मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष उपलब्धियों के साथ चुनौतियों से भरे रहे। इन दो सालों में तीन अहम एजेंडों में से दो राममंदिर और अनुच्छेद-370 के लक्ष्य पाने में सफलता मिली।
हालांकि, बीते कार्यकाल की तरह सरकार और भाजपा राजनीतिक मोर्चे पर सफलता के झंडे नहीं गाड़ पाई। कोरोना की दूसरी लहर ने ताकतवर ब्रांड मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है ।
मोदी 2.0 का पहला साल दूसरे के मुकाबले बेहतर रहा। पहले ही साल पार्टी जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को खत्म करने में सफल रही और अयोध्या विवाद का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आया।
इसके कारण तीसरे एजेंडे समान नागरिक संहिता के पक्ष में देशव्यापी माहौल बना। तमाम विरोधों के बावजूद सरकार नागरिकता संशोधन बिल को कानूनी जामा पहनाने में भी सफल रही।
दो सालों में पार्टी असम, बिहार और हरियाणा में सत्ता बचाने में कामयाब रही। महज एक राज्य पुडुचेरी में सहयोगी एआईएनआर की बदौलत कमल खिल पाया। असम में दोबारा सत्ता में मिली तो बिहार में बमुश्किल सरकार बन पाई। तमाम प्रयासों के बावजूद पार्टी पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने का सपना पूरा नहीं हो पाया। केरल व तमिलनाडु में बड़ी ताकत बनने का सपना भी पूरा नहीं हुआ।
दो साल में भाजपा को तीन सहयोगियों और दो राज्यों में सरकार गंवानी पड़ी। शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के बाद बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी राजग से अलग हो गई। हालांकि, इसी दौरान भाजपा को हरियाणा की जेजेपी, पुडुचेरी की एआईएनआर कांग्रेस और असम की यूपीपीएल के रूप में तीन नए सहयोगी तो मिले लेकिन पार्टी को झारखंड और महाराष्ट्र की सत्ता गंवानी पड़ी। जबकि, हरियाणा की सत्ता बचाने के लिए जेजेपी का सहयोग लेना पड़ा।
दो साल के कार्यकाल में पार्टी को कांग्रेस में असंतोष का लाभ मिला। विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी मध्य प्रदेश और कर्नाटक में सरकार बनाने में कामयाब रही। दोनों ही राज्यों में पार्टी को कांग्रेस विधायकों में फूट का लाभ मिला। बीते सात सालों में पहली बार भाजपा और सरकार को ब्रांड मोदी की चिंता है। इससे पहले नोटबंदी और जीएसटी के कारण भी ब्रांड मोदी के सामने चुनौती दिखी थी।
हालांकि, कोरोना की दूसरी लहर से उपजी चुनौती काफी बड़ी है। पार्टी और सरकार इससे पैदा हुई मुश्किलों और लोगों की नाराजगी को दूर करने की कोशिशों में जुटी है।