तिब्बत की निर्वासित संसद की ओर से आयोजित रिसेप्शन में भाग लेने वाले भारतीय सांसदों को चीनी दूतावास द्वारा पत्र लिखे जाने पर कड़ी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई है। एक प्रमुख सांसद ने दूतावास की आलोचना करते हुए कहा है कि वह एक ऐसे मामले में टिप्पणी कर रहा है, जिससे उसका कोई सरोकार नहीं है। पिछले सप्ताह दिल्ली में आयोजित रिसेप्शन में विभिन्न राजनीतिक दलों के कम-से-कम छह सांसदों ने भाग लिया था।
‘तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच’ के कुछ सदस्यों को लिखे पत्र में चीनी दूतावास ने उनके कार्यक्रम में भाग लेने पर चिंता व्यक्त की और तिब्बत से जुड़ी शक्तियों को किसी तरह का समर्थन देने से दूर रहने को कहा। इस पर मंच के संयोजक सुजीत कुमार ने कहा कि चीनी दूतावास को भारतीय सांसदों को पत्र लिखने का कोई अधिकार नहीं है। इस मुद्दे पर भारत सरकार की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
चीनी दूतावास ने यह पत्र ऐसे समय में लिखा है, जब पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद के चलते दोनों देशों के संबंधों में गतिरोध है। बीजद सांसद कुमार ने कहा कि यदि दूतावास को कोई समस्या है तो उसे विदेश मंत्रालय को पत्र लिखना चाहिए। उसने प्रोटोकाल का उल्लंघन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रम का कोई राजनीतिक सरोकार नहीं था और इसका मकसद सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों को बढ़ावा देना था।
मंच के एक अन्य सदस्य और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि न तो मुझे कोई पत्र मिला है और न ही मैं इस तरह की बातों का जवाब देकर अपना महत्व घटाऊंगा। यदि (चीनी विदेश मंत्री) वांग ई ने पत्र लिखा होता तो मैं संभवत: जवाब देने के बारे में सोचता।
अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नाम बदलने के मामले में चीन ने फिर दादागीरी दिखाई है और इस पर अपना दावा किया है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने शुक्रवार को कहा कि तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। यह चीन का अंदरूनी क्षेत्र रहा है।
बीजद सांसद सुजीत कुमार ने चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नाम बदलने के मामले में कहा कि चीन दबंगई कर रहा है और दबंग सिर्फ ताकत की भाषा समझते हैं। विदेश मंत्रालय को चाहिए कि वह तिब्बत को मानचित्रों में एक स्वतंत्र देश के रूप में दिखाए और स्थानों का तिब्बती नाम रखे।
सुजीत कुमार ने कहा कि चीन कौन है जो हमें बताए कि क्या करना है और क्या नहीं करना है? चीन की हिम्मत कैसे हुई कि वह भारतीय सांसदों को पत्र लिखे? इस मसले पर भारत सरकार को कड़ा रुख अपनाना चाहिए। सुजीत कुमार ने यह भी बताया कि 22 दिसंबर को तिब्बत के मसले पर भारतीय संसदीय मंच की एक बैठक हुई थी। इसमें तिब्बत और भारत के बीच संबंधों पर चर्चा करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के 12-13 सांसद शामिल थे।