तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में लोगों से पैसा ले रहे हैं, हालांकि स्थानीय लोग उसे ‘टैक्स और चंदे’ के बजाय ‘भत्ते’ का नाम दे रहे हैं. तालिबान पर आरोप लग रहा है कि लोगों को अपने इलाक़ों में रहने और यात्रा करने के लिए तालिबान को पैसे देना होता है.
यह भी दावा किया जा रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में लोग परिवार की विधवाओं को तालिबान से बचाने के लिए घर छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के जोज़ान प्रांत में इसी तरह की स्थितियों का सामना कर रहे लोगों के साथ की गई बातचीत को इस लेख में शामिल किया गया है.
शबनम (बदल हुआ नाम) ने हाल ही में मज़ार-ए-शरीफ़ से जोज़ान की यात्रा की है. वो कहती हैं,’अब हम अफ़गानी महिलाएं मेहरम के बिना घर से बाहर नहीं निकल सकतीं. इस यात्रा में मेरे साथ एक महिला रिश्तेदार, उनके पति और बेटा थे.
जैसे ही आप मज़ार-ए-शरीफ़ शहर की सीमा से बाहर निकलते हैं, वहां एक सुरक्षा चौकी है जहां अब तालिबान दिखाई देते हैं. वे वाहनों की तलाशी लेते हैं, अंदर मौजूद यात्रियों पर नज़र डालते हैं, पूछताछ करते हैं और फिर सामान की तलाशी लेते हैं.
हालांकि, चौकियों पर तालिबान का एक अधिकारी ऐसा होता है जिसका काम ड्राइवरों से पैसे लेना होता है. उसके साथ एक हथियारबंद व्यक्ति होता है. हाईवे पर तालिबान के लड़ाके मोटरसाइकिलों पर गश्त करते नज़र आते हैं.
जोज़ान के अदख़ोय जिले तक तीन घंटे की यात्रा में, मैंने लगभग 11 चौकियों को पार किया.
मज़ार-ए-शरीफ़ निवासी पेशे से ड्राइवर नादिर (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “तालिबान हर घर से चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और हर कोई उन्हें अपनी हैसियत के हिसाब से पैसे दे रहा है. मैंने भी 100 अफ़ग़ानी रूपये दिए. किसी को इससे ज़्यादा देने पड़े और किसी को खाना देना पड़ा.”
तो क्या वे आपके घर आते हैं?
“उन्होंने इस काम के लिए क्षेत्र के प्रमुख लोगों को रखा है और वे हमारे घरों में आते हैं लेकिन उनके साथ दो तालिबान सदस्य भी होते हैं.”
काबुल और मज़ार-ए-शरीफ़ के अलावा मैं जोज़ान पहले भी कई बार आ चुका हूं. शबरग़ान जेल से गुज़रते हुए मैंने देखा कि वहां का मुख्य द्वार खुला था और तालिबान वहां भी पहरा दे रहे थे.
हाईवे की सभी चौकियां लड़ाई से प्रभावित थीं, और अब उनकी छतों पर तालिबान के झंडे लहरा रहे थे.
शबनम बताती हैं कि ‘जब मैं अदख़ोय में दाख़िल हुई, तो सब कुछ पूरी तरह से बदला हुआ दिखाई दिया. ऐसा लगा जैसे यह कोई उजाड़ शहर है. सारी दुकानें बंद थी और एक डर जैसा माहौल था.’
‘मुझे बताया गया कि तालिबान के आदेश के मुताबिक़ शाम को 5 बजते ही दुकानें बंद कर दी जाती हैं. जब हम अंदर दाख़िल हुए तो चार बज चुके थे. सूरज डूबने के बाद वहां कर्फ़्यू लग जाता है.’
पर्दा करने की नसीहत
गाड़ियों में संगीत पर पाबंदी और महिलाओं को पर्दा करने के निर्देश देने के अलावा, स्मार्टफ़ोन के इस्तेमाल से बचने के लिए कहा जाता है.
शबनम कहती है, “यहां मैं अपनी मौसी के पास ठहरी, जिन्होंने मुझे बताया कि इस बार जब तालिबान उनके इलाक़े में आए तो लड़ाई हुई थी. यहां की स्थिति काबुल और मज़ार-ए-शरीफ़ या अन्य प्रमुख शहरों से अलग थी.”
उनकी मौसी ने बताया कि ‘ऐसा लग रहा था जैसे कि हमारे घर के सामने जंग हो रही थी. बहुत से रिश्तेदार अपने बच्चों को लेकर, शरण लेने के लिए हमारे घर आ गए थे.
“बच्चे बहुत डरे हुए थे. वो तहख़ानों और ऊपर कमरों में डर के मारे घर के एक कोने से दूसरे कोने तक चिल्लाते हुए भाग रहे थे.”
उनकी मौसी ने कहा कि वे युद्ध के भयानक दिन थे. तीन दिन तक ऐसा ही चलता रहा. इस लड़ाई में बहुत सी दुकानों में आग लगी और मार्केट के शीशे टूट कर चकनाचूर हो गये.
उन्होंने बताया कि ‘तालिबान की पिछली सरकार में, तालिबान ने हमारे घर के कोने-कोने की तलाशी ली थी और पुरुषों को गिरफ़्तार कर लिया था. मेरे पास एक सिलाई मशीन थी, जो असल में उनके लिए नई चीज़ थी और वे मुझसे पूछने लगे कि यह क्या है.’
कॉलेज जाने वाली लड़कियां घरों में कैद
उन्होंने बताया कि उस दिन तालिबान ने ‘हमारे बैग और हर चीज़ की तलाशी ली लेकिन कुछ नहीं मिला. वे एक जागीरदार के घर गए और ख़ूब तोड़-फ़ोड़ की. हमारे घर के पुरुषों को 10 दिन के बाद रिहा किया गया. उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया था.’
उन्होंने बताया कि जब लड़ाई ख़त्म हो गई, तो मैंने अपने पति से कहा कि मेरे साथ बाज़ार चलो, मुझे कुछ चीज़ें ख़रीदनी थीं. मेरे पति ने कहा कि जाओ, कुछ नहीं होगा, लेकिन मैंने देखा कि जिन महिलाओं ने मोज़े नहीं पहने थे या खुले जूते पहने हुए थे, तालिबान उनके साथ सख़्ती से पेश आ रहे थे. उसके बाद मैं डर से बाहर नहीं निकली. फिर शबरग़ान में लड़ाई शुरू हुई, तो हमारे घर पर और रिश्तेदार आ गए.
वो बताती हैं कि बड़े शहरों में आने से पहले भी तालिबान दूरदराज़ के गांवों में मौजूद थे.
वह कहने लगी कि अब उनकी उम्र 65 साल हो गई है. ‘जब मैं छोटी थी और स्कूल जाती थी तो यह नीला बुर्का नहीं होता था. हमारी यूनिफ़ॉर्म स्कर्ट थी जो घुटने तक लंबी होती थी, जिसके साथ हम मोज़े पहनते थे. लेकिन फिर तालिबान ने बुर्क़े का आदेश दिया और दिन-ब-दिन उनके आदेश सख़्त होते गए.’
शबनम कहती है कि जैसे-जैसे आप इस इलाक़े में आगे बढ़ते जायेंगे, आपको सामान्य से बहुत कम महिलाएं दिखाई देंगी और स्कूल बंद मिलेंगे, जिनके प्रभारी अब तालिबान हैं.
यहां मुझे बहुत सी युवा लड़कियों से भी मिलने का मौक़ा मिला. कुछ लड़कियां यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित जोज़ान यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष में थी, और अब घरों में क़ैद हो कर रह गईं.
भविष्य की चिंता
स्कूल, कॉलेज जाने वाली लड़कियों में भी निराशा और डर है कि उनकी शिक्षा का क्या होगा और क़ीमती साल बर्बाद होने के बाद, क्या भविष्य में अब कोई रास्ता बचा है, उनके किसी भी सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था.
वहां की महिलाओं का कहना है कि जिन्हें काम पर बुलाया भी गया है उन्हें भी वेतन नहीं दिया जा रहा है.
तालिबान ने स्कूल यूनिफ़ॉर्म को ग्रे से ब्लैक कर दिया है, लेकिन लड़कियां तो स्कूल बिल्कुल भी नहीं जा पा रही हैं.
मेरी मुलाक़ात यहां मरियम बीबी से हुई, जिनके कंधे और घुटने में आज भी बरसों पहले तालिबान द्वारा उनके घर पर फेंके गए ग्रेनेड के टुकड़े मौजूद हैं. उस दिन उन्होंने अपना एक बेटा भी खो दिया था.
उनके पति एक सिक्योरिटी गार्ड थे और अब उनका बेटा सिक्योरिटी गार्ड है जो तालिबान के डर की वजह से अपने घर पर नहीं रह सकता है.
जोज़ान के कई परिवारों ने मुझे बताया कि तालिबान ने उनसे न सिर्फ़ खाना बल्कि पैसे भी लिए हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि अब बिजली के बिल दोगुने आ रहे हैं और लोड शेडिंग भी बहुत हो रही है.
मुझे बताया गया कि तालिबान ने अलग-अलग लोगों से अलग-अलग रक़म ली है, जैसे शिक्षकों से एक हज़ार अफ़ग़ानी रूपये और अगर कोई व्यापारी है तो उससे 5 हज़ार अफ़ग़ानी रूपये लिए हैं.
मदद के लिए तरसते लोग
मरियम बीबी की बहू एक स्कूल टीचर हैं. मरियम ने बताया कि उनकी बहू ने भी तालिबान को एक हज़ार अफ़ग़ानी रूपये दिए थे, लेकिन उन्होंने कहा कि यह जो कहा जा रहा है कि लड़कियां छठी कक्षा तक पढ़ सकती हैं. कम से कम यहां तो ऐसा नहीं हो रहा है.
इस क्षेत्र में लड़कियों को स्कूल जाने की इजाज़त नहीं है. उन्होंने कहा कि वह तालिबान के पहले के दौर को भूल गए थे, लेकिन अब बहुत मुश्किल हालात हैं. उनके मुताबिक़ इस इलाक़े में पहले भी हालात ख़राब थे और यह बेहद असुरक्षित इलाक़ा था. उन्होंने बताया कि तालिबान ने कई घरों में लूट-पाट भी की है.
मरियम बीबी ने कहा कि कोई महिला मजबूरी में भी रिक्शे में अकेली यात्रा नहीं कर सकती है. उनके अनुसार, दो महिलाओं और रिक्शा चालक को इस वजह से मार पड़ी, क्योंकि रिक्शा चालक रिक्शे में सवार महिलाओं का मेहरम नहीं था.
जोज़ान प्रांत के अदख़ोय जिले में लोगों की परेशानी की एक वजह सूखे के कारण खेती का न होना भी है. तालिबान के आने से पहले यहां के लोगों को अंतरराष्ट्रीय संगठनों से मदद के तौर पर आटा तो मिल जाता था, लेकिन इस बार वो भी नहीं मिला. अब लोग कहते हैं कि कौन उनकी मदद करेगा.
यहां के ग़रीब किसानों को भी तालिबान को टैक्स देना पड़ता है. सभी व्यापारिक केंद्रों पर तालिबान के प्रतिनिधि खड़े रहते हैं और मज़ार-काबुल हाईवे और हेरात-काबुल हाईवे पर आपको ऐसे ही प्रतिनिधि देखने को मिल जाएंगे. यहां उनके अलग-अलग सामान के लिए अलग-अलग रेट हैं. इसके अलावा, व्यापारियों और धनी दुकानदारों को तालिबान को भत्ता देना पड़ता है.
पैसे वसूलने का नया तरीका
अब तालिबान ने वहां भत्ता वसूल करने का नया तरीक़ा निकाला है. इसमें वो यहां के परिवारों से पैसे इकट्ठा करते हैं या अपने लड़ाकों के लिए खाना लेते हैं.
इदरीस (बदला हुआ नाम) ने मुझे बताया कि यहां तालिबान ने सभी शादीशुदा लोगों से खाना लेने के अलावा 150 अफ़ग़ानी रूपये लिए हैं. उनके मुताबिक़ तालिबान ने कहा है कि वे मदरसा बनाना चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि ख़माब के 18 गांवों में पहले से ही 30 मदरसे हैं, लेकिन तालिबान फिर भी और मदरसे बनाने की घोषणा कर रहे हैं. इदरीस कहते हैं, ‘वे युवाओं को तालिबान बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि तालिबान में शामिल होने वाले युवा लड़कों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है.
एक अन्य व्यक्ति ने मुझे बताया कि ऐसा भी हुआ है कि जो लोग सेना में थे, तालिबान ने उन लोगों से पैसे भी लिए, उनके हथियार भी ले लिए और उन्हें जेलों में भी बंद कर दिया.
इदरीस ने कहा कि ऐसी भी ख़बरें हैं कि उनके जिले में तालिबान का प्रतिनिधित्व कर रहे मुल्ला माजिद ने एक स्थानीय व्यक्ति की विधवा से शादी की है.
जोज़ान प्रांत के आक्चा ज़िले में भी ऐसे ही हालात की ख़बरें सुनने को मिली हैं. मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि तालिबान ने वहां दो विधवाओं से शादी करने के लिए कहा, लेकिन उनके बच्चे थे और वे शादी नहीं करना चाहती थी, इसलिए वे अपने परिवार सहित वहां से फ़रार हो गई.इदरीस के माता-पिता जोज़ान में रह रहे हैं.
वो कहते हैं, ‘मेरे घर में भी एक भाभी विधवा है. हमें हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि उनका क्या होगा. हमारे बुज़ुर्ग माता-पिता अपना इलाक़ा नहीं छोड़ना चाहते हैं और न ही हम अर्थिक तौर पर किसी दूसरे इलाक़े में रहना बर्दाश्त कर सकते हैं.’
इदरीस कहते हैं, कि ‘यहां आपको ऐसे युवा भी मिलेंगे, जिनकी नौकरी चली गई है. वे तालिबान की हिंसा को बर्दाश्त नहीं करना चाहते और किसी भी क़ीमत पर बिना पासपोर्ट के देश छोड़ना चाहते हैं.
ऐसे लोग भी मिलेंगे जो अभी भी अपने दिल में यह इच्छा रखते हैं कि आसपास के सभी लोग उनके साथ मिल जाये और तालिबान के ख़िलाफ़ उठ खड़े हों, लेकिन तालिबान का डर उन्हें ऐसा करने से रोकता है.
जोज़ान के करकान जिले में भी तालिबान टैक्स वसूल कर रहे हैं. वहां वो 140 किलो गेहूं में से सात किलो गेहूं वसूल करते हैं. पहले ये होता था कि यह दान के तौर पर ग़रीबों या स्थानीय मस्जिद को दिया जाता था, लेकिन अब इसे तालिबान ख़ुद ले रहे हैं और नहीं देने पर किसानों को धमकाते हैं.
जोज़ान की यात्रा के बाद शबनम ने फ़ोन पर फूट फूट कर रोते हुए मुझसे कहा, कि वह वहां की महिलाओं और पुरुषों के चेहरे पर फ़ैली उदासी और निराशा को शायद शब्दों में बयां नहीं कर सकती, लेकिन उन्होंने वहां जो देखा और महसूस किया उसका दर्द उनके दिल में हमेशा रहेगा.
तालिबान का पक्ष
बीबीसी ने तालिबान द्वारा लिए जाने वाले टैक्स और अनाज के बारे में जानने के लिए तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद को सवाल भेजे और पूछा कि क्या ये आरोप सही हैं और यह भी कि अब जबकि तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान पर कंट्रोल है, तो आर्थिक और वित्तीय स्थिति से कैसे निपटा जा रहा है?
हमें तालिबान के कार्यालय से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान के एक प्रांत में टैक्स कलेक्टर की ड्यूटी निभाने वाले तालिबान के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर इस बारे में हमें कुछ डिटेल दी है.
उन्होंने बीबीसी के मलिक मुदस्सिर से कहा कि दो तरह के टैक्स लिए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, “व्यापारी सीमावर्ती इलाक़ों से आने वाली चीज़ों पर टैक्स देते हैं. इसके भुगतान करने पर व्यापारियों को रसीद दी जाती है और यह हमारे डेटाबेस में जाती है. हर चीज़ की एक क़ीमत होती है, जैसे आटा और खाना बनाने के तेल पर अलग-अलग टैक्स लगता है.”
तालिबान के टैक्स कलेक्टर ने कहा कि जो उपकर वसूल किया जा रहा है, उसे वह ग़रीबों को दे रहे हैं.
उन्होंने कहा कि किसान उन्हें आधा ही उपकर देते हैं. (उस क्षेत्र की प्रथा के अनुसार ये किसी वस्तु के दसवां हिस्सा या उसकी क़ीमत का दसवां भाग होता है) उन्होंने कहा कि अभी वही पुराना सिस्टम चल रहा है.
उन्होंने बताया कि ‘हमें अभी तक कोई नया सिस्टम नहीं मिला है. हम पुराने सिस्टम के तहत ही लोगों से टैक्स वसूल कर रहे हैं.’
तालिबान के टैक्स कलेक्टर का कहना था कि हमारी सरकार पूरे अफ़ग़ानिस्तान में एक ही है. जब इस्लामिक अमीरात के अमीर का आदेश आता है, तो यह सभी के लिए होता है और हर कोई इसका पालन करता है. हमारा पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण है.
उन्होंने बताया कि अर्थव्यवस्था संकट में है, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिबंध लगाया है.
‘अफ़ग़ानों ने बहुत पैसा कमाया लेकिन अब हम उन्हें पैसा नहीं दे पा रहे हैं. हमारे सामने यह एक बड़ी समस्या है.’
जब हमने उनसे पूछा कि बाहर के कौन से देश मदद कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा, कि ‘हमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद मिल रही है. पाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और अन्य देशों से हमें मदद मिल रही है.’
‘हमने वह मदद इकट्ठी कर ली है और इसे आपदा प्रबंधन एजेंसी और शरणार्थी विभाग को दे दिया है. इसके अलावा हमने स्वास्थ्य मंत्रालय को दवाएं दी हैं. आटा और खाना पकाने का तेल विभिन्न क्षेत्रों में ग़रीबों को वितरित किया गया है.
तालिबान के ग़रीबों की मदद करने के दावे अपनी जगह, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान से ऐसे दृश्य भी सामने आ रहे हैं जहां दो वक़्त की रोटी के लिए लोग अपने घर का सामान बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं.