पाकिस्तान की जमीन पर हिंदुस्तान का मान बढ़ाने वाले मिल्खा सिंह (Milkha Singh) अब हमारे बीच नहीं रहे. 91 साल की उम्र में कोरोना के चलते उनका निधन हो गया. बेशक उन्होंने दुनिया छोड़ दी हो, पर ये दुनिया उन्हें हमेशा याद करेगी. 200 मीटर और 400 मीटर की जमीन पर किए उनके कमाल के लिए पूरा भारत उन्हें हमेशा सलाम करेगा. मिल्खा सिंह की सबसे बड़ी कामयाबियों में से एक थी उन्हें फ्लाइंग सिख का टैग मिलना. वो तमगा जो उन्हें किसी हिंदुस्तानी या गोरी चमड़ी वाले बाबू ने नहीं बल्कि एक पाकिस्तानी ने दिया था.
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में मिल्खा सिंह की एंट्री एशियन गेम्स के रास्ते हुई थी. लेकिन, उनकी दस्तक को दुनिया ने पहली बार महसूस किया था टोक्यो में हुए 1958 के ओलिंपिक खेलों में, जहां उन्होंने 200 मीटर की रेस में 21.6 सेकेंड का वक्त निकालते हुए गोल्ड मेडल जीता था. ओलिंपिक मेडल जीतना हर एथलीट का सपना होता है. लेकिन, मिल्खा खुश थे, क्योंकि उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को हराया था. अब्दुल खालिक को हराकर गोल्ड जीतना इसलिए भी बड़ी बात थी क्योंकि तब वो पाकिस्तान के ही नहीं बल्कि एशिया के भी सबसे तेज दौड़ने वाले शख्स थे.
खैर, टोक्यो ओलिंपिक में मिल्खा की गोल्डन दौड़ के बाद उनके और अब्दुल खालिक के बीच की प्रतिद्वन्दिता शुरू हो गई. दोनों के बीच की गरमी को हर कोई महसूस करने लगा था. बात उस गोल्डन रेस में विजयी होने से पहले की है. जब मिल्खा और खालिक पहली बार मिले. खालिक ने मिल्खा को अपनी 200 मीटर की रेस देखने के लिए होटल में बुलाया था. कहा जाता है कि उस दौरान खालिक ने मिल्खा से कहा था कि उन्होंने उनके जैसे कितने दौड़ने वालों को हराया है, उन्हें याद भी नहीं. इसके बाद मिल्खा ने 400 मीटर की रेस में गोल्ड जीता और अब्दुल खालिक ने 100 मीटर में गोल्ड हासिल किया.
लेकिन, मिल्खा बनाम खालिक का असली टसल देखने को मिला 200 मीटर की रेस में, जिसमें कुल 6 देशों के एथलीट मे हिस्सा लिया था. 100 मीटर की रेस तक तो मिल्खा और खालिक एकदम बराबर दौड़े. लेकिन अगले 100 मीटर की जमीन पर मिल्खा ने खालिक के मुकाबले पॉइंट वन सेंकेड की बढ़त बना ली. मिल्खा के दाएं पैर की मांसपेशियों में खिंचाव के चलते दर्द था, बावजूद वो भागे और फीनिशिंग लाइन पर जाकर गिर पड़े. खालिक भी उनके साथ ही पहुंचे. लेकिन जज की नजर में मिल्खा सिंह विजेता घोषित किए गए. मिल्खा सिंह ने 21.6 सेकेंड में रेस पूरी की थी जबकि अब्दुल खालिक ने 21.7 सेकेंड में. भारतीय स्प्रिंटर ने अपनी किताब में टोक्यो की ट्रैक पर हुई उस रेस को जिंदगी की सबसे बड़ी रेस कहा था.
बहरहाल, मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ का तमगा इस रेस के चलते नहीं बल्कि पाकिस्तान की जमीन पर सबसे तेज दौड़ने के लिए मिला था. साल था 1960. मिल्खा सिंह को पाकिस्तान की ओर से इंटरनेशनल कम्पीटिशन का न्योता मिला. बंटवारे के दर्द के चलते मिल्खा पाकिस्तान जाना नहीं चाहते थे. पर वो तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की बात नहीं उठा सके. PM नेहरू ने मनाया तो मिल्खा पाकिस्तान जाने के लिए तैयार हो गए.
पाकिस्तान चाहता था कि अब्दुल खालिक अपने लोगों के बीच मिल्खा सिंह को हराएं. और, मिल्खा थे जो ये सोचकर पाकिस्तान पहुंचे थे कि हिंदुस्तान के मान को ठेस नहीं पहुंचने देंगे. दोनों के बीच रेस शुरू हुई, जिसमें मिल्खा सिंह ने अब्दुल खालिक को उसी के घर की जमीन पर, उसी के लोगों के बीच मात दे दी. मिल्खा ऐसे दौड़े कि खालिद टिक नहीं पाए. अब्दुल खालिक को हराने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह से मुलाकात की और कहा- ‘आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो. इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं.’ इसी रेस के बाद से मिल्खा सिंह को ‘द फ्लाइंग सिख’ कहा जाने लगा.