विश्व धरोहर और दुनिया में मोहब्बत की बेमिसाल निशानी ‘ताजमहल’ के अस्तित्व को लेकर चिंताओं के बीच पिछले तीन वर्षो में इसके संरक्षण और पर्यावरणीय विकास के संदर्भ में 12.46 करोड़ रूपये खर्च किये गए. अगस्त में सम्पन्न संसद के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में पेश संस्कृति मंत्रालय की रिपोर्ट एवं एक प्रश्न के लिखित उत्तर के ब्यौरे के मुताबिक वर्ष 2015-16 से 2017-18 के दौरान तीन वर्षों की अवधि में ताजमहल के संरक्षण एवं पर्यावरणीय विकास कार्य के लिये 12.68 करोड़ रुपये आवंटित किए गए और इस अवधि में 12.46 करोड़ रूपये खर्च किए गए.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि विश्व प्रसिद्ध ताजमहल की सुरक्षा और संरक्षा के लिए प्रदूषण और हरित क्षेत्र जैसे मुद्दों को ध्यान में रखते हुए व्यापक परिप्रेक्ष्य में दृष्टिपत्र तैयार करना चाहिए क्योंकि इस धरोहर के संरक्षण के लिए दूसरा अवसर नहीं मिलेगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि निश्चित ही इस मामले में ताजमहल को केंद्र में रखते हुए ही विचार करना होगा, लेकिन इसके साथ ही दृष्टिपत्र तैयार करते समय वाहनों के आवागमन, ताज ट्राइपेजियम जोन में काम कर रहे उद्योगों से होनेवाला प्रदूषण और यमुना नदी के जल स्तर जैसे मुद्दों पर भी गौर करना चाहिए.
वहीं, संस्कृति मंत्रालय ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में भी ताजमहल के संरक्षण एवं पर्यावरणीय विकास कार्य की जानकारी देते हुए बताया कि 2015-16 में 3.65 करोड़ रूपये आवंटित किए गए और लगभग पूरी राशि खर्च की गई. इसी प्रकार वर्ष 2016-17 में 4.81 करोड़ रूपये की राशि आवंटित की गई और 4.69 करोड़ रुपये खर्च हुए. वर्ष 2017-18 में ताजमहल के संरक्षण एवं पर्यावरणीय विकास कार्य के लिये 4.22 करोड़ रुपये आवंटित किए गए और 4.12 करोड़ रुपये खर्च हुए.
मंत्रालय ने बताया कि कुछ समय पहले आए तूफान के कारण आगरा में कुछ स्मारकों के कुछ हिस्सों को क्षति पहुंची. क्षतिग्रस्त हिस्सों की मरम्मत का कार्य शुरू किया जा चुका है. लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि सरकार के समक्ष ताजमहल के संगमरमर के मौलिक रंग को पुन: प्राप्त करने के लिए उसके परीक्षण के उद्देश्य से विदेशी विशेषज्ञ को बुलाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.
बहरहाल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, ताजमहल की संगमरमर की दीवारों पर कीड़ों के प्रकोप की जांच के लिए आगरा के जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन 27 मई 2016 को किया गया था.
समिति की रिपोर्ट के अनुसार, समिति के सदस्य एवं अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डा. एम के भटनागर ने बताया कि ताजमहल की उत्तरी दीवारों पर हरे धब्बे दिखाई दिए. साथ ही मच्छर के आकार के कुछ कीड़े भी झुंड में विचरण करते दिखाई पड़े. ताजमहल के आधार पर यमुना की तरफ लाल पत्थरों पर भी कीड़ों का प्रकोप दिखाई दिया. समिति ने इन कीड़ों का स्रोत यमुना के दलदल में पाया. नदी के किनारे कीड़ों के झुंड भी देखे गए. ये कीड़े शैवाल खाते हैं तथा विशेष रूप से रूके हुए पानी एवं दलदल में पनपते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, ये कीड़े शैवाल खाकर ताजमहल की संगमरमर की दीवारों पर उत्सर्जन क्रिया करते हैं. इसके परिणाम स्वरूप दीवारों पर हरे रंग के दाग और धब्बे बन जाते हैं. हालांकि दीवारों की ‘मड पैक’ पद्धति द्वारा नियमित रूप से सफाई भी करवाई जाती है. लेकिन कीड़ों की बढ़ती संख्या के कारण इस समस्या का निराकरण अत्यंत कठिन हो रहा है.