वॉशिंगटन में मौजूद पाकिस्तान की एम्बेसी का एक बड़ा हिस्सा बिकने जा रहा है। इसके लिए बिड प्रॉसेस यानी नीलामी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। मजे की बात यह है कि एम्बेसी के डिफेंस सेक्शन को खरीदने के लिए जो 2 सबसे बड़ी बोलियां लगी हैं, वो दोनों ही पाकिस्तान के दुश्मन मुल्कों से ताल्लुक रखती हैं। ये दो देश हैं इजराइल और भारत।
इजराइल के यहूदी ग्रुप ने 68 लाख डॉलर की बोली लगाई है। दूसरी बड़ी बोली लगाने वाला कोई भारतीय है। उसने 50 लाख डॉलर में यह बिल्डिंग खरीदने की पेशकश की है।
पाकिस्तान एम्बेसी की बिल्डिंग बेचने की खबर का खुलासा पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ ने किया है। उसने इस बारे में एम्बेसी के अफसरों के हवाले से एक रिपोर्ट पब्लिश की है। एक अफसर ने कहा- एक यहूदी, एक भारतीय के अलावा तीसरी बोली पाकिस्तान मूल के एक शख्स ने 40 लाख डॉलर में लगाई है। हम उस शख्स को यह इमारत बेचेंगे जो सबसे ज्यादा बोली लगाएगा। वैसे भी नीलामी में यही प्रॉसेस अपनाया जाता है। हमें इससे कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि खरीदार कौन है और उसका इस प्रॉपर्टी को खरीदने का मकसद क्या है।
रिपोर्ट में एक और अफसर के हवाले से कहा गया- अगर यहूदी ग्रुप इस एम्बेसी का खरीदता है तो वो यहां यहूदियों का का पूजा स्थल यानी सिनेगॉग बनाएगा। यह तो अच्छी बात है, क्योंकि इससे गुडविल बनेगी। कुछ दिन भी ‘द डॉन’ ने ही सबसे पहले यह खबर दी थी कि दिवालिया होने की कगार पर खड़ा पाकिस्तान अब दूसरे देशों में मौजूद अपनी प्रॉपर्टीज और खासतौर पर एम्बेसीज को पूरा या उनका कुछ हिस्सा बेच सकता है।
एम्बेसी के जिस सेक्शन को बेचने की बात हो रही है वो करीब 20 साल पहले तैयार हुआ था। इसका इस्तेमाल डिफेंस सेक्शन यानी पाकिस्तान आर्मी के ऑफिस के तौर पर किया जाता था। पाकिस्तान सरकार की एक और प्रॉपर्टी रूजवेल्ट हाउस को भी बेचने की तैयारी है। फाइनेंस मिनिस्टर इशहाक डार मीडिया के सामने इसकी पुष्टि भी कर चुके हैं।
पाकिस्तान के कुछ अफसर इस मामले में सफाई देते हुए कहते हैं- ये इमारत पुरानी है। दो तरीके हैं। या तो हम इसे रिनोवेट करने पर खर्च करें या फिर इसे बेच दें। रिपोर्ट के मुताबिक- सोशल मीडिया पर कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि एम्बेसी की नई और पुरानी दोनों एम्बेसी बेची जा रही हैं।
बतौर मुल्क इजराइल 1948 अस्तित्व में आया। पाकिस्तान एक साल पहले यानी 1947 में बना। पाकिस्तान ने अब तक इजराइल को मान्यता नहीं दी है। उसका कहना है कि इजराइल ने फिलिस्तीन और मुसलमानों पर बहुत जुल्म किए हैं।
पिछले साल तब के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था- मेरे ऊपर कोई दोस्त मुल्क जबरदस्त प्रेशर डाल रहा है कि हम इजराइल को मान्यता दें, लेकिन मेरा दिल इसकी इजाजत नहीं देता। खान ने उस मुल्क का नाम नहीं बताया था। पाकिस्तानी आज भी यहूदियों से नफरत और अपने फिलिस्तीनी भाई-बहनों से प्यार करते हैं।
हैरानी की बात यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में अमेरिका ने अब्राहम अकॉर्ड पेश किया था। इसके तहत UAE, बहरीन, ओमान और जॉर्डन समेत पांच अरब देशों ने इजराइल को मान्यता दे दी थी। अब इनके रिश्ते हर लिहाज से काफी मजबूत हो रहे हैं। खबरें तो यह भी हैं कि 2023 में किसी भी वक्त सऊदी अरब भी इजराइल को मान्यता दे सकता है।
दूसरी तरफ भारत है। कश्मीर और आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद हैं। हालांकि, करीब एक साल से LOC पर फायरिंग बंद है, लेकिन बातचीत भी नहीं हो रही है।
पाकिस्तान के पास इस वक्त सिर्फ 6.7 अरब डॉलर का फॉरेन रिजर्व है। इससे तीन हफ्ते के ही इम्पोर्ट्स किए जा सकते हैं। पुराने कर्ज की किश्तें भी नहीं भरी जा सकतीं। फाइनेंस मिनिस्टर इशहाक डार ने नवंबर में कहा था कि चीन और सऊदी अरब पाकिस्तान को बहुत जल्द 13 अरब डॉलर का नया कर्ज देंगे। यह अब तक नहीं मिला और दोनों देश चुप हैं।
चीन तो एक कदम आगे निकल गया। उसने पाकिस्तान को नया कर्ज तो नहीं दिया, उल्टा शाहबाज शरीफ से पुराने कर्ज की 1.3 अरब डॉलर की किश्त मांग ली।
पाकिस्तान के पास इस वक्त सिर्फ 6.7 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार या फॉरेक्स रिजर्व हैं। इसमें 2.5 अरब डॉलर सऊदी अरब, 1.5 अरब डॉलर UAE और 2 अरब डॉलर चीन के हैं। ये फंड्स सिक्योरिटी डिपॉजिट हैं यानी शाहबाज शरीफ सरकार इन्हें खर्च नहीं कर सकती। दूसरी बात, सऊदी और UAE 36 घंटे के नोटिस पर ये पैसा वापस ले सकती है। 2019 में भी पाकिस्तान का फॉरेन रिजर्व इतना ही था।