प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को गांधीनगर जिले के अडलाज शहर में ‘मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस’ पहल की शुरुआत की और इस दौरान उन्होंने एक स्कूल का दौरा किया. खबरों और सोशल मीडिया सामने आई तस्वीरों में प्रधानमंत्री को कक्षा में एक बेंच पर बैठ कर छात्रों के साथ बातचीत करते हुए देखा जा सकता है. इसके बाद आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस के नेताओं समेत कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि जिस कक्षा में प्रधानमंत्री मोदी बैठे हैं, वो किसी स्कूल की कक्षा जैसी नहीं दिख रही है, बल्कि ‘नकली’ क्लासरूम का सेटअप है.
इसके बाद आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस के नेताओं समेत कई सोशल मीडिया यूजर्स ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि जिस कक्षा में प्रधानमंत्री मोदी बैठे हैं, वो किसी स्कूल की कक्षा जैसी नहीं दिख रही है, बल्कि ‘नकली’ क्लासरूम का सेटअप है.
कई ट्विटर यूजर्स ने सवाल भी किया कि इस स्कूल का पता बताया जाना चाहिए.
आप विधायक नरेश बाल्यान ने लिखा, ‘फोटो खिंचाने के लिए बच्चे को ठगते हो… बच्चे ईश्वर का रूप होते है. नक़ली क्लासरूम, प्रिंट किया हुआ खिड़की लगा दिया, इतना भी फ़ेक नहीं दिखाना था विद्या के मंदिर में की लोगो का भरोसा ही उठ जाए. राष्ट्रीय लोक दल ने भी इस बारे में तंज़ करते हुए कहा कि ‘शिक्षा के मंदिर को नकल का मंदिर बना दिया’ गया. पार्टी के ट्विटर हैंडल से लिखा गया, ’27 साल में भाजपा गुजरात में एक ऐसा स्कूल नहीं बना पाई जहां मोदी जी का फोटोशूट हो सके… उसके लिए भी फोटोशॉप/ फ्लैक्स का इस्तेमाल करना पड़ रहा है…ये तो बहुत ही निंदनीय है.’ कांग्रेस नेताओं ने भी इस पर चुटकी ली. कांग्रेस के छत्तीसगढ़ इंचार्ज और पार्टी के राष्ट्रीय सचिव चंदन यादव ने लिखा, ‘साहब की शूटिंग के लिए कल स्कूल का सेट लगाया गया था! सस्ते सीरियल भी इतने नकली नहीं होते हैं जितने मोदी के न्यूज़ शूट्स होते हैं.’
इस बीच, उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने लिखा, ‘फिल्म की शूटिंग होनी थी… क्लासरूम प्लाईवुड से बनाया गया. खिड़की का ध्यान नहीं आया तो बना नहीं, आनन फानन मे पेंटिग करके खिड़की बनाई गई. क्या मिलता है ये सब करके, आखिर पोल खुलने पर जग हंसाई होती है.
लेखक और शिक्षक रामशंकर सिंह ने भी इस बारे में टिप्पणी करते हुए लिखा कि स्कूली बच्चे किसी के प्रचार के औज़ार नहीं बनने चाहिए.
फेसबुक पर किए एक पोस्ट में उन्होंने कहा, ‘जीवन के हर क्षेत्र को फोटोशूट और प्रचार का माध्यम बनाकर छोड़ देना घोर निंदनीय है.
नक़ली क्लासरूम है , नक़ली खिड़की है लेकिन एक बच्चे के हाव भाव सब बयान कर रहे हैं. दूसरे चित्र के बच्चे क्या इंगित कर रहे हैं? पांचों की नज़रें अलग अलग दिशाओं में हैं… 18-18 घंटे प्रचार की प्लानिंग और सिर्फ़ यही होते रहना भी साबित करता है कि देश कहां जा रहा है.’
Source : The wire