चुनाव हारने पर भी बीजेपी ने क्यों नहीं काटा केशव प्रसाद मौर्य का पत्ता

हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद, भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में फिर से उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। केशव प्रसाद मौर्य कौशांबी जिले की सिराथू सीट से चुनाव हार गए थे। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे उनको योगी कैबिनेट में शामिल किया जाएगा या नहीं। हालांकि, पार्टी ने उत्तर प्रदेश में प्रमुख ओबीसी नेता के तौर पर उभरे केशव प्रसाद को ‘साइडलाइन’ करने का जोखिम नहीं लिया।

सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व का एक वर्ग मौर्य को दिल्ली शिफ्ट करना चाहता था, लेकिन डिप्टी सीएम इसके लिए तैयार नहीं थे। 2024 के लोकसभा चुनाव अभियान में समाजवादी पार्टी को अपने गैर-यादव वोट बैंक के लिए और अधिक आक्रामक होने की संभावना के बीच, सत्तारूढ़ दल ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मौर्य को अलग-थलग करने का जोखिम उठाना उचित नहीं समझा। कल्याण सिंह के दौर के बाद केशव मौर्य एक प्रमुख ओबीसी नेता के रूप में उभरे हैं। केशव प्रसाद मौर्य कुशवाहा-शाक्य-मौर्य-सैनी-माली समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। 2001 की रिपोर्ट के अनुसार, ये समुदाय ओबीसी का 6.69 प्रतिशत हिस्सा हैं। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया था कि ओबीसी की आबादी 43.13 प्रतिशत (ग्रामीण क्षेत्रों में 54.05 प्रतिशत) है। ऐसे में भाजपा केशव प्रसाद मौर्य को लेकर कोई ‘रिस्क’ नहीं लेना चाहती थी। और इसी वजह से केशव प्रसाद को बढ़ा बढ़ा पद दिया गया और वास्तव में केशव इससे भी बढ़े पद के जिम्मेदार हैं।