छत्तीसगढ़: कोरबा खरीदारों की राह देखते चार पैसे की आस में बैठे खश कारीगरों की जिंदगी निराशा की दौर से गुजर रही है। महाराष्ट्र के गोंदिया व नागपुर जिला से आए 13 परिवार के लोगों ने सड़क किनारे माह भर पहले से डेरा डाल रखा है। यह कारीगर हर साल शहर आते हैं लेकिन इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण की मार ने कारीगरों का कारोबार को चौपट कर दिया है। सामान साथ लाने के कारण उन्हे वापस जाते भी नहीं बन रहा। अब दस दिनों तक सड़क किनारे किसी तरह दिन गुजार कर लाकडाउन खत्म होने का इंतजार करना होगा। दीगर दिहाड़ी मजदूरों की तरह खश कारीगरों के कारोबार को कोरोना ने अपने चपेटे में ले लिया है। सीजन भर में प्रति वर्ष 40.50 हजार की खश बेचकर वापस लौटने वाले कारीगारों के पास खश तो है लेकिन उसे खरीदने वाले नही हैं। घंटाघर ओपन थियेटर के पास सड़क किनारे झोपड़ी बनाकर खश बेच रहे गोंदिया निवासी विनायक का कहना है कि वे पिछले 12 वर्षो से कोरबा आ रहे हैं। फरवरी माह में ही यहां पहुंच जाते हैं। कोरबा आए दो माह बीत गया। अप्रैल माह आते तक आधे से ज्यादा स्टाक समाप्त हो जाता था। हालिया स्थिति यह है कि आधे दिन बाजार खुलने से दिन भर की मजदूरी नहीं मिल पाती। बीते वर्ष भी लाकडाउन की मार झेलनी पड़ी थी। कुछ समय की छूट होने पर लाकडाउन के अंतराल में जरूरी सामान खरीदी के लिए निकलने वाले लोग आर्डर दे जाते हैं या बना हुआ खश ले जाते हैं। इस बार तो पूरे दस दिन तक कड़ाई से लाकडाउन कर दी गई है। सामान भी ले आए हैं। अब बाजार खुलने के इंतजार करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। तीन सेट में बिकने वाले खश की कीमत 200 रूपये है। पूरे परिवार के साथ शहर में रह रहे हैं। जिस तरह से कोरोना के कारण लाकडाउन बढ़ रहा है, उससे इस सीजन में पूरे खश को बेच पाना मुश्किल लग रहा है। गर्मी में बिक्री किए जाने वाले खश को तैयार करने में तीन माह का समय लगता है। कारीगर विनोद का कहना है हलके लकड़ी रेशा निकालने अथवा जंगली जड़ी से तैयार खश को मुकम्मल रूप देने में पूरा परिवार लगा रहता है। सामान को तैयार कर शहर तक लाने में जितनी लागत लगी है, उसकी भरपाई हो पाना मुश्किल है। शहर में जिस तरह के हालात दिख रहे हैं उससे मजदूरी भी नही निकलेगी लग रहा है|
खश कारीगर नागपुर निवासी रमेश चंदन का कहना है कि शहर के अलावा वे उपनगरीय क्षेत्र में भी खश की बिक्री किया करते थे। दीपका, कटघोरा, बांकीमोगरा, बालको में खश की मांग होने से कच्चा माल खप जाता था। लाकडाउन के कारण इन शहरों में जाना मुश्किल होगा। उपनगरीय क्षेत्र में कूलर कारीगर भी कच्चा माल लेकर जाते थे पर इस बार नहीं पहुंचे हैं। आधे दिन की लाकडाउन के दौरान जिस तरह से पाजिटिव मरीजों की तादात में इजाफा हुआ है उससे व्यवसाय की दशा में सुधार आ पाना मुश्किल लग रहा है|