भाजपा में एक तरफ जहां चार राज्यों में सरकार गठन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है, वहीं दक्षिण के उसके एक मात्र गढ़ कर्नाटक में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार और संगठन को कसने की अनौपचारिक कवायद शुरू हो चुकी है। 30 मार्च तक चलने वाले राज्य विधानसभा सत्र के बाद कभी भी कर्नाटक कैबिनेट में फेरबदल और विस्तार संभव है। जबकि पांच महीने में प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है।
बताया जाता है कि केंद्र से एक टीम अनौपचारिक रूप से हर मुद्दे पर वहां कुछ नेताओं के साथ चर्चा कर रही है। कर्नाटक को संभालना शुरू से भाजपा के लिए थोड़ा कठिन रहा है। दरअसल, वहां अंदरूनी लड़ाई हमेशा से तीखी रही है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दयुरप्पा के बाद बासवराज बोम्मई ने सत्ता को सही तरीके से संभाल लिया है। बोम्मई को लेकर येद्दयुरप्पा का भी कोई विरोध नहीं था और वह हर किसी को साथ लेकर चलने की कोशिश भी कर रहे हैं।
वह खुद लिंगायत समुदाय से भी हैं। ऐसे में उन्हें कर्नाटक में लंबी रेस का घोड़ा माना जा रहा है। लेकिन नीचे खेमे नहीं टूटे हैं। केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि येद्दयुरप्पा के लोगों को साथ जोड़कर रखा जाए और दूसरा स्थानीय खेमा इसके खिलाफ खड़ा है। बयानबाजी का दौर अभी तक नहीं थम पाया है।
यही कारण है कि कुछ स्तर से येद्दयुरप्पा के घोर विरोधी रहे बीआर पाटिल यतनाल को उपमुख्यमंत्री तक बनाने की कवायद हो रही है। एक तरफ आगामी चुनाव में येद्दयुरप्पा का उपयोग करना और दूसरी ओर उनके विरोधियों को मजबूत बनाना एक साथ नहीं हो सकता। लिहाजा चर्चा का दौर शुरू हो चुका है।
प्रदेश कैबिनेट में फिलहाल चार सीटें रिक्त हैं लेकिन बदलाव के साथ इसे बढ़ाया भी जा सकता है। वहीं प्रदेश अध्यक्ष को लेकर भी विचार हो सकता है। वैसे अगले साल मार्च के आसपास संभावित चुनाव के मद्देनजर यह देखना रोचक होगा कि उन्हें अगस्त में कुछ महीनों का विस्तार मिलता है या फिर नया अध्यक्ष चुना जाता है। वर्तमान अध्यक्ष नवीन कातिल भी येद्दयुरप्पा के विरोधी खेमे के माने जाते हैं।