिंग की थी।’