लगभग सात दशक पुराने नगा समस्या के स्थायी समाधान की उम्मीद एक बार फिर बढ़ गई है। मंगलवार को पहली बार केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त वार्ताकार एके मिश्र दीमापुर के समीप स्थित नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नगालैंड-आइएम (एनएससीएन-आइएम) के कैंप मुख्यालय पहुंचे और उसके प्रमुख टी मुइवा व अन्य नेताओं के साथ बातचीत की। इसके पहले सोमवार को नगालैंड के मुख्यमंत्री एन रियो, उप मुख्यमंत्री वाई पट्टन और पूर्व मुख्यमंत्री टीआर जेलियांग ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की
ध्यान देने की बात है कि 2015 के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के बावजूद 2019 से बातचीत बंद थी। दरअसल गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह पूर्वोत्तर भारत की दशकों पुरानी समस्याओं के स्थायी समाधान की कोशिश में जुटे हैं और इसमें उन्हें काफी हद तक सफलता भी मिली है। लेकिन नगा समस्या के स्थायी समाधान के लिए एनएससीएन (आइएम) के साथ रुकी हुई बातचीत अभी तक शुरू नहीं हो पाई थी।
पूर्व वार्ताकार आरएन रवि और मुइवा के बीच सीधे टकराव को देखते हुए पिछले साल खुफिया ब्यूरो के पूर्व अधिकारी एके मिश्र को वार्ताकार नियुक्त किया गया था और आरएन रवि को तमिलनाडु का राज्यपाल बनाकर भेज दिया गया था। सोमवार को एक हफ्ते के दौरे पर नगालैंड पहुंचे मिश्र ने एनएससीएन (आइएम) के कैंप मुख्यालय पहुंचकर सभी को चौंका दिया। यह पहली बार हुआ जब वार्ताकार बातचीत के लिए खुद एनएससीएन (आइएम) के कैंप मुख्यालय में पहुंचे।
वैसे तो मुइवा और मिश्र के बीच हुई बातचीत के बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया जा रहा है। लेकिन सूत्रों की माने तो बातचीत काफी सकारात्मक रही। मुइवा और मिश्र दोनों के बीच अकेले में लगभग एक घंटे बातचीत चली, उसके बाद उसमें एनएससीएन (आइएम) के अन्य नेता शामिल हुए। माना जा रहा है कि अगले एक-दो दिनों में औपचारिक बातचीत का दौर शुरू होगा।
2015 में फ्रेमवर्क एग्रीमेंट के बाद चार साल तक चली बातचीत अलग झंडे और अलग संविधान पर अटक गई थी। मुइवा ने इससे पीछे हटने से इन्कार कर दिया तो केंद्र ने साफ कर दिया कि यह संभव नहीं है। इसके बाद निचले स्तर पर बातचीत में गतिरोध को दूर करने की कोशिश हुई, लेकिन मुइवा ने आरएन रवि के साथ किसी तरह की बातचीत से साफ इन्कार कर दिया था
केंद्र सरकार एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि नगा समस्या के समाधान होने की स्थिति में पूरे पूर्वोत्तर भारत में स्थायी शांति संभव हो सकेगी। इसके पहले बोडो, ब्रू रियांग, कार्बी आनलांग जैसी दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान किया गया और इनसे जुड़े अलगाववादी संगठनों के हजारों युवा हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल हुए। इसके साथ ही मेघालय और असम के बीच ऐतिहासिक समझौते के साथ पूर्वोत्तर भारत में राज्यों के बीच सीमा विवाद के स्थायी समाधान का रास्ता भी साफ हुआ।