पहले चरण के दौरान सरकार और विपक्ष में नहीं खिंची तलवारें, संसद रहा खामोश

बजट सत्र का पहला चरण चाहे छोटा रहा हो मगर अहम यह है कि लंबे अर्से बाद संसद का कोई सत्र शोर-गुल और हंगामे की छाया से मुक्त रहा। राजनीतिक टकराव के मुद्दे को हवा देने से विपक्ष ने जहां परहेज किया, वहीं सरकार ने भी खुद को संवैधानिक अनिवार्यता से जुड़े कामकाज तक सीमित रखा। पांच राज्यों के चुनाव अभियान के चरम पर होने के बावजूद संसद सत्र में राजनीतिक टकराव और घमासान नहीं होना विधायिका की प्रतिष्ठा में इजाफा जरूर कर गया। हंगामा मुक्त रहने के चलते ही दोनों सदनों की बैठकें तय समय से अधिक वक्त तक चलीं।
राज्यसभा में बजट सत्र के पहले चरण का समापन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आम बजट की चर्चा का जवाब देने के बाद हुआ। लोकसभा में ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़े सांसदों के सवाल के परिप्रेक्ष्य में हुई अल्पकालिक चर्चा के साथ सदन बजट सत्रावकाश के लिए स्थगित हो गया। दिलचस्प यह है कि 31 जनवरी को शुरू हुए बजट सत्र के पहले चरण में संसद के दोनों सदनों में कोई भी विधेयक पारित नहीं हुआ। दरअसल, सरकार और विपक्ष के बीच सदन चलाने का सामंजस्य इसी वजह से हुआ कि सत्ता पक्ष ने विधेयकों को आनन-फानन में पेश कर पारित कराने की जल्दबाजी नहीं दिखाई।
वहीं विपक्ष ने भी सरकार को घेरने और टकराव बढ़ाने वाले पेगासस जासूसी कांड, संघीय ढांचे पर प्रहार, केंद्रीय जांच एजेंसियों के राजनीतिक इस्तेमाल, महंगाई और चीन की आक्रामकता जैसे मुद्दों पर संसद में संग्राम करने की जल्दबाजी से परहेज किया। हालांकि, 14 मार्च से आठ अप्रैल तक होने वाले बजट सत्र के दूसरे चरण में विपक्ष इन मुद्दों पर बहस के लिए कमर जरूर कसेगा।
बजट सत्र के पहले चरण में सदन की केवल 10 बैठकें थीं और यह तीन संवैधानिक अनिवार्यता को ही पूरा करने में बीत गया। पहले दिन राष्ट्रपति का संयुक्त सत्र में अभिभाषण हुआ और फिर दोनों सदनों में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किए गए। दूसरे दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आम बजट पेश किया। इसके बाद तीन दिन राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा हुई और प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में इसका जवाब दिया। आम बजट पर भी दोनों सदनों में लंबी चर्चा हुई जिसका वित्त मंत्री ने गुरुवार को लोकसभा में तो शुक्रवार को राज्यसभा में उत्तर दिया और दूसरे विषयों को उठाने के लिए सत्र में गुंजाइश भी नहीं थी।
संसद सत्र के बाधा मुक्त रहने पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि कोरोना की चुनौतियों के बावजूद सांसदों ने अपने संवैधानिक दायित्व को बखूबी निभाया, जिसकी वजह से सदन के कामकाज की उत्पादकता 121 प्रतिशत रही। राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर 12 घंटे के तय समय के मुकाबले 15 घंटे 13 मिनट चर्चा हुई, जिसमें 60 सांसदों ने हिस्सा लिया। आम बजट पर भी 12 घंटे के स्थान पर 15 घंटे 33 मिनट की चर्चा हुई और 81 सांसद इस पर बोले

स्पीकर ने कहा कि सदन चलाने में सभी पक्षों का सहयोग रहा और यह परंपरा हमारे लोकतंत्र को सशक्त और संसदीय प्रणाली को मजबूत बनाती है। साथ ही इससे नागरिकों का लोकतांत्रिक संस्थाओं में भरोसा और विश्वास बढ़ता है। राज्यसभा में भी निर्धारित समय के मुकाबले आधा घंटे ज्यादा काम हुआ। उपसभापति हरिवंश ने भी सभापति की ओर से पहले चरण के हंगामा मुक्त रहने पर खुशी जाहिर की
भाजपा को वोट न देने की स्थिति में राज्य के बंगाल, कश्मीर या केरल बनने के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान को लेकर संसद भी गर्म हो गया। शुक्रवार को लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस समेत कुछ अन्य विपक्षी सदस्यों ने आपत्ति जताई। शोर-शराबे और नारेबाजी के बाद विरोधस्वरूप विपक्षी दलों ने वाकआउट किया।
गौरतलब है कि योगी ने एक वीडियो संदेश में आगाह किया था कि भाजपा वापस सरकार में नहीं आती है तो पांच साल का प्रयास धुल जाएगा। प्रदेश को केरल, बंगाल और कश्मीर बनते देर नहीं लगेगी। शुक्रवार को इसके खिलाफ केरल के सदस्यों ने कार्यस्थगन प्रस्ताव दिया था। लोकसभा अध्यक्ष ने उसे खारिज कर दिया और कहा कि शून्यकाल में सदस्य यह विषय उठा सकते हैं। लेकिन उत्तेजित सदस्य आसन तक पहुंच गए और नारे लगाने लगे। बंगाल से आने वाले कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी बयान का विरोध किया। बजट सत्र के पहले काल में यह पहला मौका था, जब प्रश्न काल के दौरान कुछ देर शोर शराबा रहा।