अमेरिकी विदेश विभाग ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार संबंधी हालात में उल्लेखनीय सुधार होने की बात मानी है। अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी अपनी 2020 कंट्री रिपोर्ट आन ह्यूमन राइट्स प्रैक्टिसेस में यह बात विस्तार से समझाई गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य करने के लिए सुरक्षा और संचार संबंधी पाबंदियों को धीरे-धीरे हटा रही है। सरकार ने नजरबंदी में रखे गए ज्यादातर राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को रिहा कर दिया है।
सरकार ने जनवरी में इंटरनेट सेवा बहाल कर दी। हालांकि जम्मू-कश्मीर के ज्यादातर हिस्सों में फोर जी सुविधा पर पाबंदी लगी हुई है। सरकार विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन कर रही है। हालांकि विधानसभा चुनाव की तारीख अभी तक घोषित नहीं की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि दिसंबर में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में विपक्षी दलों के गठबंधन ने अधिकांश सीटों पर जीत हासिल की।
रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर ही नहीं पूर्वोत्तर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अलगाववादी अर्धसैनिक बलों, पुलिस, सरकारी कर्मियों नागरिकों की हत्या और उत्पीड़न करने के सात अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में संलग्न होने पर चिंता जताई गई। ये अपने कैडर में बच्चों की भर्ती भी कर रहे हैं।
अमेरिकी विदेश विभाग ने अपनी इस रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकार संबंधी एक दर्जन से अधिक मुद्दों को शामिल किया है। इनमें मुख्य रूप से हत्या, पुलिस द्वारा मुठभेड़ के नाम पर हत्या करने, पुलिस हिरासत में यातना देने, जेल में यातना देने, नियमों के विपरीत हिरासत में रखने, जेलों की दशा, कुछ राज्यों में राजनीतिक कैदियों के साथ दुर्व्यवहार के मामले शामिल हैं। हालांकि भारत पूर्व में इस तरह की रिपोर्ट को खारिज करता रहा है
इस रिपोर्ट में भारत में प्रेस की आजादी पर प्रतिबंध लगाने, पत्रकारों को धमकाने और उनके खिलाफ बल प्रयोग करने, हिरासत में लिए जाने, मानहानि के दावे करने, इंटरनेट मीडिया के खिलाफ कार्रवाई करने, सेंसरशिप लागू करने और कुछ साइट्स को ब्लॉक करने का भी जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में वकील प्रशांत भूषण द्वारा न्यायपालिका को लेकर किए गए दो ट्वीट का मामला भी शामिल किया गया है। इसके अलावा सांप्रदायिक मतभेदों के कारण अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, बाल श्रम व बंधुआ मजदूरों के बारे में भी चर्चा की गई है।