एनसीईआरटी की किताबों की कुछ पुरानी कविताओं पर नया विवाद खड़ा हो गया है। सबसे ज्यादा विवाद कक्षा एक की किताब में शामिल कविता ‘आम की टोकरी’ पर है। लोग कविता की भाषा को अश्लील बताते हुए सोशल मीडिया पर एनसीईआरटी को ट्रोल कर रहे हैं। तो कुछ लोगों का कहना है कविता को बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्तर पर जाकर देखना चाहिए। कविता में कोई खामी नहीं है। इसके गलत अर्थ निकालने वालों की सोच में खामी है।
जिन कविताओं पर विवाद है, वे 2005 से ही पाठ्यक्रम में शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह है कि अब इतने साल बाद विवाद क्यों हो रहा है? इसका एक बड़ा कारण एनसीईआरटी की वह सफाई भी है जो उसने सोशल मीडिया पर ट्रोल होने के बाद ट्वीट करके दी है। एनसीईआरटी का कहना है कि नैशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ)-2005 के तहत स्थानीय भाषाओं को बच्चों तक पहुंचाने के लिए कविताएं शामिल की गई हैं ताकि सीखना सुरुचिपूर्ण हो। अगले ही ट्वीट में एनसीईआरटी ने फिर कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में नई पाठ्यचर्या की रूपरेखा के आधार पर भविष्य में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण किया जाएगा। एनबीटी ने एनसीईआरटी के निदेशक श्रीधर श्रीवास्तव से बात की तब भी उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि जिन कविताओं पर विवाद हो रहा है, वे 2005 से ही पाठ्यक्रम में शामिल हैं या बाद में संशोधन करके जोड़ी गई हैं।
पत्रकारों ने कुछ स्कूलों में शिक्षकों से बात की तो पता चला कि कविताएं-2005 के एनसीएफ के बाद से पाठ्यक्रम में शामिल की गई थीं। आरएलबी ग्रुप ऑफ स्कूल्स के प्रबंधक जयपाल सिंह बताते हैं कि किताब का पहला संस्करण 2006 में छपा और तभी से ये कविता शामिल है। शिक्षाविदों और जानकारों का कहना है कि 2020 की नई शिक्षा नीति के तहत किताबों में बड़े बदलाव किए जाने हैं। ऐसे में जान-बूझकर छोटी बातों को तूल दिया जा रहा है, जिससे बदलाव को तर्कसंगत साबित किया जा सके।
कविता ‘आम की टोकरी’ के शब्दों पर खास तौर से विवाद है। आम बेचने वाली लड़की के लिए ‘छह साल की छोकरी’ जैसे वाक्यों का इस्तेमाल किया गया है। ‘नहीं बताती दाम है…हमें तो चूसना आम है’ जैसे वाक्यों पर भी आपत्ति है। एक अन्य कविता छुकछुक गाड़ी में ‘पेलमपेल’ जैसे शब्द पर भी आपत्ति है। वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव बताते हैं कि कविता लड़की की छवि को नकारात्मक तौर पर पेश करती है। इससे लड़के और लड़की में समता का भाव भी उत्पन्न नहीं होता। यह कविता भोले मन के अनुकूल नहीं है। वहीं, बाल साहित्यकार जाकिर अली रजनीश कहते हैं कि हमें बाल मनोविज्ञान को समझना होगा। हमें अपनी सोच बच्चों पर नहीं थोपनी चाहिए। कुछ साहित्य सिर्फ बच्चों के मनोरंजन के लिए भी होता है। यह कविता कृष्णदेव शर्मा ‘खद्दर’ की लिखी हुई है। वह उत्तराखंड के पुराने बाल साहित्यकार हैं और बाल पत्रिका भी निकालते थे। प्राथमिक शिक्षक संघ बाराबंकी के उपाध्यक्ष निर्भय सिंह और पूर्व शिक्षा निदेशक केएम त्रिपाठी कविता को बेहद स्तरहीन करार देते हैं। निर्भय सिंह कहते हैं कि अगले साल से एनसीईआरटी की यही किताबें यूपी के स्कूलों में भी लागू होने वाली हैं। ऐसी कविताओं को हटाया जाना जरूरी है।
साभार: NBT