ये है फोली आर्ट। फोली आर्ट यानी फिल्मों में शूटिंग के बाद हर सीन को रियलिस्टिक टच देने के लिए हर चीज के साउंड को एक 10X16 के कमरे में डब किया जाता है। जैसे पैदल चलने से लेकर दरवाजा खुलने, कुर्सी सरकने तक की आवाज। फिल्म में जितना काम हीरो-हीरोइन करते हैं, उससे ज्यादा काम पर्दे के पीछे फोली आर्टिस्ट करते हैं। एक छोटे से स्टूडियो में ढाई घंटे की फिल्म में रियल साउंड इफेक्ट देने में करीब 150 घंटे का समय लगता है।
फिल्म मेकिंग के इस हिस्से के बारे में लोग कम ही जानते हैं। इंडिया में सबसे बड़े फोली आर्टिस्ट हैं करण अर्जुन सिंह। कृष-3, बाहुबली, दंगल, टाइगर जिंदा है जैसी फिल्मों से लेकर दिल्ली क्राइम, पाताल लोक जैसी वेब सीरीज तक, इन सभी में फोली आर्ट का काम इन्हीं ने किया है। ये इंडिया के टॉप फोली आर्टिस्ट हैं, लेकिन यहां पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। 12 साल की उम्र से ये इस काम को सीख रहे हैं, तब इन्हें रोज 20 घंटे काम करना पड़ता था। इतना काम था कि स्कूल भी हफ्ते में एक-दो दिन ही जा पाते थे।
फोली आर्ट ने इन्हें नाम दिलाया, लेकिन जिंदगी कि शुरुआत एक गुरुद्वारे से हुई, जहां इनका पूरा परिवार एक कमरे में रहता था और वहीं काम करता था। किस्मत बदली और इनके परिवार को जबरन नामी फिल्म प्रोड्यूसर बी.आर. चोपड़ा के फार्म हाउस लाया गया, लेकिन ये जबरदस्ती ही जिंदगी बदलने वाली साबित हुई।
फोली आर्ट- फिल्मों में किरदारों के अलावा जो आवाजें होती हैं जैसे कि तलवारों की आवाज, चलने की आवाज, बारिश की आवाज, ये सभी फोली आर्ट का हिस्सा होती हैं। इसको आप ऐसे समझ लीजिए कि रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों का प्रयोग करके किसी भी फिल्म, शो या सीरीज के लिए आवाजें निकालना ही फोली आर्ट कहलाता है।
फोली आर्टिस्ट- ये काम शूटिंग खत्म होने के बाद पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान किया जाता है। जो कलाकार यह काम करते हैं, उन्हें फोली आर्टिस्ट कहते हैं।
रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों का प्रयोग करके फोली इफेक्ट्स को क्रिएट किया जाता है। हवा के बहने की आवाज कपड़ों को लहराकर रिकॉर्ड की जाती है। सूखे पत्तों की आवाज के लिए रील को क्रश किया जाता है। खाली डिब्बों के आवाज के लिए फर्नीचर के टूटने की आवाज को रिकॉर्ड किया जाता है। कीचड़ के लिए पुराने अखबारों को पानी में भिगोकर इस्तेमाल किया जाता है। पत्ता गोभी और तरबूज का इस्तेमाल किसी को चाकू मारने की आवाज के लिए किया जाता है। इन सभी साउंड इफेक्ट्स को महज 10×16 फीट के स्टूडियो में क्रिएट किया जाता है।
मेरा जन्म मुंबई में हुआ था और वहीं पर मेरी पढ़ाई भी पूरी हुई। पापा मुंबई के ही एक गुरुद्वारे में काम किया करते थे और मेरा पूरा परिवार वहीं गुरुद्वारे में मिले एक कमरे में रहता था। वहां पर सभी सुख-सुविधाएं थीं। हम कुल पांच भाई-बहन थे।
एक दिन गुरुद्वारे में फिल्म प्रोड्यूसर बी.आर चोपड़ा आए थे। उस समय जुहू में उनका एक फार्म हाउस बन रहा था। उसी के लिए उन्हें एक भरोसेमंद सिक्योरिटी गार्ड की तलाश थी। जब बी.आर चोपड़ा ने गुरुद्वारे में मेरे पापा को काम करते हुए देखा तो उन्होंने उसी समय मन बना लिया कि वो उन्हीं को उस फार्म हाउस के लिए बतौर गार्ड रखेंगे। इसके बाद उन्होंने अपने कुछ आदमियों को पापा के पास भेजा और कहा कि कह दो बी.आर चोपड़ा मिलना चाहते हैं।
इसके बाद पापा की उनसे मुलाकात हुई। बी.आर चोपड़ा ने उन्हें कहा कि वो परिवार समेत उनके फार्म हाउस पर चलें और वहां की सिक्योरिटी संभालें। रहने के लिए एक कमरा भी दिया जाएगा इसलिए वो परिवार समेत वहां आ जाएं। पापा ने उनके इस प्रस्ताव के लिए हामी भर दी थी, लेकिन जब ये बात उन्होंने मां को बताई तो वो भड़क गईं। उन्होंने कहा कि वो ऐसे कैसे अपना सब कुछ वहां से छोड़कर बी.आर चोपड़ा के यहां चली जाएं। जहां पर वो इतने सालों से रह रही हैं इसलिए उसे छोड़कर वो नहीं जा सकती हैं। पापा ने उन्हें बहुत मनाया, लेकिन वो नहीं मानी।
जब कुछ दिन बाद भी पापा नहीं गए तो बी.आर चोपड़ा ने अपने कुछ लोगों को भेज दिया था मेरे पूरे परिवार को उठाकर काम पर लाने के लिए। इसके बाद हम जहां रहते थे वहां पर उनके आदमी आ गए और बिना पूछे ही घर का सारा सामान अपनी गाड़ी में डाल दिया। आखिरकार हम लोगों को फार्म हाउस आना पड़ा और वहां पर पापा ने काम शुरू कर दिया।
इसी घटना के दौरान ने मां एक आदमी को शाप दे दिया था और बाद में उनका शाप सच भी साबित हुआ था। दरअसल, जब बी. आर चोपड़ा ने हमारे घर को शिफ्ट करने के लिए कुछ लोगों को भेजा था, तब उसी दौरान मां ने उनमें से एक आदमी को शाप दे दिया था। उन्होंने कहा था, ‘जिस तरीके से तुम मुझे मेरे घर से दूर कर रहे हो वैसे ही एक दिन तुम्हारा भी सब कुछ खत्म हो जाएगा। खाने के लाले पड़ जाएंगे और तुम मेरे पास मदद की गुहार लगाने आओगे।’
कुछ सालों बाद मां का ये शाप सच भी हुआ। जब हमारी आर्थिक स्थिति पहले से काफी बेहतर हो गई थी, तब वही आदमी हमारे घर पर खाने के लिए पैसे मांगने आया था। उस आदमी की हालत बहुत खराब थी। उसको शराब की लत गई थी और पैसे की भी तंगी थी। ऐसी हालत देखकर मां ने उसकी मदद करते हुए कुछ पैसे दिए थे। साथ ही उन्होंने उस घटना का भी जिक्र किया था
बी.आर चोपड़ा के फार्म हाउस पर आने के बाद दिन भर स्कूल और शाम को खेलने के बाद मैं उनके स्टूडियो में जाता था। रात में बस वहां फोली आर्टिस्ट ही रहते थे। एक दिन मैंने एक फोली आर्टिस्ट को देखा जो कई तरह की आवाजें निकाल रहा था। इन सभी चीजों को देखकर मैं अचंभित हो गया। इसी के बाद मैंने फैसला किया कि आगे जाकर मैं भी इसी में अपना करियर बनाऊंगा।
मैं सातवीं क्लास में फेल भी हो गया था। इसके बाद पापा मुझे स्टूडियो ले गए और मेरी मुलाकात वहां एक एक्शन डायरेक्टर से कराई। पापा ने कहा, ‘इसे कुछ सिखा दीजिए। पढ़ाई में कमजोर है, पता नहीं आगे जाकर ये कुछ करेगा या नहीं।’ उन्होंने पापा से कहा, ‘चिंता ना करो मै इसे सिखा दूंगा।’
इसके बाद मैं स्कूल से आने के बाद वहां रोज रात को जाता था। जो फोली करता था उसकी थोड़ी बहुत मदद भी करता था। कभी रस्सी लाकर दे देता था, कभी बाहर से पानी भरकर दे देता था। सुबह 3-4 बजे तक वहां रहता था, चीजों को सीखता था। साथ ही दिन में मैं रिकॉर्डिंग स्टूडियो में डबिंग सीखता था क्योंकि वहां काम करने के दौरान मैं एक-दो दिन छोड़कर ही स्कूल जाता था
मेरा मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। इसी वजह से मां-पापा को मेरे जुड़वां भाइयों से ज्यादा उम्मीद रहती थी, लेकिन उनकी ये उम्मीद भी बहुत जल्दी खत्म हो गई।
छुट्टियों में हम सभी भाई-बहन मां के साथ नानी के घर गए थे। एक दिन खेलते समय मेरे दोनों जुड़वां भाई एक कुएं में गिर गए। दोनों को बचाने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन बचाया नहीं जा सका। जिसके बाद पूरा परिवार बिखर सा गया। बाद में मैं ही एकलौता बेटा बचा, जिससे पूरे परिवार को बहुत उम्मीद
भाइयों के मौत के बाद मैं बी.आर चोपड़ा स्टूडियो में परमानेंट एम्प्लाई हो गया। दरअसल, वहां दोनों भाई पहले से ही काम करते थे। उन दोनों के निधन के बाद मैं वहां दिन में रिकॉर्डिंग स्टूडियो में डबिंग सीखता और रात में फोली। इस तरह मैं सुबह 8 बजे से लेकर अगली सुबह 4 बजे तक काम करता था। साथ में पढ़ाई भी चलती थी।
1984 में फिल्म तेरी मेहरबानियां रिलीज हुई थी। वो मेरी पहली फिल्म थी, जिसमें मैंने बतौर फोली आर्टिस्ट काम किया था। इसी के बाद ये सिलसिला शुरू हो गया। 2003 तक मैं बी.आर चोपड़ा स्टूडियो से जुड़ा था। उसके बाद वहां पर मैंने काम करना बंद कर दिया। वजह थी काम के हिसाब से पैसे कम मिलना। काम ज्यादा था और मेहनताना कम। जाते समय बी.आर चोपड़ा ने मुझसे पूछा भी नहीं, मैं क्यों जा रहा हूं। अगर पूछते तो मैं जरूर बता देता।
वहां से निकलने के बाद मैंने 6 साल तक फ्रीलांस काम किया। जहां पहले एक या दो दिन में साउंड इफेक्ट का काम हो जाता था, वो उस दौरान (साल 2003 में) मुमकिन नहीं था। उसके लिए करीब 100 या 150 घंटे लग जाते थे। ऐसे केस में कोई भी स्टूडियो वाला मुझे एक से दो दिन अपना स्टूडियो दे सकता था, लेकिन उससे ज्यादा नहीं। इसी वजह से मैंने अपने दोस्त मुजैफा केसर के साथ द फोली आर्टिस्ट स्टूडियो खोला। ये वही स्टूडियो है जहां पर मैंने बड़ी-बड़ी फिल्मों के लिए काम किया है।
जब मैं 2003 में खुद का नया स्टार्टअप शुरू करने की कोशिश में था तो मुझे पैसे से लेकर हर एक चीज की दिक्कत हुई। काम भी नहीं मिलता था क्योंकि जो भी काम मिलता, वो बी.आर चोपड़ा स्टूडियो के रेफरेंस पर ही मिलता था। हालांकि मेरा नाम बहुत था और लोग भी मुझे जानते थे, लेकिन स्थायी पता नहीं होने की वजह से काम मिलने में बहुत दिक्कत होती थी।
पैसी की तंगी थी तो मैं बांद्रा में एक स्टूडियो में काम करने लगा, लेकिन कुछ समय बाद उसके मालिक से मेरी लड़ाई हो गई तो मैंने वहां काम करना छोड़ दिया। इसके बाद मैं मलाड के एक स्टूडियो में काम करने लगा, लेकिन 2005 में मुंबई में जो बाढ़ आई तो उसमें वो स्टूडियो भी बह गया।
इसी के बाद मैंने अपने दोस्त मुजैफा केसर के साथ द फोली आर्टिस्ट स्टूडियो खोला था, जो अभी तक जारी है। शुरुआत में इस स्टूडियो में काम करना मुश्किल था, लेकिन जब मेरे काम को एक दो फिल्मों में सराहना मिली तो उसके बाद कई फिल्मों के ऑफर आने लगे। इस स्टूडियो में सबसे पहले मैंने फिल्म हैप्पी में काम किया था, जो अभी हाल में ही जी-5 पर रिलीज हुई है। लव आज कल इस स्टूडियो की पहली ऐसी फिल्म है, जिसने मुझे दोबारा पॉपुलैरिटी दिलाई
बी.आर चोपड़ा स्टूडियो में काम करने के ही दौरान मैंने अपनी दोनों बहनों की शादी करा दी थी। इसके बाद 1997 में मैंने शादी की थी। हम दोनों (मैं और मेरी पत्नी) पहले से एक-दूसरे को जानते थे और बाद में परिवार की सहमति से शादी की थी। शादी के एक साल बाद ही 1998 में हमें एक बेटा हुआ, लेकिन काम की वजह से मैंने उसके साथ बिल्कुल भी समय नहीं बिताया। जब मैं काम करके सुबह घर आता था तो मेरा बेटा स्कूल चला जाता था और जब वो आता था तो मैं नहीं रहता था।
इतना ही नहीं, मैंने अपनी वाइफ के साथ भी बहुत कम समय बिताया। वो भी एक होटल में काम करती थीं तो सुबह वो भी जल्दी चली जाया करती थी इसलिए हमारे बीच बातचीत कम होती थी। बी.आर चोपड़ा का स्टूडियो छोड़ने के बाद 2004 में हमें एक बेटी हुई। हालांकि मैंने उसके साथ वक्त बिताया है क्योंकि उस समय खुद का काम था और प्रेशर भी कम था।
करियर के शुरुआती 2 सालों में मैंने बिना फीस के ही काम किया। इसके बाद मुझे मेरी पहली फीस मिली थी, जो 100 रुपए थी क्योंकि उस समय हर एक फिल्म के लिए करीब 3000 रुपए ही मिलते थे। बाद में वो सभी फोली आर्टिस्ट में बांट दिए जाते थे।
हालांकि अब वैसे हालात नहीं हैं। मेरा काम बहुत अच्छा चल रहा है। अब एक फिल्म के लिए हम 3-4 लाख लेते हैं, जो खाने और तमाम खर्चे के बाद बचता है। उस लिहाज से एक फिल्म के लिए मेरी फीस 1-2 लाख होती है।
एक एक्शन फिल्म में लगभग 5 लाख फोली इफेक्ट होते हैं। इस लिहाज से मैं एक फिल्म को 100 से 200 घंटे में पूरी कर लेता हूं, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा वक्त फिल्म कृष-3 में लगा था। इस फिल्म में मैंने 450 घंटे काम किया था। ये मेरे करियर की पहली ऐसी फिल्म है, जिसमें मैंने इतना वक्त दिया। इसके बाद फिल्म दंगल थी, जिसमें सबसे ज्यादा टाइम लगा था।
अपकमिंग प्रोजेक्ट्स की बात करें तो मैंने रोहित शेट्टी की आगामी फिल्म सर्कस के लिए काम किया है। इसके अलावा मेरे बहुत सारे हाॅलीवुड के भी प्रोजेक्ट्स हैं क्योंकि मैंने उस इंडस्ट्री के भी कई सारे शोज और सीरीज में काम किया है। हालांकि अभी वहां की फिल्म लाइन में मेरी एंट्री नहीं हुई है।