महिलाएं समाज का एक अहम हिस्सा हैं लेकिन वक्त के साथ महिलाएं समाज और राष्ट्र के निर्माण का एक अहम हिस्सा बन चुकी हैं। घर-परिवार से सीमित रहने वाली महिलाएं जब चारदीवारी से बाहर निकल अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ी तो उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिलने लगी। खेल जगत से लेकर मनोरंजन तक, और राजनीति से लेकर सैन्य व रक्षा मंत्रालय तक में महिलाएं न केवल शामिल हैं बल्कि बड़ी भूमिकाओं में हैं। महिलाओं की इसी भागीदारी को बढ़ाने और अपने अधिकारों से अनजान महिलाओं को जागरूक करने व उनके जीवन में सुधार करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हर साल 8 मार्च को दुनिया के तमाम देशों में महिला दिवस के मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
महिला दिवस की कब हुई शुरुआत?
अमेरिका में 1908 में एक मजदूर आंदोलन हुआ था, जिसमें बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाएं शामिल हुई थीं। करीब 15 हजार महिलाओं ने न्यूयॉर्क की सड़कों पर मार्च करते हुए अपने अधिकारों को लेकर आवाज उठाई थी। कामकाजी महिलाओं की मांग थी कि उनकी नौकरी के घंटे कम किए जाएं और वेतनमान भी बढ़ाया जाए। महिलाओं ने मतदान का अधिकार देने की भी मांग की। अपने अधिकारों को लेकर इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं की बुलंद आवाज तत्कालीन सरकार के कानों में पड़ी तो आंदोलन के एक साल बाद 1909 में अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने महिला दिवस मनाने की घोषणा कर दी।
8 मार्च को क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस?
अमेरिका में महिलाओं ने 8 मार्च को अपने अधिकारों को लेकर मार्च निकाला था। जिसके बाद अगले साल सोशलिस्ट पार्टी ने इसी दिन महिला दिवस मनाने की घोषणा कर दी। वहीं 1917 में पहले विश्व युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने ब्रेड और पीस के लिए हड़ताल शुरू की थी। उन्होंने भी युद्ध को लेकर अपनी मांग और विचार रखें। इसके बाद सम्राट निकोलस ने अपना पद त्याग दिया और महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। उनको मिले अधिकार को देखते हुए यूरोप में भी महिलाओं ने कुछ दिन बाद 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स का समर्थन करते हुए रैलियां निकाली। इसी वजह से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हो गई। बाद में 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दे दी।
महिला दिवस का उद्देश्य और महत्व
भले ही आज दुनिया के तमाम देश और हमारा समाज अधिक जागरूक है लेकिन महिलाओं के अधिकारों और हक की लड़ाई अभी भी जारी है। कई मामलों में महिलाओं को आज भी समान सम्मान और अधिकार नहीं मिले हैं। महिलाओं के इन्हीं अधिकार, सम्मान के लिए समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।
भारत की कुछ प्रसिद्ध महिलाये जिन्होंने दुनिया में भारत का नाम रोसन किया
फातिमा बीवी 1989 में भारत में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनीं थी। वो वर्ष भारतीय अधिकार क्षेत्र की महिलाओं के लिए बेहद सुनेहरा था। वे कानून की पढ़ाई की मदद से देश में पुरुष-प्रधान समाज को तोडना चाहती थी। फातिमा का जन्म 1927 में त्रावणकोर (अब केरल) के तत्कालीन राज्य पथानामथिट्टा में हुआ था, और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा वहीं से पूरी की थी। अपने शुरूआती वर्ष पठानमथिट्टा में ही बिताए थे। फातिमा बीवी को रोल मॉडल मानकर आप यहां घूमने के लिए जा सकते हैं। यहां के जंगल, नदियां पर गांव का नजारा बेहद ही खूबसूरत लगता है।
कुमता शहर को इतिहास में एक किले के लिए बनाए गए स्टेशन के रूप में दिखाया गया है, जिसे गेरुसोप्पा की रानी रानी चेन्नाभैरदेवी द्वारा बनवाया गया था। रानी चेन्नाभैरदेवी ने यहां 54 वर्षों तक शासन किया था, जो कि किसी भी भारतीय महिला शासक द्वारा सबसे लंबा शासन था। अघनाशिनी नदी के तट पर स्थित मिरजन किला, अपनी खूबसूरत स्थापत्य के लिए जाना जाता है, जो 16वीं और 17वीं शताब्दी में लड़ी गई कई लड़ाइयों का स्थान रहा था। रानी चेन्नाभैरदेवी का राज्य काली मिर्च के लिए जाना जाता था, और पुर्तगालियों ने उन्हें ‘रानी, द पेपर क्वीन’ की उपाधि भी दी थी। आप गोकर्ण के मंदिर शहर के पास स्थित मिरजान किले की यात्रा कर सकते हैं, यहां आकर आपको रानी चेन्नाभैरदेवी द्वारा किए गए कामों को देखने का अवसर प्राप्त होगा।
1984 में बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थीं। उन्होंने 1993, 1994 और 1997 में भारत-नेपाली महिला माउंट एवरेस्ट अभियान, द ग्रेट इंडियन विमेन राफ्टिंग वॉयेज और प्रथम भारतीय महिला ट्रांस-हिमालयन अभियान में महिलाओं की एक टीम के साथ इन प्रोग्राम में भाग लिया था। पाल उत्तरकाशी जिले के नकुरी गाँव की निवासी थी, जो उत्तराखंड में पवित्र नदी भागीरथी के बगल में स्थित एक पवित्र शहर के रूप में जाना जाता है। आप भी उत्तरकाशी यात्रा के दौरान इस गांव में घूमने के लिए जा सकते हैं।
अंतरिक्ष में जाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला कल्पना चावला अपनी मृत्यु के इतने सालों के बाद भी आज भी कई भारतीयों के लिए एक गौरव हैं। उनका जन्म करनाल (हरियाणा) में हुआ था। आप करनाल आएँगे, तो आपको यहां उनके नाम के कई संस्थान देखने को मिल जाएंगे। आप ज्योतिसर, कुरुक्षेत्र में स्थित कल्पना चावला तारामंडल में भी घूमने जा सकते हैं। 45 किमी. करनाल से. विशाल हरे-भरे खेतों से घिरा, तारामंडल उन लोगों के लिए एक परफेक्ट जगह है, जो शहर के शोर शराबे से बचना चाहते हैं। तारामंडल बेहद शांत जगह है, जहां पर्यटकों को खगोल विज्ञान शो का मिश्रण पेश किया जाता है।
मैंगते चुंगनेइजंग मैरी कॉम, जिन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बनी हुई हैं। मैरी कॉम आठ विश्व चैम्पियनशिप पदक जीतने वाले एकमात्र महिला हैं। मैरी कॉम 46.7 किमी की दूरी पर स्थित मणिपुर के एक छोटे से गांव कांगथी में रहती हैं। मणिपुर घूमने के लिए आएं, तो आप कंगाथी आ सकते हैं, जहां की खेत और गलियों से आपको प्यार हो जाएगा।
1860 में जन्मी, चंद्रमुखी बसु देहरादून की रहने वाली वो पहली महिला थी जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान गेजुएट किया था। उन्होंने 1880 में देहरादून नेटिव क्रिश्चियन स्कूल से आर्ट परीक्षा पास की और और 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ आर्ट्स पास करने वाली पहली महिला भी बनीं। चंद्रमुखी ने बेथ्यून कॉलेज में एक लेक्चरर के रूप में अपना करियर शुरू किया, वह प्रिंसिपल बनी, इस प्रकार दक्षिण एशिया में स्नातक अंडर ग्रेजुएट पहली महिला प्रमुख बन गईं। 1891 में रिटायर हुई और अपना बचा जीवन देहरादून में बिताया