भारतीय सिनेमा में मिसाल बन चुके गुरुदत्त एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपने जीवन को सिनेमा का पर्दा समझा और उसमें ही अपना सब कुछ झोंक दिया। उनके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी। पर्दे पर कुछ अद्भुत और अद्वितीय रचने की बेचैनी। गुरुदत्त अपने आप में सिनेमा का महाविद्यालय थे। उनकी तीन क्लासिक फिल्में ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘प्यासा’ और ‘कागज़ के फ़ूल’ को टेक्स्ट बुक का दर्जा प्राप्त है
सिनेमा की गहरी समझ के साथ-साथ वह समय से काफी आगे की सोच रखने वाले फिल्मकार थे। कागज के फूल में कैमरे के क्लोज अप शॉट्स का इस्तेमाल जिस तरह उन्होंने किया, वह आज भी कल्ट माना जाता है। गुरुदत्त के अंदर हर पल कुछ नया करने की बेचैनी थी, उसकी शायद यही वजह थी कि उन्हें जब कभी लगता था कि वह किसी फिल्म के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं, तो उसे अधूरा छोड़ देते थे।
इन फिल्मों की तरह ही हमेशा कुछ अधूरा था गुरुदत्त के जीवन में। प्यार, शादी, बच्चे, कामयाबी सब कुछ होते हुए भी क्या हुआ कि एक दिन अचानक गुरुदत्त ने खुद को यूं ही खत्म कर लिया।
कर्नाटक के मंगलूर में 9 जुलाई 1925 को जन्मे गुरुदत्त का पूरा नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। गुरुदत्त की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ दिनों के लिए एक कंपनी में टेलिफोन ऑपरेटर की नौकरी की। बाद में नौकरी छोड़ वो पुणे चले आए।
1945 में गुरुदत्त को ‘प्रभात’ फिल्म कंपनी में काम मिल गया। फिल्म ‘लाखारानी’ से उन्होंने करियर शुरू किया। 1946 में फिल्म ‘हम एक हैं’ में उन्होंने सहायक निर्देशक और नृत्य निर्देशक की जिम्मेदारी निभाई। 1947 में प्रभात फिल्म कंपनी से गुरुदत्त का अनुबंध समाप्त हो गया।
उन दिनों गुरुदत्त की दोस्ती देवानंद से हो गई, दोस्ती की ये कहानी भी बहुत दिलचस्प थी। दरअसल उन दिनों देवानंद और गुरुदत्त दोनों ही एक ही लांड्री से कपड़े धुलवाते थे। एक दिन दोनों की शर्ट बदल गई। बस वहां से शुरू हुई दोस्ती में दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि जब भी फिल्म में काम मिलेगा वो एक दूसरे को मौका जरूर देंगे
गुरुदत्त और देवानंद के बीच इस वक्त कुछ मन मुटाव रहा जिसके चलते गुरुदत्त ने अपनी फिल्म कंपनी बना ली। उसी बैनर पर पहली फिल्म ‘आर पार (1954)’ बनाई। फिल्म के गीत संगीत को खूब सराहना मिली। इसके बाद गुरुदत्त ने “मि एण्ड मिसेस 55″(1955) बनाई। ओपी नैय्यर के संगीत से सजी इस फ़िल्म के गाने खूब चले।
फिल्म ‘बाजी’ के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान गुरुदत्त की गीता दत्त से निगाहें टकराईं। पर दोनों में कोई समानता नहीं थी। गीता शौहरत की बुलंदियों पर थीं तो गुरुदत्त अपनी पहचान तलाश रहे थे। गीतादत्त बिलकुल गुरुदत्त की फिल्मों जैसी थीं डार्क और ब्यूटीफुल। दोनों ने तीन साल के प्रेम के बाद 1953 में शादी कर ली।। दोनों के तीन बच्चे हुए। जाने कब गीता-गुरु में दूरियां आ गईं। गुरुदत्त को जानने वालों की मानें तो दोनों में अहम का टकराव था।
गीत की बेपनाह मोहब्बत के बाद भी गुरुदत्त के जीवन में जाने कौन सा कोना खाली रह गया था जिसे वहीदा रहमान ने भरा। वहीदा जानती थीं कि गुरुदत्त शादीशुदा हैं इस रिश्ते में आगे बढ़ने का मतलब गुरुदत्त और गीता का घर तोड़ना होगा, इसलिए इस संबंध को उन्होंने कभी नहीं स्वीकारा।
इधर गुरुदत्त की बेचैनी कम नहीं हुई उन्होंने 1957 में ‘प्यासा’ बनाई। ये फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। प्यासा एक ऐसे नौजवान की कहानी थी जिसे समाज से सिर्फ संघर्ष मिलता है। लोगों का कहना है कि ये गुरुदत्त की अपने संघर्ष की कहानी थी।
1959 में गुरुदत्त की एक और फिल्म आई ‘कागज के फूल’। फिल्म एक कल्ट फिल्म बन गई पर उस वक्त वो फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही। गुरुदत्त को इस फिल्म की असफलता ने तोड़ दिया था। गीता उन्हें छोड़ के जा चुकी थीं। अब गुरुदत्त शराब में डूबे रहने लगे।
1960 में गुरुदत्त और वहीदा रहमान की फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ आई। व्यवसायिक तौर पर ये एक हिट फिल्म थी। इस फिल्म से गुरुदत्त को फौरी तौर पर खुशी मिली। गुरुदत्त पूरी तरह से वहीदा के इश्क में गिरफ्तार हो गए थे, और शायद इस बेचैनी से भी घिर गए कि आखिर वो चाहते किसे हैं, गीता को या वहीदा को
1962 में अपनी बेचैनी, कशमकश में उलझे गुरुदत्त ने फिर ने एक फिल्म बनाई ‘साहिब बीवी और गुलाम’। इस फिल्म में यूं तो कई और बड़े नाम थे पर एक नाम जिससे गुरु जुड़ चुके थे वो था वहीदा रहमान।
फिर आई वो 10 अक्टूबर 1964 की काली रात जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे। उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी, इतनी उन्होंने पहले कभी नहीं पी थी। गीता से फोन पर नोकझोंक हुई। काफी ज्यादा नींद की गोलियां खाने के बाद उस रात जो गुरुदत्त सोए तो कभी नहीं उठे।