21 साल में बनी थी तुंबाड, अब तुंबाड की तुलना कांतारा से हुई जानिए कैसी है मूवी

कन्नड़ भाषा की फिल्म कांतारा लगातार बॉक्स ऑफिस पर कमाई के नए रिकॉर्ड कायम कर रही है। महज 18 करोड़ में बनी इस फिल्म ने 446 करोड़ कमाई कर ली है। इसी बीच फिल्म की तुलना लगातार 2018 की फिल्म तुंबाड से की जा रही है। ये मुद्दा और भा ज्यादा तब गर्माया जब तुंबाड के क्रिएटिव डायरेक्टर आनंद गांधी ने कहा कि कांतारा फिल्म तुंबाड के आगे कुछ नहीं है। इसके बाद से ही सोशल मीडिया पर दोनों फिल्मों के दो अलग-अलग गुटों के बीच जमकर बहस छिड़ गई है। इन सबसे इतर दोनों ही फिल्मों के बनने की जर्नी बेहद अलग रही है। जहां कांतारा 2021 से बन रही थी, वहीं तुंबाड बनने में पूरे 21 सालों का लंबा समय लगा।

कांतारा को लगातार दर्शकों का पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिल रहा है जिसके बाद फैंस ने इसकी तुलना तुंबाड से की। ऐसे में तुंबाड के क्रिएटिव डायरेक्टर ने ट्वीट कर कांतारा की आलोचना की। उन्होंने लिखा, कांतारा, तुंबाड के आगे कुछ नहीं है। तुंबाड बनाने के पीछे मेरा आइडिया था टॉक्सिक मर्दानगी और पारलौकिक चीजों के आतंक को दिखाना था, जबकि कांतारा इन चीजों को बढ़ावा देती है। आनंद का ट्वीट आते ही फैंस उनके खिलाफ लगातार बयान दे रहे हैं। उनका कहना है कि कांतारा ने 400 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया है, जबकि तुंबाड इसका आधा भी नहीं कर सकी।
डायरेक्टर राही अनिल बार्वे ने साल 1997 में इस फिल्म की स्टोरी पर काम करना शुरू किया था। उस समय डायरेक्टर महज 18 साल के थे। 2009-10 के बीच अनिल ने करीब 700 पन्नों का स्टोरीबोर्ड तैयार किया। साल 1993 में अनिल के दोस्त ने उन्हें एक वाइल्डलाइफ सेंचुरी की कहानी सुनाई थी, जिसे सुनकर अनिल इतना डर गए कि उनकी पैंट तक गीली हो गई। इसी आइडिया पर उन्होंने फिल्म बनाने का सोचा। वहीं फिल्म का टाइटल मराठी नोवल तुंबाड़चे खोट से लिया गया था।

अनिल ने 2008 में मुश्किल से प्रोड्यूसर ढूंढा और लीड रोल में नवाजुद्दीन सिद्दीकी को साइन किया गया, लेकिन उस प्रोड्यूसर ने फिल्म छोड़ दी तो नवाज भी निकल गए। ऐसे में 2012 में अनिल ने खुद ही फिल्म को फाइनेंस करते हुए इसे शुरू किया।
सोहुम शाह को विनायक के रोल में कास्ट किया गया, जिसके लिए उन्होंने 8 किलो वजन बढ़ाया था। फिल्म 6 सालों में बनकर तैयार हुई ऐसे में सोहुम ने वही वजन मेंटेन किया।
जब फिल्म बनकर तैयार हुई तो डायरेक्टर अनिल उससे संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने फिल्म दोबारा लिखी और नए सिरे से दोबारा शूटिंग की। ऐसे में फिल्म 2015 तक बनकर तैयार हुई।
कांतारा की मेकिंग में सबसे ज्यादा मुश्किल फिल्म की शूटिंग रही। दैव कोला का रोल निभाने वाले ऋषभ शेट्टी को रोजाना 50-60 किलो सामान उठाकर शूट करना पड़ता था। दैव कोला जैसा पवित्र नृत्य करने के कारण ऋषभ ने मांसाहारी खाना त्याग दिया और पूरी शूटिंग सिर्फ नारियल पानी पीकर की। शूटिंग में फायरस्टिक से पीटे जाने पर उनकी पीठ जल गई थी
इस फिल्म को 30 सितंबर 2022 में साउथ की महज 800 स्क्रीन्स पर कन्नड़ भाषा में रिलीज किया गया था। कन्नड़ में मिली सफलता के बाद इसे हिंदी, तमिल, तेलुगु भाषा में रिलीज करने का फैसला किया गया। इसे हिंदी में देशभर की 2500 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया। विएतनाम में रिलीज होने वाली ये पहली कन्नड़ फिल्म है। फिल्म ने अब तक 446 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया है। इसी बीच भेड़िया, रामसेतु, थैंक गॉड जैसी बड़ी फिल्में रिलीज हुईं, लेकिन उन सभी की कमाई कांतारा से कम रही।
तुंबाड का प्रीमियर वेनिस फिल्म फेस्टिवल में हुआ। इस फेस्टिवल में गई ये पहली भारतीय फिल्म थी। इसे फिल्मफेयर की 8 केटेगरी में नॉमिनेट किया गया था, जिनमें से इसे बेस्ट सिनेमैटोग्राफी, बेस्ट आर्ट डायरेक्टर और बेस्ट साउंड डिजाइन का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला। इसके अलावा फिल्म को अलग-अलग अवॉर्ड फंक्शन में करीब 18 अवॉर्ड मिले थे।
कांतारा की कहानी- ये फिल्म दैव कोला परंपरा पर आधारित है। फिल्म में दिखाया गया है कि 1847 के राजा, परिवार, संपत्ति और प्रजा होने के बावजूद कभी सुकून से नहीं सो पाता। एक बाबा के कहने पर वो राजा भ्रमण पर निकलता है और एक पत्थर के बदले पंजुरी दैवा के लोगों को उस जंगल की पूरी जमीन सौंप देता है। पुंजरी दैवा के लोग परंपरा के अनुसार सभी अहम फैसले दैव नर्तकों के कहे अनुसार लेते हैं। गांव के लोग दैव नर्तकों की वैशभूषा ग्रहण कर जब नृत्य करते हैं तो उनके शरीर में देवता प्रवेश करते हैं। 1970 में उस राजा का वंशज अपनी जमीन वापस लेने आता है, जो दैव नर्तकों का अपमान कर देता है। मुख्य दैव नर्तक जंगलों में जाकर गायब हो जाते हैं, जिसके बाद उनका बेटा काबूबेट्टी (ऋषभ शेट्टी) फॉरेस्ट ऑफिसर और उस राजा के वंशज से अपनी जमीन बचाता है।
तुंबाड़ की कहानी- फिल्म एक धन और सोने की देवी की कहानी है जो 190 देवताओं को जन्म देती है। उसका सबसे प्रिय बेटा हस्तर था जो लालच में सारा धन और खाना लूट लेता है। जब बाकी देवता उस पर हमला करते हैं तो उनकी मां इस शर्त में हस्तर को बचाती हैं कि उसके पास सोना तो होगा, लेकिन कभी उसकी पूजा नहीं होगी और वो अन्न को तरसेगा। हस्तर को हमेशा के लिए तुंबाड गांव में देवी की गर्भ कहे जाने वाले कक्ष में कैद कर दिया जाता है।
1918 में विनायक नाम का एक लड़का अपनी मां के साथ तुंबाड गांव में रहता है जहां उनके घर में एक बूढ़ी औरत रहती है। विनायक उस औरत से डरता है, लेकिन वो औरत हस्तर के नाम से डरती है। मां विनायक को गांव से दूर ले जाती है, लेकिन जवानी के दिनों में गरीबी से परेशान विनायक हस्तर के खजाने की तलाश में तुंबाड गांव लौट आता है। वो बूढ़ी औरत विनायक को इस शर्त में खजाने का राज बताती है कि उसे मुक्ति देनी होगी। वादे के अनुसार विनायक उस औरत को जला देता है और खजाने की तलाश में निकलता है।
हस्तर के पास सोना तो था, लेकिन उसके पास अन्न नहीं था। इस बात का फायदा उठाते हुए विनायक अक्सर गर्भ में जाकर चालाकी से सोना लेकर आता है। जब विनायक बूढ़ा होता है तो वो अपने बेटे को ये राज बताता है। एक दिन बेटे की गलती से विनायक हस्तर को छू लेता है और शापित हो जाता है, जिससे वो अपने बेटे से खुद को जलाने की विनती करता है।