उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हो गया है। दरअसल यह एक पुराना मामला है, जिसमें सुल्तानपुर के एमपी-एमलए कोर्ट ने 24 जनवरी को उन्हें पेश होने का आदेश देते हुए वारंट जारी किया है।
बता दें कि साल 2014 में स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा महासचिव और नेता प्रतिपक्ष थे, उस दौरान मौर्य ने देवी-देवताओं को लेकर विवादित बयान दिया था। इसको लेकर मौर्य के खिलाफ पर सात साल पहले धार्मिक भावना भड़काने (hate speech) का मुकदमा दर्ज किया गया था। इसी मामले में पेश न होने पर बुधवार को एमपी-एमएलए कोर्ट उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने का आदेश दिया।
बता दें कि यह कोई नया मामला नहीं है। दरअसल यह वारंट पहले जारी किया गया था, लेकिन तब स्वामी प्रसाद मौर्य ने हाईकोर्ट से इस पर स्टे करा लिया था। बीती 6 जनवरी को इसी मामले में कोर्ट ने उन्हें 12 जनवरी को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया था। लेकिन वह जब बुधवार को हाजिर नहीं हुए तो गिरफ्तारी वारंट को पहले की तरह जारी रखा गया है।
कभी बसपा प्रमुख मायावती के करीबी और पार्टी के मुखर चेहरे मौर्य को 1997, 2002 और 2007 में न केवल हर बसपा सरकार में मंत्री बनाया गया था, बल्कि हर बार बसपा के सत्ता से बाहर होने पर विपक्ष के नेता भी थे। यहां तक कि उन्हें बसपा का राष्ट्रीय महासचिव भी बना दिया गया, जिससे वे प्रभावी रूप से पार्टी पदानुक्रम में मायावती के लिए नंबर 2 बन गए।
2016 में, जब वह विपक्ष के नेता थे, मौर्य ने पार्टी के टिकटों की नीलामी का आरोप लगाते हुए, बसपा छोड़ दिया, मायावती ने एक आरोप का खंडन किया, जिसने आरोप लगाया कि मौर्य ने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उनके बेटे उत्क्रिस्त और बेटी संघमित्रा को टिकट नहीं मिला। जिन सीटों के लिए उन्होंने कथित तौर पर पैरवी की थी।