शगुफ्ता रफीक। ये बॉलीवुड की जानी-मानी फिल्म और डायलॉग राइटर हैं। वो लम्हे, आवारापन और आशिकी-2 जैसी फिल्मों में अपनी कलम का जादू बिखेर चुकीं शगुफ्ता का बॉलीवुड और असल जिंदगी दोनों में संघर्ष काफी अलग रहा है। इन्हें एक परिवार ने गोद लिया था, असली माता-पिता के बारे में कभी पता नहीं चल सका। जिस घर में गोद ली गईं, वहां भी हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं रहे।
बड़ी बहन सईदा खान, जो एक एक्ट्रेस थीं, उनसे घर चलता था। सईदा की शादी हुई तो घर की माली हालत बिगड़ गई। घर चलाने के लिए ये मुंबई से दुबई गईं और वहां बार क्लब में डांसर बनीं। कुछ समय बाद वापस लौटीं। महेश भट्ट ने इन्हें अपनी फिल्मों में काम दिया, लेकिन लोगों ने आरोप लगाए कि ये बार डांसर के साथ प्रॉस्टिट्यूशन भी करती थीं।
महेश भट्ट की सलाह पर लोगों का मुंह बंद करने के लिए शगुफ्ता ने एक इंटरव्यू में कहा कि वो प्रॉस्टिट्यूशन में शामिल रहीं, हालांकि इसमें कोई सच्चाई नहीं थी। बार डांसर से फिल्म राइटर बनीं तो ये एक अलग तरह का संघर्ष था। बॉलीवुड में कोई मानता नहीं था कि ये लिख भी सकती हैं, हर कोई सिर्फ नाचने वाली समझता था।
मुझे बचपन का कुछ ज्यादा याद नहीं। काफी कन्फ्यूजिंग सी कहानी है मेरे बचपन की। मुझे बताया गया था कि मेरी मां ने मुझे गोद लिया था। वहीं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि मेरी बड़ी बहन सईदा खान ही मेरी मां हैं। हालांकि मेरी मां का नाम अनवरी बेगम था। मुझे आज तक सच्चाई का पता नहीं चला कि कौन मेरी मां थी।
गोद लिए हुए बच्चे को लेकर लोगों का रवैया ही बदल जाता है, ठीक उसी तरह मेरे साथ हुआ। फैमिली में दो-तीन लोगों को छोड़कर बाकी सबका रवैया बहुत बुरा था। लोग गुस्सा करते थे, ताने मारते थे, साथ ही मुझे जलील भी किया जाता था।
मैं छोटी थी, तब मुझे इन चीजों का इल्म नहीं था और बड़ी होने के बाद भी कभी किसी से कोई सवाल नहीं किया। मुझे किसी से कुछ जायदाद नहीं चाहिए थी, इसलिए मैंने मान लिया था कि मैं जिसके साथ रहती हूं, वहीं मेरी मां हैं। हालांकि ये सारी चीजें मेरे बचपन पर काफी हावी रहीं।
मैंने जिंदगी भर कड़वा ही सुना। जिन्होंने मुझे गोद लिया था, उनके बच्चे भी कड़वा बोलते थे। मेरी बहन के पति और बच्चे भी ताने देते थे। कभी पीठ पीछे, तो कभी सामने बोलते थे। लोगों के तानाकशी से मैं अकेले बहुत रोती रहती थी। मेरे खयाल से मैं 22-23 साल की उम्र तक मैंने अपने आपको सिर्फ रोते हुए ही देखा है। मुझमें किसी को जवाब देने और लड़ाई करने की हिम्मत नहीं थी।
बड़ी बहन सईदा के मैं काफी नजदीक थी। वो अक्सर कहती थीं कि वो ही मेरी मां हैं। ये बात ज्यादातर फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी कहते हैं। मुझे इस बात के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसी वजह से फिल्म के कुछ सीनियर लोग थे, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनसे जब मेरी मुलाकात होती थी, तब उनका रवैया मेरे लिए बहुत अच्छा होता था। वे लोग मानते थे कि मैं फेमस एक्ट्रेस सईदा खान की बेटी हूं, जो मेरी बहन थीं।
इन सब हालातों की वजह से ही दुनिया को देखने का मेरा नजरिया बदल गया है। जिस तरह से लोग मेरे साथ पेश आते थे, ताना मारते थे, उन बातों ने मुझे बहुत अकेला कर दिया था। उसकी वजह से भारी-भारी किताबें लाकर पढ़ना, बड़े लोगों की बातें सुनना, मैंने शुरू कर दिया था।
बचपन में मेरा कोई दोस्त तक नहीं था। बहन की शादी हो गई तो वह अपने घर चली गईं। मैं अपनी मां के साथ रहती थी। बचपन में मैंने खुद को अकेले कर लिया था क्योंकि एक डर बैठ गया था कि पता नहीं जहां जाऊंगी, वहां कौन क्या बोल देगा।
गणित में कमजोर होने की वजह से मैंने 13 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी। मैंने सातवीं तक की पढ़ाई की है। मैं जहां जाती थी, वहां 10 में से चार लोग इंग्लिश बोल रहे होते थे। मुझे लगा कि ये लैंग्वेज मुझे भी आनी चाहिए, इसी वजह से मैंने भी अगेंजी सीखने का फैसला किया।
मैंने घर के पास एक लाइब्रेरी ज्वाइन की। मुझे जो किताब पसंद आती थी, उसे पढ़ती रहती थी। एक-एक, दो-दो दिन में किताबें पढ़कर खत्म कर देती थी। इससे न सिर्फ मेरी इंग्लिश काफी सुधर गई, बल्कि मेरी पढ़ाई के हिसाब से बहुत अच्छी हो गई।
पढ़ाई छूटने के बाद मां ने कहा कि, तुम घर में बैठी हो तो चाइल्ड आर्टिस्ट का रोल करो, क्योंकि हमें घर भी चलाना है। बहन की शादी हो गई थी, इसलिए वह बहुत लिमिटेड पैसे दे पाती थीं। मुझे लेकर मां बहुत स्ट्रगल करती थीं। लोगों के ऑफिस के चक्कर लगाती थीं कि कहीं बेटी या बहन का रोल मिल जाए।
12-13 साल की उम्र में मेरी 4 फीट की हाइट हो गई थी और काफी दुबली थी। उस जमाने में भरी हुई लड़कियों को ही बहन के रोल में लेते थे। कभी-कभार ऐड वगैरह में छोटे रोल मिल जाते थे, जिससे घर चल जाता था। फिर हमने घर में एक पेइंग गेस्ट रख लिया था, जिससे घर चलता था।
मुझे अपनी मां की माली हालत देखकर ठीक नहीं लगता था। मेरी मां कभी अपनी साड़ी तो कभी कुछ सामान बेच देती थी। उस जमाने में वह इतनी बड़ी एक्ट्रेस की मां थी, लेकिन मेरी बहन ने बहुत जल्दबाजी में शादी कर ली, इसलिए मेरे और मम्मी के लिए उन्होंने कुछ बचाया नहीं था।
मैंने 12 साल की उम्र में अपनी 40 साल की मां को धक्के खाते हुए देखा है, उसे कैसे भूल सकती हूं। मेरी मां अनवरी बेगम 30 के दशक में एक्ट्रेस हुआ करती थीं। डांसर भी थींं, स्टेज शोज भी करती थीं। कम लोगों को पता है कि इंडिया से अफ्रीका में सबसे पहले स्टेज पर मेरी मां ने परफॉर्मेंस दी थी।
मैं 17-18 साल की थी, तब तक हमारी बहुत हालत खराब हो गई थी। 16-17 साल की लड़कियों के अपने जरूरत होती है। बहन अगर कपड़े देती थी, तो वो पहन लेती थी। मैं दूसरे लोगों की भी उतरन पहनती थी। हमारे पास इतना पैसा भी नहीं होता था कि नए कपड़े बनवा सकें। भाई भी कोई मदद नहीं करते थे।
उन्होंने मां को अल्टीमेटम दे दिया कि मुझे घर से निकालें, तब वो घर संभालेंगे। मां ने कहा कि यह तो कभी हो नहीं सकता। जिसको जहां जाना है, जाओ। तब तक मेरी मां समझ गई थी कि यह मुझसे बहुत अटैच्ड है। लोग कहते थे कि इसे घर से निकाल दो, अब 17-18 साल की हो गई, इसकी शादी करके निकाल दो लेकिन मेरी मां कहती थी कि पूरी दुनिया मुझे छोड़कर चली जाए, पर इसे नहीं निकालूंगी। मां मेरी तरफदारी करती थी।
मैंने छोटे-छोटे जॉब करने की कोशिश की, लेकिन मेरे अतीत की वजह से काम नहीं मिलता था। जिसने काम दिया, उसने नायाजज फायदा उठाने की कोशिश की। एक बार मेरी फैमिली मेंबर अपने पहचान वाले के पास मुझे जॉब के लिए मिलाने ले गए, तो वहां पर दोनों ने बारी-बारी पकड़ने की कोशिश की। मैं वहां से रोते-बिलखते हुए घर आई। उसके बाद दिमाग में बैठ गया कि इससे तो अच्छा नाच लो, गा लो, पैसे बना लो।
मैं उस समय 17 साल की थी। काम के सिलसिले में मैंने अपनी पेइंग गेस्ट से बात की। उसने मुझे बोला कि मेरे एक दोस्त हैं। उनको एक दोस्त की जरूरत है। तुम उनसे फ्रेंडशिप कर लो। वे बाहर रहते हैं और कभी-कभी मुंबई आते हैं। वे तुमसे मिल लिया करेंगे।
मैंने कहा आप मुझको उनसे मिला दो। वो मुंबई में भी नहीं रहते थे। मेरे इस रिश्ते को लोग मिस्ट्रेस का नाम देते थे। वो मेरे घर पर भी आए थे, मां-बाप से भी मिले थे। मिलने के बदले वो मुझे एक बड़ी रकम देकर चले जाते थे। तीन-चार साल तक मेरा यह सिलसिला चला। हमारी जो जरूरत होती है, वो उस जरूरत के हिसाब से हमारी हेल्प कर देते थे। मेरे ये काम गंदा नहीं था, लेकिन आस-पास के लोगो ने इसे गंदा बना दिया था।
मैंने दुबई जाकर बीयर बार में पांच साल सिंगिंग शो किया। पहला शो 1997 में बतौर डांसर किया था। उसके बाद सिर्फ बतौर सिंगर काम किया क्योंकि सिंगर को वहां लोग इज्जत की नजर से देखते हैं। मैंने वहां जो भी कमाई की, वो गाने गाकर इज्जत से ही कमाए।
दरअसल, शुरुआत में मैंने राइटिंग के लिए स्ट्रगल किया, लेकिन राइटिंग के लिए कोई बुलाता भी नहीं था। इसके बाद एक दोस्त ने दुबई में काम करने की सलाह दी। दोस्त के सुझाव पर मैंने सोचा कि एक शो करके देखती हूं। उस काम के लिए मुझे पहली बार एक साथ इतने सारे पैसे मिले थे। 1997 में करीब एक लाख रुपए मिले थे। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि मैंने अपनी जिदंगी में कभी हाथ में 10 हजार भी नहीं देखे थे। मैंने उन पैसों से अपनी मां को सोने की चैन और चूड़ियां लाकर दीं। मेरी मां को सोने की चैन और चूड़ियां पहने हुए 20-25 साल बीत गए थे।
मेरी मां को इस बात से दुखी भी थीं। वो सोच रही थीं कि मेरी बेटी को क्या-क्या करना पड़ रहा है। मैंने कहा कि आप दुख मत उठाओ। जो कुछ है, वह पैसा ही है। बाकी सब खोखला और ढकोसला है। शोज से जो पैसा मिलता था, उन पैसों से राइटिंग के लिए स्ट्रगल करती थी। राइटिंग के लिए रिजेक्ट कर देते थे, लेकिन नाच-गान के लिए मुझे फौरन काम मिल जाता था। यह सिलसिला 1997 से 2001 तक चला। साल 2002 में मम्मी की डेथ हो गई।
मैंने देखा कि पैसे तो मिलते थे, तब खर्च भी खूब होते थे। मुझे इन पांच साल के दौरान ब्रेन ट्यूमर हो गया। उसके चलते दो-ढाई साल तक घर में बैठी रही, कोई शोज नहीं कर रही थी। काफी सारे पैसे मेरे इलाज में निकल गए। उस समय 32 साल की थी। दो-चार शोज ऐसे थे, जो ब्रेन ट्यूमर होने के हालात में किए थे। डॉक्टर की दवाइयां और न्यूरोलॉजिस्ट से चिट्ठी लेकर एयरपोर्ट पर दिखाकर जाती थी। वहां दवाई खाकर शोज करती थी।
यह 1991-1992 की बात है। मेरी बहन की हत्या हुई थी। उनके पति ने उन्हें, अपनी बेटी और खुद को गोली मार ली थी। उनकी डेथ के 40 दिन हुए थे, तब बहन के घर वालों ने प्रेयर मीट रखी थी। वहां मेरी मुलाकात महेश भट्ट साहब की पहली पत्नी किरण से हुई। वो बड़े प्यार से मिलीं।
मैंने किरण से कहा कि, भट्ट साहब से मिलना चाहती हूं। मुझे काम की जरूरत है। मेरे पास बिल्कुल काम नहीं है। उन्होंने बताया कि महेश से मिलने के लिए किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं है, क्योंकि महेश वैसा आदमी नहीं है। तुम सीधे मिलने चली जाओ। मैंने कहा कि मैं बिल्कुल नहीं जानती हूं। उन्होंने कहा कि मेरा नाम लेकर चली जाओ। मैं उनसे मिलने गई। उस समय वे ‘सर’ फिल्म बना रहे थे। उन्होंने मुझे बतौर असिस्टेंट रख लिया था।
जब मैंने महेश भट्ट को ज्वाइन किया तो मेरे घर-परिवार या मोहल्ले के किसी आदमी ने भट्ट साहब को फोन कर-करके बोलना शुरू कर दिया कि यह तो गंदे खानदान की है। यह तो धंधा करती थी। इसको आपने क्यों अपने बराबर में बैठा लिया। आप तो इज्जतदार लोग हैं। वहीं ऐसी औरत को लेकर घूमेंगे तो आपके बात की क्रेडिबिलिटी खत्म हो जाएगी।
भट्ट साहब ने एक दिन मुझे बुलाकर कहा कि देखो, मेरे पास ऐसे फोन आ रहे हैं। तुम यह बात प्रेस में दे दो कि तुम कौन हो। उन्होंने बोला कि, तुम बता दो कि तुम मिस्ट्रेस थीं। अगर नहीं बताओगी, तब ये लोग बार-बार फोन करके मुझे तंग करते रहेंगे। यह आज जो मेरे साथ कर रहे हैं। कल को हो सकता है कि तुम्हारी जिंदगी में कुछ अच्छा हो, तब यह वहां तुमको भी तकलीफ दे सकते हैं।
इससे अच्छा है कि सबके मुंह तुम अभी से बंद कर दो। इससे जिंदगी भर की तुम्हारी छुट्टी हो जाएगी। इस वजह से मैंने अपने बारे में इंटरव्यू दिया था कि मैं मिस्ट्रेस थी, मैं प्रॉस्टिट्यूट थी, बार डांसर थी, सिंगर थी। मैंने सब कुछ किया है, क्योंकि मेरे घर की हालत ठीक नहीं थी। हालांकि, इनमें से एक भी बात सच नहीं थी लेकिन लोगों का मुंह बंद करना जरूरी था।
मैं कोई हीरोइन नहीं थी और न ही किसी फिल्म से लांच हुई थी। मैं सिर्फ एक राइटर थी, लेकिन लोगों को यह देखकर आग लग गई थी कि कल तक जिस औरत को हम जलील करते थे, वो महेश भट्ट तक कैसे पहुंच गई। मैंने कुछ किया या नहीं किया, दोनों को प्रूव नहीं सकती। मैंने सोचा कि हटाओ सब कुछ, अपने आपको खुद ही बदनाम कर दो, खुद ही जलील कर दो, खुद ही गिरा दो। अपने आपको इतना गिरा दो कि यह पूरी दुनिया जो मजे ले रही है, उनकी दुकान बंद हो जाए और वही हुआ।
मीडिया में यह बातें देने के बाद भट्ट साहब को फोन आने बंद हो गए। उन्होंने खुद यह बात बताया कि अब सारे फोन आने बंद हो गए। यह हमारा मकसद था और यही हुआ। हम उसमें कामयाब हुए। जब मैंने भट्ट साहब को ज्वाइन किया तो उस वक्त आठ-दस फिल्में एक साथ बना रहे थे, इसलिए मेरे पास बहुत काम था। मैंने उन्हें साल भर असिस्ट किया, मुझे फाइनेंशियल कुछ समझ में नहीं आ रहा था इसलिए छोड़ दिया।
मैंने भट्ट साहब को छोड़ दिया, पर वहां पर जाने-माने नॉवलिस्ट जगदम्बा प्रसाद दीक्षित के साथ अंडरस्टैंडिंग बढ़ गई। वे भट्ट साहब के लिए फिल्में लिखते थे। मैंने दो-तीन साल दीक्षित जी के साथ काम सीखा। उन्होंने बहुत एनकरेज किया। मैंने 1993 से लेकर 1996 तक दीक्षित जी के साथ काम किया। उनके साथ बात करना ही सीखना होता था। मैं दिमाग की खिड़कियां खुली रखती थी। उस दौरान मुझे शरतचंद जैसे लेखकों की किताबें पढ़ने के लिए देते थे। उनका मेरी जिंदगी में बहुत बड़ा योगदान है।
दस साल बाद 2002 में महेश भट्ट से दोबारा मिलने गई। उस समय तक राइटर के तौर पर काफी जानकारियां जुटा ली थी। भट्ट साहब से मिली, तब उन्होंने कहा कि, मैं तो अपनी फिल्में खुद लिखता हूं। मुझे नहीं लगता कि आउटसाइडर राइटर के साथ काम करूंगा। मैंने कहा कि ठीक है। आप मेरे साथ लिखिए मत, पर एक सीन लिखने के लिए दे दें या फिर कोई छोटा-मोटा काम दे दे। उन्होंने कहा- ठीक है, बताएंगे।