साइलेंट फिल्मों के दौर में इंडियन सिनेमा में काम करना शुरू किया भगवान् दादा ने, पुण्यतिथि पर जानें कुछ ख़ास

भगवान दादा का जन्म 1913 में महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनका असली नाम भगवान अबाजी पांडव था। उनका बचपन दादर और परेल के मजदूर इलाके में बीता था और चौथी कक्षा के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। इसके बाद दादा ने एक कपड़ा मिल में मजदूर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। काम करने के दौरान ही भगवान दादा का झुकाव एक्टिंग की ओर हो गया था।
भगवान दादा ने साइलेंट फिल्मों के दौर में इंडियन सिनेमा में काम करना शुरू किया था। इसी दौरान उन्होंने फिल्म मेकिंग भी सीखी। 1931 से लेकर 1996 तक यानी करीब 65 साल तक उन्होंने सिनेमा जगत में बतौर एक्टर, डायरेक्टर और कॉमेडी के बेताज बादशाह के रूप में काम किया। भगवान दादा ने फिल्म ‘क्रिमिनल’ से फिल्म जगत में डेब्यू किया था।
दादा की पहली निर्देशित फिल्म ‘बहादुर किसान’ थी। इस फिल्म का उन्होंने 1938 में चंद्रराव के साथ मिलकर सह-निर्देशन किया था। इसके बाद उन्होंने एक तमिल फिल्म ‘वाना मोहिनी’ का निर्देशन किया जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण फिल्म है। ये फिल्म हाॅलीवुड फिल्म ‘डोरोथी लैमौर’ की रीमेक थी
राज कपूर और भगवान दादा अच्छे दोस्त थे। राज कपूर ने उन्हें सलाह दी थी कि वो एक सोशल मैसेज वाली फिल्म बनाएं जिसके बाद उन्होंने फिल्म ‘अलबेला’ बनाई, जो उस साल की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इस फिल्म के गीत ‘शोला जो भड़के’ और ‘भोली सूरत दिल के खोटे’ आज भी याद किए जाते हैं। भगवान दादा की पहली बोलती फिल्म ‘हिम्मत-ए-मर्दा’ थी। इस फिल्म में ललिता पवार लीड रोल में थीं।
भगवान दादा शेवरले कारों के शौकीन थे। यही कारण है कि उन्होंने ‘शेवरले’ नाम की फिल्म में भी काम किया था। दादा के पास 7 कारें थीं और वो हर दिन सेट पर नई कार से जाते थे। किस्सा ये भी है कि उनके डायरेक्शन की एक फिल्म के एक सीन में पैसों की बारिश दिखानी थी, इसके लिए उन्होंने असली नोटों का इस्तेमाल किया था।
अमिताभ बच्चन की बतौर सोलो हीरो पहली फिल्म ‘बॉम्बे टू गोवा’ थी। उस वक्त अमिताभ को डांस नहीं आता था। फिल्म के एक गाने देखा न हाय रे सोचा न हाय रे रख दी निशाने पे जां.. पर अमिताभ को डांस करना था, लेकिन वो नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में अमिताभ ने एक डांस स्टाइल डेवलप किया, जो भगवान दादा की स्टाइल से मिलता-जुलता था। अमिताभ के अलावा गोविंदा और मिथुन ने भी भगवान दादा से इंस्पिरेशन ली। ऋषि कपूर को तो खुद भगवान दादा ने ही डांस के स्टेप सिखाए थे।
एक किस्सा ये भी है कि 1942 में फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ की शूटिंग के दौरान भगवान दादा को ललिता पवार को एक थप्पड़ मारना था, पर उन्होंने इतनी जोर से मार दिया कि ललिता चोटिल हो गईं। उनकी बाईं आंख की एक नस अंदर से फट गई और उनके मुंह के बाईं ओर लकवा मार दिया। तीन साल उनका इलाज चला, लेकिन आंख सही नहीं हो पाई। इसके बाद से ही ललिता ने निगेटिव रोल करना शुरू किया था। हालांकि भगवान दादा को इस हादसे का ताउम्र अफसोस रहा।
भगवान दादा ने अपने फिल्मी करियर में 300 से ज्यादा फिल्मों में एक्टिंग की, लेकिन मराठी भाषी होने के बावजूद कभी भी कोई मराठी फिल्म नहीं की। जिस फिल्म ने भगवान दादा को बर्बादी के आंसू रुलाए, वो थी ‘हंसते रहना’। इसे बनाने में उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी, पर फिल्म के हीरो किशोर कुमार के नखरों के कारण इसे बंद करना पड़ा और ये फिल्म पूरी ना हो पाई। इससे दादा को इतना नुकसान हुआ कि उन्हें जुहू स्थित बंगला और अपनी कारें बेचनी पड़ीं।
आर्थिक तंगी के कारण दादा को मुंबई की चॉल में गुजारा करना पड़ा। 4 फरवरी 2002 को हार्ट अटैक से भगवान दादा का निधन हो गया। उनकी मौत पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शोक जताया था और कहा था कि भगवान दादा ने अदाकारी और डांस के माध्यम से हिंदी सिनेमा को नया आयाम दिया है।