बसपा शासनकाल में कद्दावर मंत्रियों में गिने जाते रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा पर उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) का शिकंजा कसने वाला है। इस माह के आखिरी हफ्ते में दोनों मंत्रियों से होने वाली पूछताछ एकत्र किए गए साक्ष्यों और गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों के बयानों पर आधारित होगी। विजिलेंस ने दोनों के लिए प्रश्नों की लंबी सूची बनाई है।इससे पहले लोकायुक्त की जांच में लगभग 1400 करोड़ रुपये के घोटाले की आशंका जताई गई थी। इन स्मारकों का निर्माण राजधानी लखनऊ के अलावा गौतमबुद्धनगर (नोएडा) में किया गया है। कार्यदायी संस्था राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन चार बड़े अफसरों की गिरफ्तारी के बाद विजिलेंस ने दोनों पूर्व मंत्रियों से पूछताछ करने का फैसला किया। दोनों मंत्री तत्कालीन बसपा सरकार में आवास और खनन विभाग के मंत्री की भूमिका में भी थे।
इसी बीच विजिलेंस ने स्मारकों के लिए पत्थरों की आपूर्ति के ठेके से जुड़े रहे दो अभियुक्तों रमेश यादव और किशोरी लाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। जांच में यह तथ्य सामने आ चुका है कि मिर्जापुर से लाए गए पत्थरों को राजस्थान से लाए जाने का दावा करते हुए परिवहन के फर्जी बिलों का भुगतान लिया गया। पत्थरों की कीमतों से लेकर उसके परिवहन तक में भारी अनियमितता देखने में आई। आपूर्ति करने वाले ठेकेदारों को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ था। विगत 20 मई 2013 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में लोकायुक्त ने सीबीआई या किसी अन्य सक्षम एजेंसी से मामले की विस्तृत जांच कराने की सिफारिश की थी। इस रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी बताया गया था। वर्ष 2014 में तत्कालीन सपा सरकार ने लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट के आधार पर मामले की विस्तृत जांच की जिम्मेदारी विजिलेंस को सौंपी। फिर विजिलेंस ने जनवरी 2014 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 19 नामजद व अन्य अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। अब इसी एफआईआर पर उसकी जांच चल रही है।