जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में मिली सफलता से सत्ताधारी दल भाजपा ने जिले की सियासत में रणनीतिक बढ़त बना ली है। शनिवार को हुए मतदान में पार्टी की तरफ से सांसद विनोद सोनकर का कुशल चुनावी प्रबंधन और बेहतर रणनीति का समन्वय दिखा। इसमें संगठन के साथ ही विधायकों ने भी पूरे मनोयोग से अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाई। नतीजतन चुनाव में सपा के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज पर डिप्टी सीएम की टीम भारी पड़ गई।
प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या का गृह जनपद होने के कारण जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भगवा लहराना सत्ता और संगठन के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया था। चुनाव में डिप्टी सीएम के साथ ही जिले के प्रभारी मंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, सांसद विनोद सोनकर, विधायक संजय गुप्ता, शीतला प्रसाद पटेल, लालबहादुर समेत आधा दर्जन माननीयों की प्रतिष्ठा दावं पर लगी थी।
सारी परिस्थितियां अनुकूल होने के बाद भी नतीजा सकारात्मक नहीं आने पर सरकार को खासी किरकिरी झेलनी पड़ती। इसे देखते हुए पार्टी ने क्षेत्रीय सांसद को प्रभारी बनाकर संजीदगी से चुनाव लड़ने का निर्देश दिया। सांसद ने सरकार और संगठन की मंशा के अनुरूप रणनीति बनाई। डिप्टी सीएम केशव मौर्या के निर्देश व सांसद की रणनीति को पार्टी के विधायकों ने अंजाम तक पहुंचाया। एक-एक सदस्यों को पाले में करने के लिए पूरी योजना के तहत काम हुआ। नतीजतन चुनाव में निर्वाचित चार सदस्यों वाली भाजपा बाजी पक्ष में कर ले गई।
जबकि, मतदान के ऐन वक्त तक पार्टी के हाथ में केवल नौ सदस्य ही थे। लेकिन योजना के तहत पार्टी विपक्ष के कब्जे में रहे सदस्यों से क्रास वोटिंग कराने में कामयाब हो गई। वहीं दूसरी तरफ सपा के लिए भी चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल था। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज का भी गृह जनपद होने के कारण सपा को मंडल में जीत का सर्वाधिक भरोसा कौशाम्बी मेें था। इसके लिए सपा महासचिव ने अपने सिपहसालार पूर्व विधायक आसिफ जाफरी और वरिष्ठ पार्टी नेता प्रदीप चौधरी को लगा रखा था।
आसिफ पाले में आए सदस्यों को सुरक्षित रखने में तो सफल हुए, लेकिन अंत तक उनको सहेज नहीं सके। सूत्रों का कहना है कि सपा महासचिव यदि दो-तीन दिन पहले मैदान में आकर पाले में आए सदस्यों का आत्मबल मजबूत करते तो नतीजा अलग होता। बहरहाल शनिवार को हुए चुनाव में डिप्टी सीएम की टीम सपा महासचिव इंद्रजीत सरोज पर भारी पड़ गई।