राज्यसभा के लिए शुक्रवार को हुआ चुनाव भले ही चार राज्यों तक सीमित था, लेकिन इनका गहरा राजनीतिक प्रभाव देखने को मिलेगा। कहीं पुराने यार बिछड़ेंगे तो कहीं दोस्ती मजबूत होगी। समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे जिनका प्रभाव निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक महसूस किया जा सकता है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को अब सात-आठ महीने का समय बाकी है। जदएस विधायक के समर्थन से भाजपा को मिली जीत ने कांग्रेस और जदएस के बीच की दूरी को बढ़ा दिया है। भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में रणनीतिक बाजीगरी में कांग्रेस और जदएस ने मिलकर भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली थी। हालांकि तब भी कांग्रेस और जदएस के बीच संबंध मधुर नहीं बन पाए थे
यही कारण है कि कर्नाटक में भाजपा की ओर से परोक्ष तौर पर जदएस को साधने की कोशिश होती रही है। दरअसल भाजपा मुख्य रूप से प्रभावशाली लिंगायत की पार्टी मानी जाती है और जदएस वोकालिग्गा की। एचडी देवेगौड़ा के गिरते स्वास्थ्य और पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की रणनीतिक कमी के कारण जदएस अपने गढ़ों में कमजोर होने लगा है लेकिन उसकी जमीन खत्म नहीं हुई है
इस बार कांग्रेस ने राज्यसभा में दूसरी सीट के लिए मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर जदएस को असहज कर दिया। कोशिश यह थी कि अगर जदएस उसका समर्थन नहीं करता है तो प्रदेश के मुस्लिमों के लिए संदेश होगा कि उन्हें कांग्रेस के साथ जाना चाहिए।
सूत्रों की मानी जाए तो कांग्रेस और जदएस में अब इतनी खटास बढ़ गई है कि विस चुनाव में लड़ाई त्रिकोणीय ही होगी। खासकर मैसूर क्षेत्र की राजनीतिक जमीन में कांग्रेस और जदएस की आपसी लड़ाई में भाजपा अवसर देखेगी। पिछले कुछ समय में इस क्षेत्र में भाजपा ऐसी सीटें भी जीतीं जो पिछले पचास वर्ष में नहीं जीत पाई थी।
संजय पवार की हार निकट भविष्य में शिवसेना को और ज्यादा परेशान करेगी, क्योंकि अगले कुछ महीने में ही राज्य में कई महत्ववपूर्ण चुनाव होने हैं। चुनाव परिणाम से पहले ही भाजपा ने 20 जून को होनेवाले विधान परिषद चुनाव की बिसात बिछा दी और राज्य सभा चुनाव में दो अधिक उम्मीदवार उतार दिए। महाविकास आघाड़ी समर्थक छोटे दल व निर्दलीय विधायकों ने भाजपा को वोट दिया। यहां मतपत्र अपने पार्टी एजेंट को दिखाना पड़ता है, लेकिन छोटे दल व निर्दलीयों के लिए ऐसी बाध्यता नहीं थी।
महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में तो मतदान गुप्त होता है। आश्चर्य नहीं कि इन चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रास वोटिंग हो और महाविकास आघाड़ी के तीनों प्रमुख दलों को मुंह की खानी पड़े। विधान परिषद चुनाव के कुछ सप्ताह बाद ही मुंबई महानगरपालिका सहित राज्य की कई और बड़ी महानगरपालिकाओं एवं अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। अब तक शिवसेना ये स्थानीय निकाय चुनाव कांग्रेस-राकांपा के विरुद्ध और भाजपा के साथ लड़ती रही है।
प्रश्न है कि महाराष्ट्र में एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते आए कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना के कार्यकर्ताओं में सीटों का बंटवारा कैसे होगा? राज्य सभा चुनाव परिणाम के बाद तीनों सत्तारूढ़ दलों का हिल चुका आपसी भरोसा स्थानीय निकाय से लेकर लोकसभा और विधानसभा चुनाव तक इन्हें कैसे एक रखेगा, यह तो समय ही बताएगा।
हरियाणा में भाजपा के विजयी प्रत्याशी कृष्ण लाल पंवार दलित और भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा ब्राह्मण हैं। जाट बाहुल्य प्रदेश में भाजपा ने गैर जाट उम्मीदवारों पर दांव खेला था, जिसमें वह कामयाब रही है। प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव से पहले भाजपा व जजपा का राजनीतिक गठबंधन टूट गया था और कयास लगाए जा रहे थे कि सत्ता का गठबंधन भी टूट सकता है, लेकिन राज्यसभा की दोनों सीटों पर मिली जीत ने गठबंधन को मजबूती की डोर से बांध दिया है।
जीत का प्रभाव शहरी निकाय चुनाव पर अच्छे नतीजों के रूप में भाजपा व जजपा उम्मीदवारों को मिलने वाला है। जजपा का राजनीतिक कद जहां भाजपा की नजर में बढ़ा है, वहीं निर्दलीय विधायकों ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के इस इशारे पर कार्तिकेय शर्मा को वोट देकर साबित कर दिया कि उनकी राजनीतिक निष्ठा में किसी तरह की कोई कमी नहीं है। दो सीटों पर जीत हरियाणा में भाजपा का जनाधार बढ़ाने का काम करेगी। दूसरी तरफ, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे के सभी 29 विधायकों ने माकन को वोट देकर हाईकमान को एकजुटता का संदेश दिया है
तीन सीटें मिलने से प्रदेश कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मजबूत होंगे। सीएम समर्थक पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे द्वारा बार-बार गहलोत के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान पर कुछ हद तक लगाम लगने की उम्मीद जता रहे हैं। वहीं भाजपा के लिए नतीजा आत्ममंथन वाला रहा।