उत्तर प्रदेश सरकार में लगातार गिर रहे बड़े नेताओं के विकेट से एक बार फिर से केशव प्रसाद मौर्या पर जाने-अनजाने बड़ा दबाव पड़ने लगा है। दरअसल यह दबाव कुछ और नहीं बल्कि उन पर पिछड़ों को एक बार फिर से अपने साथ लाने का दबाव है। क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनावों में भी केशव प्रसाद मौर्य को चेहरा बनाकर भाजपा ने न सिर्फ पिछड़ों को जोड़ा था, बल्कि सरकार भी बनाई थी। भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आलाकमान की ओर से केशव प्रसाद मौर्या को एक बार फिर से उसी भूमिका में आने के लिए इशारा कर दिया गया है।
भाजपा के दो मंत्री और कुछ अन्य विधायकों के जाने से पार्टी की पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों के बीच बड़ी दूरी न आ जाए इसलिए पार्टी डैमेज कंट्रोल में लग गई है। पार्टी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक डैमेज कंट्रोल के लिए एक बार आलाकमान ने फिर से पार्टी में बड़े पिछड़े चेहरे केशव प्रसाद मौर्य को आगे कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि केशव प्रसाद मौर्या को 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस भूमिका में रखा गया था, कमोबेश उसी भूमिका में एक बार फिर से पिछड़ों के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर सामने रखा जाएगा। जिससे इस वर्ग में एक बार फिर से वही विश्वास बने और सत्ता में मजबूती से वापसी हो सके।
उत्तर प्रदेश में भाजपा की रणनीति बनाने वाले केंद्रीय नेतृत्व के एक बड़े नेता बताते हैं कि वैसे तो जो नेता पार्टी छोड़ कर गए हैं उनका भाजपा की 2017 में सरकार बनाने में कोई योगदान नहीं था। क्योंकि वह खुद दूसरी पार्टी से आए थे। इसलिए वह सिर्फ चुनाव लड़े और जीत गए। उक्त नेता का कहना है कि उनकी पार्टी को खड़ा करने में हमेशा से पिछड़े, अति पिछड़े, दलित और अन्य समुदाय का बराबर से योगदान रहा है। भाजपा उनका लगातार ध्यान रखती आई है। वह कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्या उनकी पार्टी में बड़े चेहरे हैं। और वह इस बार भी अपना दायित्व उसी तरह निभाएंगे जैसा 2017 में निभाया था। हालांकि पिछले विधानसभा के चुनाव केशव प्रसाद मौर्या की अध्यक्षता में हुए थे, लेकिन इस बार उनकी अध्यक्षता तो नहीं होगी लेकिन उनको पार्टी एक बड़ा चेहरा बनाकर प्रोजेक्ट करेगी।
साभार : अमर उजाला
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