अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण पर राज्यों को मिले अधिकारों में फिलहाल कोई कटौती नहीं होगी। केंद्र ने ओबीसी की पहचान करने और सूची बनाने के राज्यों के पहले के अधिकारों को बहाल करने के लिए अब संसद का रास्ता चुना है, जिसकी तैयारी शुरू हो गई है। संसद के मानसून सत्र में इस संबंध में विधेयक लाने की तैयारी है। इससे पहले केंद्र ने एससी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद के जरिये बदला था, जिसमें पुरानी व्यवस्था को बहाल किया गया था।आरक्षण जैसे संवेदनशील मामले में केंद्र सरकार किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को खारिज करने के साथ अपने फैसले में जैसे ही यह कहा कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों को सामाजिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ों की अलग से कोई सूची बनाने का अधिकार नहीं है। इसके बाद तो राज्यों में नया बवाल खड़ा हो गया। सूत्रों की मानें तो सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के बाद नए मंत्री वीरेंद्र कुमार ने भी अधिकारियों के साथ इस पर लंबी मंत्रणा की है। साथ ही अधिकारियों को इस पर आगे बढ़ने के निर्देश दिए हैं। इससे पहले थावरचंद गहलोत ने भी राज्यों के अधिकार बहाली की वकालत की थी।
खास बात यह है कि केंद्र सरकार ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान दिए गए इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी। इसमें राज्यों के ओबीसी की पहचान करने और सूची बनाने के अधिकारों को बहाल करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था।
केंद्र इस मामले को लेकर इसलिए भी सतर्क है, क्योंकि ज्यादातर राज्यों ने राज्य सूची के आधार पर अपने यहां अलग -अलग जातियों को पिछड़े वर्ग में जगह दे रखी है। इसका लाभ भी वे राज्य की सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों के दाखिले में ले रहे हैं। अब तक ओबीसी आरक्षण पर केंद्र और राज्यों की अलग-अलग सूची है। ओबीसी की केंद्रीय सूची में मौजूदा समय में करीब 2,600 जातियां शामिल है।