भारत में मानसून दस्तक दे चुका है. पहले इसने केरल में दस्तक दी. फिर मुंबई में झमाझम बारिश हुई. यानि मानसून देश में आ चुका है. अब धीरे धीरे ये देश के हर हिस्से में फैलता जाएगा. मानसून हर साल जून से सितंबर के बीच केरल से शुरू होता है. जेठ की इस गर्मी के बीच राहत की बात ये भी है कि अब ये उत्तर भारत में दस्तक दे रहा है. यानि आप कह सकते हैं कि मानसून आ चुका है.
अंग्रेजी शब्द मानसून पुर्तगाली शब्द मान्सैओ से बना है. मूलरूप से ये शब्द अरबी शब्द मावसिम (मौसम) से आया है. यह शब्द हिंदी, उर्दू और उत्तर भारतीय भाषाओं में भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी एक कड़ी शुरुआती आधुनिक डच शब्द मॉनसन से भी मिलती है. भारत में मानसून जून से शुरू होकर सितंबर तक चार महीने सक्रिय रहता है.
मौसम विभाग कई पैमानों का इस्तेमाल कर इन चार महीनों के दौरान होने वाली मानसून की बारिश की मात्रा को लेकर भविष्यवाणी करता है. बता दें कि भारत में 127 कृषि जलवायु सब-जोन हैं. वहीं, कुल 36 जोन हैं. समुद्र, हिमालय और रेगिस्तान मानसून को प्रभावित करते हैं. इसलिए मौसम विभाग 100 फीसदी सही अनुमान लगाने में चूक जाता है.
कैसे होती है पूरे देश में मानसून की बारिश
गर्मी के मौसम में जब हिंद महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है तो मानसून बनता है. इस प्रक्रिया में गर्म होकर समुद्र का तापमान 30 डिग्री तक पहुंच जाता है. उस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुंच चुका होता है. ऐसी स्थिति में हिंद महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएं सक्रिय हो जाती हैं. ये हवाएं आपस में क्रॉस करते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती हैं.
इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. विषुवत रेखा पार करके हवाएं और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं. इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक होता है. ऐसी स्थिति में हवाएं समुद्र से जमीनी हिस्सों की ओर बहने लगती हैं. ये हवाएं समुद्र के जल के वाष्पन से पैदा होने वाली वाष्प को सोख लेती हैं और धरती पर आते ही ऊपर उठती हैं और बारिश करती हैं.
अगर हिमालय नहीं होता तो तरसते रह जाते उत्तरी इलाके
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुंचने के बाद समुद्र से उठी मानसूनी हवाएं दो शाखाओं में बंट जाती हैं. एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती हैं.
इस तरह से जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में झमाझम बारिश होने लगती है. मानसून मई के दूसरे सप्ताह में बंगाल की खाड़ी में अंडमान निकोबार द्वीप समूहों में दस्तक देता है और 1 जून को केरल में पहुंच जाता है.
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अगर हिमालय पर्वत नहीं होता तो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में मानसून की बारिश होती ही नहीं. मानसूनी हवाएं बंगाल की खाड़ी से आगे बढ़ती हैं और हिमालय से टकराकर वापस लौटते हुए उत्तर भारत के मैदानी इलाकों पर बरसती हैं. भारत में मानसून राजस्थान में मामूली बारिश करने के बाद खत्म हो जाता है.
कहां कितनी बारिश करता है मानसून
देश में मानसून के चार महीनों में औसतन 89 सेंटीमीटर बारिश होती है. देश की 65 फीसदी खेती मानसूनी पर निर्भर है. बिजली उत्पादन, नदियों का पानी भी मानसून पर निर्भर है. पश्चिम तट और पूर्वोत्तर के राज्यों में 200 से एक हजार सेमी बारिश होती है, जबकि राजस्थान और तमिलनाडु के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां मानसूनी बारिश सिर्फ 10-15 सेमी बारिश होती है.
चेरापूंजी में सालभर में करीब 1,100 सेमी तक बारिश होती है. केरल में मानसून जून के शुरू में दस्तक देता है और अक्टूबर तक करीब पांच महीने रहता है, जबकि राजस्थान में सिर्फ डेढ़ महीने ही मानसूनी बारिश होती है. यहीं से मानसून की विदाई होती है.
हिंद महासागर और अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आनी वाली हवाएं भारत के साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश में भी भारी बारिश कराती हैं. वैसे किसी भी क्षेत्र का मानसून उसकी जलवायु पर निर्भर करता है. अमूमन मानसून के दौरान तापमान में तो कमी आती है, लेकिन नमी में वृद्धि होती है.
कहां-कहां पहुंचकर बारिश करता है
अरब सागर से आने वाली हवाएं उत्तर की ओर बढ़ते हुए 10 जून तक मुंबई पहुंच जाती हैं. हालांकि इस बार तो मानसून कुछ जल्दी ही हर जगह पहुंच रहा है. मानसून जून के पहले सप्ताह तक असम में पहुंच जाता है. इसके बाद हिमालय से टकराने के बाद हवाएं पश्चिम की ओर मुड़ जाती हैं. मानसून कोलकाता शहर में मुंबई से कुछ दिन पहले 7 जून के आसपास पहुंच जाता है.
मध्य जून तक अरब सागर से बहने वाली हवाएं सौराष्ट्र, कच्छ और मध्य भारत के प्रदेशों में फैल जाती हैं. इसके बाद बंगाल की खाड़ी और अरब सागर हवाएं फिर एकसाथ होकर बहने लगती हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पूर्वी राजस्थान में 1 जुलाई से बारिश शुरू करा देती हैं.
वहीं, दिल्ली में कभी-कभी मानसून की पहली बौछार पूर्वी दिशा से आती है और बंगाल की खाड़ी के ऊपर से बहने वाली धारा का हिस्सा होती है. कई बार दिल्ली में यह पहली बौछार अरब सागर के ऊपर से बहने वाली धारा का हिस्सा बनकर दक्षिण दिशा से आती है. आधी जुलाई गुजरते-गुजरते मानसून कश्मीर और देश के बाकी बचे हुए हिस्सों में भी फैल जाता है. हालांकि, तब तक इसकी नमी काफी कम हो चुकी होती है.
तमिलनाडु में उत्तर-पूर्वी मानसून से होती है बारिश
सर्दी में स्थल भाग ज्यादा जल्दी ठंडे हो जाते हैं. ऐसे में शुष्क हवाएं उत्तर-पूर्वी मानसून बनकर बहती हैं. इनकी दिशा गरमी के दिनों की मानसूनी हवाओं की दिशा से उलटी होती है. उत्तर-पूर्वी मानसून भारत के स्थल और जल भागों में जनवरी की शुरुआत तक छा जाता है. इस समय एशियाई भूभाग का तापमान न्यूनतम होता है. इस समय उच्च दाब की एक पट्टी पश्चिम में भूमध्यसागर और मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पूर्वी चीन तक के भू-भाग में फैली होती है.
इस दौरान भारत में बिना बादल वाला आकाश, बढ़िया मौसम, नमी की कमी और हल्की उत्तरी हवाएं चलती हैं. उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण होने वाली बारिश होती तो कम है, लेकिन सर्दी की फसलों के लिए बहुत फायदेमंद होती है.
उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण तमिलनाडु में झमाझम बारिश होती है. तमिलनाडु का मुख्य वर्षाकाल उत्तर-पूर्वी मानसून के समय ही होता है. दरअसल, पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखलाओं के कारण उत्तर-पश्चिमी मानसून से तमिलनाडु में ज्यादा बारिश नहीं होती है. इसलिए नवंबर और दिसंबर के महीनों में उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान तमिलनाडु में सबसे ज्यादा बारिश होती है.