लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण में स्थानीय स्वशासन का महत्व: आशीष मौर्य

लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में सुशासन तथा उसे सुव्यवस्थित रूप से संचालित करने के लिए सत्ता के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता होती है|यह वह व्यवस्था है जिसमें विभिन्न स्तरों पर सत्ता,शक्ति तथा अधिकार विभक्त होते हैं|अर्थात् शीर्ष से तृणमूल स्तर तक सत्ता, शक्ति व संसाधनों का विभाजन|साथ ही प्रत्येक स्तर अपने कार्यों के लिए स्वयं उत्तरदायी होते हैं| सत्ता के विकेंद्रीकरण का उद्देश्य जनता को अधिकाधिक सत्ता में भागीदारी का अवसर प्रदान करना है|इसे ‘ग्रासरूट डेमोक्रेसी’ भी कहा जाता है|आर.बी.जैन के अनुसार,” संक्षेप में ‘ धरातल पर लोकतंत्र की अवधारणा’ केवल लोकतंत्र का ‘मुख दर्शन’ मात्र नहीं है बल्कि किसी भी देश की धरती में लोकतंत्र के गहराई से बीजारोपण का प्रयत्न है|” स्थानीय स्वशासन विकेंद्रित सत्ता का ही प्रतीक है|एल.गोल्डिंग के अनुसार,” स्थानीय सरकार की सबसे सरल परिभाषा यही है कि यह एक बस्ती के व्यक्तियों द्वारा अपने मामलों का स्वयं ही प्रबंध है|” प्राचीन भारत में ग्राम प्रशासन की धुरी थी| इसके प्रमुख को ‘ग्रामणी ‘कहा जाता था|मौर्यकालीन भारत में स्थानीय स्वशासन बहुत ही विकसित था|इस काल में ग्राम शासन की सबसे निचली इकाई थी,जिसका प्रमुख ‘ग्रामिक ‘ कहलाता था|गुप्तकाल में प्रान्त अनेक नगर और ग्राम में विभक्त थे|राजपूतकालीन समय में भी ग्राम प्रशासन की सबसे न्यूनतम इकाई थी|मुगलकाल में भी ग्राम स्वायत्त शासन के महत्वपूर्ण निकाय में से एक थी|गांवों का प्रबन्ध पंचायतें करती थी|मुकद्दम,पटवारी और चौधरी प्रमुख अधिकारी होते थे|लेकिन वर्तमान भारत की स्थानीय स्वशासन ब्रिटिश विरासत की देन है|भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक गवर्नर जनरल लार्ड रिपन को माना जाता है|रिपन ने 1882 ई. में स्थानीय स्वशासन को स्वशासी बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया|जिसके आधार पर 1885 में स्थानीय निकाय अधिनियम लागू हुआ|1907 में राजकीय विकेन्द्रीकरण आयोग की स्थापना हुयी|भारत शासन अधिनियम ,1919 द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन लागू किया गया|पं.जवाहर लाल नेहरू 1924 से 1925 तक इलाहाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष रहें|स्वतंत्रता पश्चात् 1957 में बलवन्त राय मेहता की अध्यक्षता में गठित दल ने त्री-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की|जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत,मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिलापरिषद|यह व्यवस्था सर्वप्रथम 2 अक्टूबर,1959 को राजस्थान के नागौर जिले में लागू हुआ|स्थानीय स्वशासन को अधिक स्वायत्त तथा संवैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए 73 वॉ व 74 वॉ संविधान संशोधन अधिनियम,1992 को 1993 में लागू किया गया|यह अधिनियम स्थानीय संस्थाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में  आरक्षण प्रदान करता है,जो सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है|दूसरी तरफ महिलाओं को इन संस्थाओं में 33% सीटें आरक्षित की गयीं जो महिला सशक्तिकरण का द्योतक है| सत्ता के विकेंद्रीकरण से समाज के कमजोर वर्गों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न हुई है तथा वे राजनीतिक रूप से प्रशिक्षित हुए हैं|संविधान संशोधन अधिनियम ,1992 की धारा 245 -1 में प्रत्येक राज्य में एक  राज्य वित्त निगम के गठन का प्रावधान है |इससे स्थानीय संस्थाओं को अधिक वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त होने से  आर्थिक विकास  की गति तीव्र हुई है|इसके बावजूद स्थानीय संस्थाओं को अभी वित्तीय और प्रशासनिक रूप से और स्वायत्त बनाने तथा संस्थाओं के कार्यों में कार्यकुशलता,पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ भ्रष्टाचार पर प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता है|ताकि महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज ‘की संकल्पना पूर्णरूप से साकार हो सके|
                                                                                            आशीष मौर्य :चन्दौली|