असम की मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन…सोमवार को नेशनल चैंपियन बन गईं। 25 साल की इस मुक्केबाज ने 75 किग्रा वेट कैटेगरी में अरुंधति को हराया। गोल्ड मेडल मैच से पहले टोक्यो ओलिंपिक गेम्स की ब्रॉन्ज मेडलिस्ट लवलीना ने पेरिस ओलिंपिक की तैयारी, करियर और अपने संघर्ष पर खास बातचीत की।
बातचीत में लवलीना ने अपने बॉक्सिंग में आने का किस्सा शेयर किया। उन्होंने बताया- ‘मैंने बॉक्सिंग की शुरुआत मिठाई के डिब्बे में लिपटे अखबार में मोहम्मद अली की खबर पढ़कर की थी। पापा ने मुझे वह खबर पढ़ाई थी और मुझे मोहम्मद अली और बॉक्सिंग के बारे में बताया। यहीं से मेरे मन में बॉक्सर बनने का ख्याल आया। इससे पहले मैं मार्शल आर्ट्स खेलती थी।
ब्रॉन्ज के बाद अब गोल्ड मेडल ही लक्ष्य है। आमतौर पर ओलिंपिक की तैयारी के लिए 4 साल का समय होता है। इस बार कम समय है। अब मेरे पास डेढ़ साल ही बचा है। जैसे कोच गाइड करेंगे वैसी ही मेरी ट्रेनिंग होगी। कोच सर हर बॉक्सर के लिए अलग-अलग रणनीति बनाते हैं। उन्हीं के गेम प्लान के अनुसार खेलने की कोशिश करूंगी। मेरा पूरा प्रयास रहेगा कि मैं पेरिस ओलिंपिक में देश को गोल्ड मेडल दिलाऊं।
पिछली बार कोविड के कारण बहुत अच्छी ट्रेनिंग नहीं मिली थी। जब ट्रेनिंग के लिए जाते थे, तभी कोरोना के कारण कैंप बंद हो जाता था और हमें घर भेज दिया जाता था। बीच में मै भी पॉजिटिव हो गई थी। उसी बीच मां की भी तबियत खराब हो गई। इस बार उम्मीद करती हूं कि वैसी स्थिति न बने और हम अच्छी ट्रेनिंग कर सके। यदि सब ठीक रहा तो हम अच्छी ट्रेनिंग करेंगे। अच्छी ट्रेनिंग होगी तो रिजल्ट भी अच्छा आएगा।
काफी ज्यादा चुनौतीपूर्ण। फैमिली की फाइनेंशियल कंडीशन ठीक नहीं थी। बॉक्सिंग में ओलिंपिक का सपना लेकर आई थी। मम्मी-पापा ने भी समझाया था कि अगर सपना बड़ा देखेंगे तो दिक्कतें आएंगी। दिक्कतों और चुनौतियों का सामना करते समय मैंने हमेशा अपने सपने की तरफ देखा और खुद से कहा कि सपने बड़े हैं तो चुनौतियां भी बड़ी ही होंगी और लड़ाई करना जारी रखा। चोटिल हो जाना, घर से दूर रहना और हार-जीत को हैंडल करना मुश्किल था। लेकिन, टारगेट पूरा करने के लिए धैर्य रखना बहुत जरूरी था। अनुशासन रखने के साथ आगे बढ़ने को कोशिश करती रही। सपना बड़ा है इसलिए दिक्कतों को छोटा रखना पड़ता है।