कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की चुनौती ने पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को चुनाव अभियान को गति देने के लिए अंतत: उत्तर प्रदेश से बाहर निकलने पर बाध्य कर दिया है। प्रियंका ने सोमवार को असम के दौरे के साथ इसकी शुरुआत कर दी है। साफ संकेत हैं कि पांच राज्यों के चुनाव अभियान के दौरान इस बार उनकी सक्रियता पहले से कहीं ज्यादा दिखाई देगी। चुनाव मैदान में प्रियंका की सक्रियता सीधे तौर पर राहुल गांधी के हाथ मजबूत करने का स्पष्ट संकेत मानी जा रही है।
पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मी के बीच पार्टी नेतृत्व विशेषकर राहुल गांधी पर असंतुष्ट नेताओं का हमला बढ़ता जा रहा है। चौतरफा बढ़ती चुनौतियों के बावजूद पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जवाबी आक्रामकता दिखाना मुनासिब नहीं समझ रहा है। चुनाव अभियान में प्रियंका की बढ़ी भागीदारी असंतुष्ट नेताओं के अभियान से हो रहे नुकसान को थामने की कोशिश है।
राहुल तीन दिन से दक्षिण के तीन चुनावी राज्यों केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु के दौरे कर रहे हैं। वहीं प्रियंका ने असम से अपने अभियान की शुरुआत कर असंतुष्ट खेमे को साफ संदेश दे दिया है कि कांग्रेस में राहुल को कमजोर करने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रयासों का वे डटकर मुकाबला करेंगी। कांग्रेस नेतृत्व के लिए असम का चुनाव अहम इसलिए भी है कि वहां पार्टी का भाजपा से आमने-सामने का मुकाबला है।
बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट ने एनडीए को छोड़ कर कांग्रेस के साथ असम में गठबंधन का फैसला किया है। इस वजह से सूबे का चुनाव काफी रोचक हो गया है। पार्टी नेतृत्व के मौजूदा भरोसेमंद लोगों में शामिल कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अनौपचारिक चर्चा में कहा भी कि जम्मू में जमावड़े के बाद असंतुष्ट नेताओं को चुनावी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने की सलाह दी गई है।
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आदर्श कुमार
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