उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी में सियासी अटकलबाज़ियों का दौर चल रहा है, सरकार और संगठन में बदलाव की चर्चाएं गरम हैं, केंद्र और राज्य में तनातनी की ख़बरें भी हैं लेकिन ऐसे माहौल में भी विपक्ष की ख़ामोशी लोगों को हैरान कर रही है. हालांकि विपक्षी दल यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वो ख़ामोश हैं.
उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव हैं. कोरोना संकट के कारण पिछले कुछ महीने काफ़ी संकट में रहे और लॉकडाउन की वजह से तमाम गतिविधियां भी बाधित रहीं. लेकिन विपक्षी दलों की गतिविधियां पिछले काफ़ी समय से इतनी सक्रिय नहीं दिख रही हैं जितनी कि बीजेपी जैसी मज़बूत पार्टी के मुक़ाबले में उतरने लायक दिखें.
हालांकि योगी आदित्यनाथ की चार साल पुरानी सरकार में विपक्ष के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं रही, लेकिन किसी भी एक पार्टी का सरकार के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का स्वर इतना मुखर नहीं दिखा कि बीजेपी से नाराज़ मतदाताओं का विश्वास हासिल कर सकें.
लेकिन सबसे आश्चर्यजनक रवैया बहुजन समाज पार्टी का है जो कोविड संक्रमण के दौर में ज़मीन पर दिखी भी नहीं और न ही इस तरह का कोई दावा ही कर रही है.
यही नहीं, बीएसपी के कोई नेता इस मामले में भी वैसे ही कुछ बोलने से साफ़ इनकार कर देते हैं जैसे कि किसी अन्य मामले में.
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से पहले देश की राजनीति में कृषि क़ानूनों का मुद्दा गर्माया हुआ था. कई राज्यों के किसान और विपक्षी राजनीतिक दल कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के तमाम इलाक़ों में किसान यूनियन ने कई जगह पंचायतें कीं, कांग्रेस पार्टी और समाजवादी पार्टी ने भी पंचायतें कीं लेकिन बीएसपी ने किसान आंदोलन से ख़ुद को दूर ही रखा. हां, बीच-बीच में कुछ मुद्दों पर बीएसपी नेता मायावती ट्वीट ज़रूर कर देती हैं.