असफलताओं से सबक लेते हुए एक कदम पीछे लेकर चार कदम आगे की छलांग लगाना सिखाते हैं रांची के राजकुमार महेंद्र सिंह धौनी। आज उनके जन्मदिन (7 जुलाई) पर उनकी कई आदतें अपनाकर हासिल कर सकते हैं जीवन में नई ऊचांइयां…
बीते साल जब महेंद्र सिंह धौनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की, उनका हर फैन बस उन्हें आईपीएल मैच में खेलते देखना चाहता था। इस साल शुरुआती कुछ मैचों में भले ही उनकी टीम वह कमाल नहीं कर पा रही थी, मगर कभी छलांग लगाकर कैच पकड़ते या फिर अपने से कम अनुभवी खिलाड़ियों को खेलने और खुद निर्णय लेने देने जैसी बातों से धौनी दर्शकों का दिल जीतते रहे।
जब उनकी टीम ने क्लीनस्वीप मैच जीता, तो न सिर्फ चेन्नई सुपरकिंग्स (सीएसके) के फैन का उत्साह दोगुना हुआ साथ ही यह खुशी धौनी को मैदान पर देखने से और बढ़ गई। आखिर वो एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिनका हर अंदाज शानदार रहा है। वे सिर्फ मैदान के अंदर ही नहीं बल्कि असल जीवन में भी काफी कुछ सिखा जाते हैं। अनेक मोटिवेशनल स्पीकर व मेंटर जीवन व कॅरियर के विषय में उनके तमाम सिद्धांत सिखाते और इसका पालन करवाते हैं।
छोटे से शहर रांची के मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े महेंद्र सिंह धौनी ने बड़ा सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की। सफलता के प्रति उनकी भूख असीमित थी और खुद पर पूरा विश्वास। इस पर उनका अपने फैसलों पर डटे रहना भी उन्हें इस स्तर पर पहुंचाता है। धौनी का सीधा सा मंत्र है- ‘अपने दिल की आवाज जीवन में आए अनुभवों से आती है। खुद को तराशने के बाद आने वाली वह आवाज सही दिशा में ले जाती है।
धौनी ने हमेशा वही किया, जिस पर उन्हें भरोसा था और उन्हें इसके अच्छे परिणाम भी मिले। यही वजह है कि धौनी के लिए डीआरएस अधिकांशत: सही ही रहे। सभी को याद होगा जब उन्होंने टी-20 वल्र्ड कप फाइनल मैच में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ अंतिम ओवर में गेंद डालने के लिए जोगिंदर शर्मा को बुलाया। हर कोई हतप्रभ था, लेकिन कुछ ही क्षणों बाद भारत ने पहला टी-20 वल्र्ड कप जीत लिया था। कुल-मिलाकर डटकर मेहनत करो और अपने दिल की आवाज पर यकीन रखो।
धैर्य रखना कोई धौनी से सीखे। शुरुआती दिनों में उनके समकालीन भारत का प्रतिनिधित्व करने लगे थे, लेकिन धौनी पर किसी की नजर नहीं पड़ रही थी। जैसे ही उन्हें मौका मिला, उन्होंने बतौर विकेटकीपर न सिर्फ विकेट के पीछे रहकर बेहतर निर्णय लिए साथ ही पाकिस्तान के खिलाफ शानदार शतक जड़कर दुनिया को अपने आगमन की जोरदार सूचना भी दी। माही की कप्तानी में भारत पहली रैंकिंग की टेस्ट टीम बनी। सीएसके स्किपर के रूप में आईपीएल में उनका ट्रैक रिकॉर्ड भी उतना ही शानदार है।
जब भारत 2007 के वल्र्ड कप से बाहर हो गया और पूरे देश में उनके पोस्टर जलाए गए, तब भी धौनी ने हार नहीं मानी और उसके बाद का इतिहास हर कोई जानता है। जीवन के 40 साल पूरे कर रहे धौनी ने जब दिल्ली कैपिटल्स के खिलाफ हवा में उड़ते हुए शानदार कैच पकड़ा तो फिटनेस के मामले में उन्होंने सबकी बोलती बंद कर दी तो वहीं किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ मैच में माही ने अपने आईपीएल के 100 कैच पूरे किए।
सार यह है कि ऐसा वक्त भी आएगा, जब आप असफल होकर जमीन पर आ जाएंगे, लेकिन आपको उसी जमीन को आधार बनाकर मजबूती से वापसी करनी होगी। असफलताएं जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, मगर जैसे ही मौका मिले अपना शत-प्रतिशत देकर हर तरफ छा जाओ!
मेंटरशिप कंपनी कॉम्प्लिमेंटर्स की को-फाउंडर व ग्लोबल कम्युनिकेशंस स्पेशियलिस्ट दीप्ति सेठी अपनी राय रखते हुए कहती हैं, ‘धौनी को कैप्टन कूल यूं ही नहीं कहा जाता। वो एक ऐसे खेल के कप्तान थे, जिसे पूरे देश में धर्म माना जाता है। फिर भी करोड़ों फैंस की उम्मीदों का वजन लेकर वो कितने दबाव में खेलते हैं, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि मैच के दौरान उनके दिमाग में क्या चल रहा है।
वे लगातार अपना धैर्य बनाकर रखते हैं और मैच को अपने अंदाज में अंतिम ओवर तक लेकर जाते। उन्हें यूं ही बेहतर फिनिशर नहीं कहा जाता। वो गहरे जल की भांति शांत और लोमड़ी की भांति चतुर रहे हैं। उनके जीवन का हर अंदाज अलग ही शिक्षा देता है। उनका क्रिकेट के प्रति लगाव, देशप्रेम, परिवार के प्रति समर्पण जैसे तमाम गुण हैं जो उन्हें हर किसी का आदर्श बनाते हैं।
इसी तरह बात जब नेतृत्व की आई तो धौनी बेहतर नेतृत्वकर्ता साबित हुए हैं। उन्होंने कठोर निर्णय लिए और उन पर अडिग रहे। कारपोरेट दुनिया में भी सफल नेतृत्वकर्ताओं को कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। ये निर्णय आपके नेतृत्व के कौशल के साथ बेहतर इनिंग खेलने के लिए तैयार करते हैं। इसी तरह जब बात साथियों के कौशल में इजाफा करने और उन्हें सिखाने की आती है तो उसमें भी धौनी का कोई सानी नहीं। यही वजह है कि कई युवा खिलाड़ी आज भी धौनी की इस आदत पर अपने अनुभव साझा करते नजर आ जाते हैं।
अपने पूरे खेल के दौरान उन्होंने कई खिलाड़ियों को ग्रूम किया और प्रदर्शन करने का मौका दिया। यह सिर्फ भारतीय खिलाडि़यों ही नहीं, कई बार दूसरी टीम के खिलाडि़यों को भी बेहतर फील्डिंग करने जैसी सलाह देना भी उनकी आदत में रहा। इसी तरह जब भी भारत कोई टूर्नामेंट जीता, तो ज्यादातर बार ट्राफी धौनी नहीं पकड़े होते। वो अपने टीम के साथियों और युवा खिलाडिय़ों को ट्रॉफी पकडऩे देते हैं। यह वो अपनी पूरी टीम के लिए सराहना स्वरूप करते थे। यह आदत शीर्ष पर पहुंचने के बाद अपने से नीचे मौजूद लोगों के साथ ईमानदारी और बेहतर व्यवहार करने का सबक देती है!