जिग्नेश मेवानी को कांग्रेस के साथ जाने की जरूरत क्यों पड़ी?

जिग्नेश मेवानी, गुजरात के वडगाम के निर्दलीय विधायक, दलित एक्टीविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता. अब तक लोग जिग्नेश को इसी पहचान के साथ जानते थे. लेकिन अब जिग्नेश मेवानी कांग्रेस के साथ जुड़े हैं और एक दलित नेता के तौर पर खुद को स्थापित भी कर रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि आखिर जिग्नेश को कांग्रेस के साथ जाने की जरूरत क्यों पड़ी?

दरअसल, माना जा रहा है कि जिग्नेश मेवानी अब तक एकला चलो की राजनीति के आधार पर कांग्रेस से अलग राजनीति कर रहे थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित मूवमेंट और पाटीदार आंदोलन के असर ने निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद जिग्नेश मेवानी को जीत दिलाई, जिसकी एक प्रमुख वजह ये भी थी कि कांग्रेस ने जिग्नेश मेवानी के सामने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था. जिग्नेश मेवानी के लिए ये कहा जाता है कि वो कांग्रेस को सपोर्ट तो करते थे, लेकिन पूरी तरह कांग्रेस के समर्थन में नहीं थे. आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिग्नेश मेवानी ने कांग्रेस का हाथ थामा.

इसी पर जिग्नेश मेवानी का कहना है कि जिस विचारधारा के साथ वो जुड़े हैं उस विचारधारा में अगर आगे कुछ करना है, दलितों के हक के लिए बात करनी है, और जिस असंप्रदायिक राजनीति को वो करना चाहते है, वो सिर्फ कांग्रेस कर रही है.
लेकिन सवाल यहां ये भी खड़ा होता है कि जिग्नेश मेवानी खुद के राजनैतिक अस्तित्व को भी बचाए रखना चाहते हैं. गुजरात में जिस तरह से राजनीति हो रही है ऐसे में इस बार ये साफ था कि कांग्रेस गुजरात में जिग्नेश मेवानी के सामने अपना प्रत्याशी जरूर खड़ा करती. अगर वडगाम सीट पर जिग्नेश के सामने कांग्रेस अपना उम्मीदवार खड़ा करती, तो दलित और मुस्लिम ये दोनों वोट बंट जाते और जिग्नेश मेवानी के चुनाव हारने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती. ऐसे में जिग्नेश ने कन्हैया के साथ कांग्रेस से जुड़ने का फैसला किया.

माना जा रहा है कि कांग्रेस में जुड़े जिग्नेश मेवानी से कांग्रेस को भी फायदा होगा. कांग्रेस के पास गुजरात में ऐसा एक भी दलित चेहरा नहीं है. ऐसे में जिग्नेश मेवानी के आने से माना जा रहा है कि कांग्रेस उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी गुजरात में सौंप सकती है. जिग्नेश मेवानी पहले ही दलित नेता के तौर पर जाने जाते हैं. ऐसे में कांग्रेस को सोमनाथ, सुरेंद्रनगर, बनासकांठा, पाटण में दलितों के वोट बंटोरने में मदद मिल सकती है.

वहीं, 2022 के चुनाव को लेकर भी गुजरात में राजनीति जोरों पर है. एक ओर बीजेपी ने मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक बदल दिए हैं. दूसरी ओर जिग्नेश मेवानी के आने से कांग्रेस को युवाओं का साथ मिलने की भी उम्मीद है.