प्रयागराज: भारतीय संविधान के निर्माता ,महान समाज सुधारक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पुण्य तिथि पर किया गया याद


महान समाज दुधारक भारत रत्न भारतीय संबिधान निर्माता एवम समाज सुधारक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी के पुण्य तिथि पर अम्बेडकर युग पार्टी के सभी पदाधिकारी व कार्य कर्ताओं की तरफ माल्यार्पण कर बिनम्र श्रधांजली करते हुए अम्बेडकर युग पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उमाशंकर कुशवाहा ने कहा कि
डॉ. अंबेडकर का राजनीतिक चिंतन भी जाति व्यवस्था से उत्पन्न परिस्थितियों से प्रभावित हुआ था। वह 1920 के दशक से ही दलितों के लिए पृथक मतदान की मांग करने लगे थे। इसके पीछे उनका तर्क था कि ऐसा होने से जाति व्यवस्था के विरोध तथा दलितों के हित में काम करने वाले ही चुनकर विधानसभा तथा लोकसभा में पहुंच सकेंगे अन्यथा दलित स्थापित पार्टियों के दलाल बनकर रह जाएंगे। गांधीजी के प्रबल विरोध और आमरण अनशन के कारण पृथक मतदान की मांग वापस ले ली गई, जिसके बदले मौजूदा आरक्षण व्यवस्था लागू हुई। यह व्यवस्था पूना पैक्ट के नाम से जानी जाती है। पूना पैक्ट का सबसे अधिक प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र में पड़ा। लाखों की संख्या में दलित शिक्षित होकर हर श्रेणी की नौकरियों में शामिल हुए और उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा बदल दी। लेकिन आरक्षण नीति सही ढंग से लागू न होने के कारण दलित समाज का नुकसान भी हुआ है। डॉ. अंबेडकर की आशंका सही सिद्ध हुई। विधानसभा तथा लोकसभा में चुने हुए प्रतिनिधि दलित मुक्ति के सवाल पर नकारात्मक भूमिका में आ गए।

सालों-साल चलती रही इसी भूमिका के कारण काशीराम की बहुजन समाज पार्टी का 1984 में उदय हुआ। काशीराम ने वर्तमान जनतांत्रिक प्रणाली में दलितों की भूमिका को ‘चमचा युग’ बताया। इसलिए उन्होंने बसपा का जो वैचारिक आधार खड़ा किया वह डॉ. अंबेडकर की आरंभिक राजनीतिक समझ यानी 1920 तथा 30 के दशक के विचारों पर आधारित है। यही कारण है कि उनके क्रियाकलाप में राजनीतिक तीखापान अधिक झलकता है। डॉ. अंबेडकर 1920 तथा 30 के दशक में जाति व्यवस्था के विरुद्ध उग्र रूप धारण किए हुए थे। बाद में उन्होंने सत्ता में भागीदारी के माध्यम से दलित मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश की। काशीराम ने ‘सत्ता में भागीदारी’ को ‘सत्ता पर कब्जा’ में बदल दिया। इस उद्देश्य से उन्होंने नारा दिया ‘अपनी-अपनी जातियों को मजबूत करो।’ इस नारे के तहत सर्वप्रथम बसपा ने विभिन्न दलित जातियों का सम्मेलन करके उन्हें अपनी तरफ आकर्षित किया। साथ ही उसने पिछड़ी जातियों को अपनी तरफ लाने की कोशिश की जिसका परिणाम था बसपा का 1993 में समाजवादी पार्टी से समझौता। दो साल बाद इस गठबंधन के टूट जाने के बाद बसपा का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ बढ़ा तथा उसके सहयोग से मायावती तीन बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। किंतु 2007 में उत्तर प्रदेश के पिछले आम चुनाव में मायावती के नेतृत्व में बसपा ने दलित-ब्राह्मण एकता के नारे के साथ बहुमत हासिल कर लिया। यह बहुमत प्रचड जातीय धु्रवीकरण के आधार पर मिला था। वैसे भी भारतीय चुनाव प्रणाली में हमेशा जातीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक धु्रवीकरण आम प्रक्रिया का हिस्सा रही है। किंतु मंडल कमीशन के लागू होने के बाद जातीय धु्रवीकरण बेहद उग्र रूप में जनता के समक्ष आया है। उत्तर प्रदेश में इस धु्रवीकरण से बसपा को सबसे अधिक फायदा पहुंचा है, जिस कारण वह सत्ताधारी पार्टी बन गई।

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
अम्बेडकर युग पार्टी
उमाशंकर कुशवाहा (पंडित) 7571974858