मुस्लिम और दलित फैक्टर की उत्तर प्रदेश चुनाव में क्या है भूमिका,आइये जानिये

हर पार्टी का अपना कोर वोट बैंक है, जो अपनी पार्टी के अलावा दूसरी पार्टी को वोट नहीं देते। उत्तर प्रदेश के चुनाव में यही वोट बैंक हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, 2014 के बाद से भारतीय जनता पार्टी यहां की क्षेत्रीय पार्टी जैसे समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल आदि के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही है। 2022 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्या बीजेपी अपनी इस कामयाबी को बरकरार रख पाएगी, यह देखने वाली बात है।
जब बात प्रदेश में धार्मिक और जातीय समीकरण की हो तो मुस्लिम दलित फैक्टर को नकारा नहीं जा सकता। सरकार बनाने या बिगाड़ने में इस वर्ग की अहम भूमिका होती है। राज्य में मुस्लिम वोटरों की संख्या तकरीबन 19-20 फीसदी के आसपास है। वहीं दलित वोटरों की संख्या 20-21 फीसदी है। यह दोनों वर्ग किस तरह से उत्तर प्रदेश के चुनाव को प्रभावित करते हैं,
देश के विकास में सबका विकास होना बहुत ही जरूरी है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व करने वालों की संख्या कितनी है, यह चर्चा का विषय जरूर है। मुस्लिमों को वोट बैंक मानकर और उनके अंदर खौफ पैदा करके वोट हासिल करना यहां सालों से चला आ रहा है, लेकिन उनका वास्तविक विकास कैसे किया जाए इस पर कोई भी पार्टी गंभीर दिखाई नहीं देती। वैसे यहां मुस्लिम वोट में महिलाओं का वोट भी काफी मायने रखता है और भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम महिलाओं से काफी उम्मीद भी है। उधर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिमों के लिए खुद को भविष्य का विकल्प मान रहे हैं और अपनी बातों से मुस्लिमों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में विकास हो या न हो यहां जातीय समीकरण हमेशा हावी होते हैं। यहां अलग-अलग नेता अपने-अपने जाति का प्रतिनिधित्व करते हुए मिल जाएंगे। लेकिन क्या मुस्लिमों की तरह इन दलितों को भी डाराया या बांटा जा रहा है और विकास से दूर रखा जा रहा है। क्योंकि जातीय बिसात बिछाकर सत्ता का रास्ता तैयार करने वाले बहुत मिल जाएंगे, लेकिन इन दलितों के असली विकास के बारे में बहुत ही कम लोग बात करते हैं। आने वाले 10 मार्च को यह देखने वाली बात है कि जनता ने सालों से जाति के आधार वोट मांगने वालों को इस चुनाव में वोट दिया है या उनके लिए विकास और रोजगार मुद्दा अहम है।